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चीन के चंगुल में छटपटा रहा श्रीलंका, मोदी से मदद की आस

चीन अपने कर्ज के जाल में छ्दम रूप बनाकर छोटे और गरीब देशों को फंसा रहा है. फिलहास इस समय श्रीलंका इस कर्ज के बाज के पंजो में छटपटा रहा है. इसे लेकर श्रीलंका को मोदी से मदद की आस है.

Raunak Pareek

हम्बनटोटा बंदरगाह पर निर्माणकार्यड्रैगन की चाल कामयाब. एशिया से लेकर अफ्रीका तक, जितना हो सके चीन उतने ज्यादा देशों को अपने कर्ज जाल की नीति का शिकार बना रहा है. चीन पहले लालच देकर शुरुआत में कर्ज देता है और जब वो दूसरा देश लौटाने में सक्षम नहीं होता, तब चाइना अपने असली मकसद को पूरा कर उसे देश के बंदरगाहों, हवाईअड्डों पर या तो कब्जा करता है या उसे लीज पर लेकर अपना सैन्य अड्डा स्थापित बना लेता है. वैसे तो चाइन ने अब तक कई का शिकार कर लिया है, लेकिन फिलहाल श्रीलंका अभी चर्चा के घेरे में है.श्रीलंका में विपक्ष के प्रमुख नेता और अर्थशास्त्री हर्षा डी सिल्वा

श्रीलंका में विपक्ष के प्रमुख नेता और अर्थशास्त्री हर्षा डी सिल्वा ने कहा
"हमारा देश पूरी तरह से दिवालिया हो जाएगा. मैं किसी को डराना नहीं चाहता, लेकिन अगर ऐसा ही चलता रहा तो आयात रुक जायेंगे, पूरा 'आईटी सिस्टम' बंद हो जायेगा. यहां तक कि हम 'गूगल मैप' का भी इस्तेमाल नहीं कर पायेंगे क्योंकि हम इसके लिए पैसे देने की स्थिति में नहीं होंगे." ये बयान श्रीलंका में विपक्ष के प्रमुख नेता और अर्थशास्त्री हर्षा डी सिल्वा का है जो उन्होंने श्रीलंका में संसद के सत्र के दौरान दिया.

ये बात सदन में कहते हुए डी.सिल्वा ने सभी सदस्यों को बताया कि वर्ष 2022 के फ़रवरी महिने से लेकर अक्टूबर तक इतनी अदायगी दी जाएगी लेकिन उसके बाद भी श्रीलंका पर विदेशी नहीं उतर पाएगा. सदन को संबोधित करते हुए कहा कि अक्तूबर तक श्रीलंका के पास विदेशी मुद्रा के रूप में सिर्फ 4.8 खरब अमेरिकी डालर का स्टोरेज होगा. श्रीलंका की संसद में डी.सिल्वा का बयान इस बात की और इशारा करता है कि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था की स्थिति काफी चिंताजनक बनी हुई है.

श्रीलंका में हम्बनटोटा बंदरगाह पर चलता निर्माण कार्य

खाने पीने और आम उपभोग की लगभग सभी चीजों की क़ीमतों ने आसमान छू लिया है और बढती महंगाई ने कमर पर काफी बोझ डाल दिया है. देश के प्रमुख बैंक ने भी अपनी वेबसाइट पर इसका लेखा जोखा पेश किया है जिससे अर्थशास्त्रीयों की परेशानी बढ़ चुकी है. हम्बनटोटा बंदरगाह पर निर्माणकार्य

श्रीलंका में बढ़ती महंगाई दर –

बढ़ती महंगाई दर पर श्रीलंका के राष्ट्रीय बैंक यानी 'सेंट्रल बैंक ऑफ़ श्रीलंका' ने इसी साल जनवरी माह में आधिकारिक बयान जारी कर कहा है कि दिसंबर 2021 महिने में महंगाई की दर में 12.1 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हुई है. जबकि ये दर नवम्बर महिने में 9.5 प्रतिशत पर थी.

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1 महिने में इस महंगाई में इस तरह का उछाल देखकर सरकार और अर्थशास्त्री चिंतित है जिसके बाद स्थिति से निपटने के लिए श्रीलंका ने चीन, भारत और खाड़ी देशों से भी मदद मांगी है.

जिस तरह भारत में 'भारतीय रिज़र्व बैंक' काम काज और भूमिका है वैसे ही 'सेंट्रल बैंक ऑफ़ श्रीलंका' की भूमिका, या काम काज भी वैसा ही है.

'सेंट्रल बैंक ऑफ़ श्रीलंका' ने महंगाई दर में बढ़ोतरी का कारण बताते हुए कहा है, "ये इस वजह से हुआ क्योंकि खाने का सामान हो या दूसरे सामान, इन सब की क़ीमतों में भारी उछाल देखने को मिला है. ताज़ी मछली, सब्ज़ियों और हरी मिर्च की क़ीमतों में सबसे ज़्यादा उछाल देखा गया है. खाने की सामग्री के अलावा डीज़ल और पेट्रोल की क़ीमतों में बढ़ोतरी की वजह से बाक़ी की चीज़ें भी महंगी हो गई हैं."

श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे देश में पहले ही 'आर्थिक आपातकाल' की घोषणा कर चुके हैं. जिसमें सेना को अधिकार दिया गया है कि वो ये सुनिश्चित करे कि सरकार ने जो खाने की सामाग्री की दर तय किए हैं, वो लोगों तक उसी क़ीमत पर पहुंचे

भारी क़र्ज़ तले दबा चीन –

श्रीलंका के वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे ने प्रेस से बात करके यह स्वीकारा है कि श्रीलंका विदेशी कर्ज में डूबा हुआ है. समाचार एजेंसी पीटीई ने राजपक्षे के बयान को प्रमुखता दी है जब उन्होंने कहा कि उनके देश पर जो क़र्ज़ है वो मुख्य तौर पर तीन देशों का है - चीन, भारत औरत जापान.

श्रीलंका को चीन का 5 खरब अमेरिकी डालर का क़र्ज़ पहले से है और उस पर श्रीलंका को एक अरब अमेरिकी डालर का अतिरिक्त क़र्ज़ पिछले साल लेना पड़ा था जिससे मौजूदा वित्तीय संकट से निपट सके. प्रेस के सवाल के जवाब में उन्होने कहा "इस साल हमें लगभग 7 खरब अमेरिकी डालर का क़र्ज़ का भुगतान करना है. ये सिर्फ़ चीन का नहीं बल्कि भारत और जापान का भी है."

श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे

श्रीलंका के प्रमुख बैंक रिपोर्ट कहती है की उनके देश के पास विदेशी मुद्रा के भण्डार बहुत तेजी से खत्म होते हुए जा रहे है. इसलिए बैंक ने जनता के लिए अधिसूचना जारी कर उन्हें अपने पास रखे हुए विदेशी मुद्रा को बैंक में जमा कराने का अनुरोध किया है और कहा है कि वो उसके बदले श्रीलंकाई रुपया सरकार से ले ले.

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इसकी सूचना बैंक की वेबसाइट पर मौजूद हैं तो अंग्रेजी में है.

रिपोर्ट में बताया गया है कि मौजूदा वक़्त में श्रीलंका के पास 1.58 अरब डालर की विदेशी मुद्रा का स्टोक है जो साल 2019 में 7.5 अरब डालर हुआ करता था.

वहीं श्रीलंका के राष्ट्रीय बैंक के डिप्टी गवर्नर रह चुके W.A Vijayawardne ने भी सरकार को आने वाले बड़े संकट के लिए तैयार रहने को लेकर कहा है.

देश जल्द उभर पाएगा आर्थिक तंगी से -

हालाकी देश के वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे ने प्रेस वार्ता से यह दावा जरुर किया है देश "जल्द ही आर्थिक तंगी के दौर से उबर जाएगा" और अपने ऊपर चढ़े कर्ज की भी समय "समय पर" अदायगी कर देगा. वैसे श्रीलंकन सरकार ने इस वित्तीय संकट से बाहर निकलने के लिए लगभग 1.2 खरब अमेरिकी डालर के आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है.

लेकिन श्रीलंका के ही एक अन्य वरिष्ठ मंत्री रमेश पथिराना ने संसद में जो बयान दिया उसे देश की विपक्षी पार्टियां और अर्थशास्त्री "हास्यास्पद" ही मान रहे हैं.

क्योंकी उनका सुझाव है था श्रीलंका पर जो ओमान से जो पेट्रोलियम पदार्थ लेने की वजह से क़र्ज़ है उसकी अदायगी वो "कुछ इस तरह करेंगे कि हर महीने श्रीलंका, ओमान को 5 अरब अमेरिकी डालर तक की चाय की पत्ती का निर्यात करेगा और इस तरह अपना क़र्ज़ चुका देगा.

श्रीलंका के जाने माने अर्थशास्त्री ईमेश रानासिंघे ने श्रीलंका के एक प्रमुख अंग्रेज़ी अख़बार 'द मार्निंग' को कहा कि "इसमें कोई गुंजाइश नहीं कि पिछले 40 सालों में श्रीलंका की अर्थव्यवस्था कभी इतनी ख़राब नहीं हुई थी."

उनका कहना है कि श्रीलंका ने चीन से अपनी मुद्रा के 'एक्सचेंज' के ज़रिये जो 1.5 ख़रब अमेरिकी डालर हासिल किये हैं उससे भी स्थिति बेहतर नहीं हो सकती है.

अंतरराष्ट्रीय 'रेटिंग' संस्था 'फिच' ने भी अपनी 'रेटिंग' में श्रीलंका को अब नीचे करा है. अब दक्षिण एशियाई क्षेत्र में दूसरे देशों की तुलना में श्रीलंका में आर्थिक हालत सबसे खराब है.

'ईस्ट एशिया फ़ोरम' नाम के 'थिंक टैंक' से श्रीलंका के 'इंस्टीट्यूट फ़ॉर पालिसी स्टडीज़' की दुश्नी वीराकून का भी कहना है कि श्रीलंका ने मौजूदा आर्थिक स्थिति से उबरने के लिए चीन और भारत से 'क्रेडिट लाइन' मांगी है. तो वही श्रीलंका ने इस एवज में चीन द्वारा बनायी जा रही 'कोलम्बो पोर्ट सिटी' के लिय 'फ़ॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट' यानी 'एफ़डीआई' की शर्तों कुछ ढील दी है और उनमे कुछ बदलाव किए है. वहीं भारत के बड़े अडानी समूह को कोलम्बो बंदरगाह के पश्चिमी 'कंटेनर टर्मिनल' को डवलप करने के लिए बनाई गई परियोजना भागीदारी 51 प्रतिशत कर दी है.

ड्रैगन के 'क़र्ज़ का जाल' -

श्रीलंका राजनयिक वीराकून के अनुसार मान भी लिया जाए कि अभी तो श्रीलंका चीन और भारत की सहायता से बाहर निकल भी जाएगा. लेकिन देश को अपनी आर्थिक नीतियों में सुधार और पुनर्विचार की जरूरत है क्योंकी अगर वह इसमें बदलाव नहीं करता है तो देश को फिर से ऐसी परिस्तिथि में पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता.

हालाकी चीन पर आरोप है की चीन कमजोर देश को कर्ज देकर अपने जाल में फांस रहा है.

बीबीसी रियलिटी चेक टीम के काई वांग पनी रिपोर्ट में लिखते है. चीन गरीब देशों को कर्ज देने के अपने तरीको के कारण पहले भी आलोचना का सामना करना पड़ा है. लेकिन चीन ने हमेशा अपने इस आरोपो को खारिज कर कहा कि दुनिया में एक भी देश ऐसा नहीं जो चीन से कर्ज लेकर किसी "तथाकथित ऋण जाल में फंस" गया हो.

साथ ही ब्रिटेन की विदेशी ख़ुफ़िया एजेंसी MI6 के प्रमुख रिचर्ड मूर ने बीबीसी को एक इंटरव्यू दिया था. जिसमें उन्होने कहा कि चीन इस 'क़र्ज़ जाल' उपयोग, दूसरे देशों पर अपनी मजबूती और बढ़त बनाने के लिए करता है. वही ये भी आरोप है कि उससे क़र्ज़ लेने वाले देश जब इसे चुका नहीं पाते तो वह उनकी संपत्तियों पर क़ब्ज़ा कर लेता है. लेकिन चीन ने हमेशा इस तरह के आरोपों को खारिज किया.

हम्बनटोटा बंदरगाह है चीन के कर्ज का उदाहरण -

चीन ने कर्ज दिया उसका फायदा भी उसने लिया. चीन कुछ समय पहले अपने चीनी निवेश की मदद से हम्बनटोटा में एक बड़ी बंदरगाह परियोजना की शुरुआत की लेकिन चीन के कर्ज और कॉन्ट्रैक्टर कंपनियों की मदद से शुरू हुई ये योजना अरबों डॉलर के विवाद में फंस गई. जहां एक तरफ परियोजना पूरी नहीं हो पा रही थी तो दूसरी और श्रीलंका चीन के क़र्ज़ तले दबा हुआ था.

फिर आख़िरकार 2017 में एक समझौते हुआ. जिसके तहत बंदरगाह की 70 प्रतिशत हिस्सा चीन की सरकारी कंपनियों को 99 साल की लीज़ पर दिया गया. फिर बाद में चीन ने इस पर दुबारा निवेश शुरू किया. वही देश में पैदा हुए गंभीर आर्थिक संकट के बीच 2022 दिसंबर में श्रीलंका के वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे का भारत दौरा महतवपूर्ण माना जा रहा है.

जिसके बाद भारत के विदेश मंत्री एस.जयशंकर और वित्त मंत्री साथ हुई बैठक में भारत ने सहमति जताई कि वो खाद्य सामग्री, दवा और अन्य आवश्यक वस्तुओं के लिए श्रीलंका को 'लाइन ऑफ़ क्रेडिट' देगा.

भारत करता है 'नेबरहुड फ़र्स्ट पॉलिसी' का सम्मान -

भारत सरकार के दोनों मंत्रियों ने श्रीलंकाई प्रतिनिधिमंडल को इस बात का आश्वासन दिया कि भारत अपनी 'नेबरहुड फ़र्स्ट पॉलिसी' का सम्मान करता है और वो श्रीलंका को कर्ज की स्थिति से उबारने में मदद करेगा.

मंत्री स्तर की वार्ता के बाद भारत ने श्रीलंका को पेट्रोलियम पदार्थ और द्वितीय विश्व युद्ध के बने 'त्रिंकोमाली टैंक फ़ार्म' का डेवलपमेंट करने की सहमति भी जताई. वहीं दूसरी और भारत ने 'करंसी एक्सचेंज' के लिए भी हामी भरी. जिससे श्रीलंका के सरकारी खज़ाने के ख़त्म होने से कुछ समय के लिए रोक लग सके.

हालांकि 'ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन' में श्रीलंका के मामलों के एक्सपर्ट एन.सत्यमूर्ति की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत चाहे जो कर ले, लेकिन श्रीलंका भारत और चीन के साथ अपने रिश्तों में 'बैलेंस' बनाकर चलता रहेगा क्योंकि ऐसा करने से उसे फ़ायदा होगा. अपने शोध में वो ये भी कहते हैं कि श्रीलंका अपने यहाँ चीन और भारत को आमने-सामने ही देखना पसंद करता रहा है.

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