Ukraine को शायद आज यूलिया तेमोसेंकोवा (Yulia Tymoshenko) याद आ रही होंगी। वो यहां की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं। यूलिया ने यूक्रेन के प्रधानमंत्री के तौर पर दो बार पद संभाला। खास बात ये है कि अपने पद पर रहते हुए भी वे रूस के खिलाफ बेबाकी से अपनी राय रखती थीं। वे पश्चिमी देशों के साथ बेहतर संबंधों की वकालत करती थीं और चाहती थीं कि यूक्रेन नाटो में शामिल हो।
यूलिया तेमोसेंकोवा (Yulia Tymoshenko) की पर्सनल लाइफ की बात करें तो, उनका जन्म 27 नवंबर 1960 को निप्रॉपेट्रोस, यूक्रेनी एसएसआर, सोवियत संघ में हुआ था। जब यूलिया 3 साल की थी, तब उनके पिता ने उनकी मां को छोड़ दिया। इसके बाद यूलिया ने अपनी मां के उपनाम का इस्तेमाल किया। उनकी शादी 1979 में ऑलेक्ज़ेंडर तेमोसेंकोवा से हुई और उनका एक बच्चा यूजेनिया भी है।
प्रधानमंत्री या विपक्ष की नेता होने के बावजूद यूलिया के आक्रामक रवैये में कभी कमी नहीं आई। वह रूस के लगी गार्जियन के तौर पर यूक्रेन को स्वतंत्र रखने की वकालत करती थीं। उन्होंने बड़े ही बेबाकी से रूस को धमकी देते हुए कहा कि 'रूस को एक इंच भी जमीन नहीं लेने दी जाएगी'।
रूस समर्थक राष्ट्रपति विक्टर युश्नकोव ने 2004 का चुनाव जीता। यूलिया सहित अन्य विपक्षी नेताओं ने विक्टर पर चुनाव में धांधली का आरोप लगाया। जिससे देश में 'ऑरेंज रिवोल्यूशन' की शुरुआत हुई।
यूलिया की पार्टी का झंडा भी ऑरेंज था और उनकी पार्टी रूसी झुकाव वाले विक्टर के खिलाफ सबसे आगे थी। जिसके कारण इस आंदोलन को 'ऑरेंज रिवोल्यूशन' नाम दिया गया। इस आंदोलन में यूलिया एक प्रमुख नेता के तौर पर उभरीं। इस आंदोलन को यूक्रेन में उन्हें खूब समर्थन मिला। नतीजा ये रहा कि विक्टर को पद और देश को छोड़कर रूस भागना पड़ा।
रूस समर्थक विक्टर युश्नकोव
रूस समर्थित विक्टर यानुकोविच (Viktor Yanukovych) की जीत हुई। इसके बाद देशभर में विद्रोह शुरू हो गया। इसे Orange Revolution नाम दिया गया. हालांकि, इन प्रदर्शनों को दबा दिया गया।
2010 में एक बार फिर विक्टर यानुकोविच की जीत हुई। नवंबर 2013 में यानुकोविच यूरोपियन यूनियन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर करने से पीछे हट गए। इस समझौते से यूक्रेन को 15 अरब डॉलर का पैकेज मिलने वाला था। उनके इस फैसले के देश में फिर प्रदर्शन हुए, लेकिन इस बार प्रदर्शन इतने जोरदार थे कि यानुकोविच को देश छोड़कर जाना पड़ा।
22 फरवरी 2014 को यानुकोविच ने देश छोड़ दिया। यूरोपियन यूनियन के समर्थकों की सत्ता आने के बाद रूस ने क्रीमिया पर हमला कर दिया। 27 फरवरी 2014 को आर्मी की वर्दी पहने बंदूकधारियों ने क्रीमिया की सरकारी इमारतों पर कब्जा कर लिया। रूस ने इन्हें रूसी सैनिक मानने से इनकार कर दिया।
16 मार्च 2014 को क्रीमिया में जनमत संग्रह कराया गया। दावा किया कि 97 फीसदी लोगों ने रूस में शामिल होने के पक्ष में वोट दिया है। 18 मार्च 2014 को क्रीमिया को औपचारिक रूप से रूस में मिला लिया गया। क्रीमिया पहले रूस का ही हिस्सा था, जिसे 1954 में सोवियत संघ के नेता निकिता ख्रुश्चेव ने यूक्रेन को तोहफे के तौर पर दे दिया था।