international news

Ukraine को आज क्यों याद आ रही पहली PM Yulia Tymoshenko, जानिए दुनिया की उस ताकतवर महिला की कहानी जिसने रूस को हर मोर्चे पर दिया जवाब

यूलिया तेमोसेंकोवा (Yulia Tymoshenko) अपने पद पर रहते हुए भी वे रूस के खिलाफ बेबाकी से अपनी राय रखती थीं। वे पश्चिमी देशों के साथ बेहतर संबंधों की वकालत करती थीं और चाहती थीं कि यूक्रेन नाटो में शामिल हो। उन्होंने सार्वजनिक तौर पर रूस को धमकी देते हुए कहा कि 'रूस को एक इंच भी जमीन नहीं लेने दी जाएगी'।

ChandraVeer Singh

Ukraine को शायद आज यूलिया तेमोसेंकोवा (Yulia Tymoshenko) याद आ रही होंगी। वो यहां की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं। यूलिया ने यूक्रेन के प्रधानमंत्री के तौर पर दो बार पद संभाला। खास बात ये है कि अपने पद पर रहते हुए भी वे रूस के खिलाफ बेबाकी से अपनी राय रखती थीं। वे पश्चिमी देशों के साथ बेहतर संबंधों की वकालत करती थीं और चाहती थीं कि यूक्रेन नाटो में शामिल हो।

दुनिया की तीसरी सबसे ताकतवर महिला का ​मिला था खिताब
2005 में, फोर्ब्स पत्रिका द्वारा दुनिया की सबसे शक्तिशाली महिलाओं की सूची में यूलिया को तीसरे नंबर पर रखा गया था। यूलिया न केवल यूक्रेन में, बल्कि पूर्व सोवियत संघ के देशों में भी पहली महिला प्रधानमंत्री थीं।
यूलिया तेमोसेंकोवा (Yulia Tymoshenko) की पर्सनल लाइफ की बात करें तो, उनका जन्म 27 नवंबर 1960 को निप्रॉपेट्रोस, यूक्रेनी एसएसआर, सोवियत संघ में हुआ था। जब यूलिया 3 साल की थी, तब उनके पिता ने उनकी मां को छोड़ दिया। इसके बाद यूलिया ने अपनी मां के उपनाम का इस्तेमाल किया। उनकी शादी 1979 में ऑलेक्ज़ेंडर तेमोसेंकोवा से हुई और उनका एक बच्चा यूजेनिया भी है।
आज आंख दिखा रहा लेकिन उस वक्त यूलिया एक इंच जमीन रूस को देने को तैयार नहीं थी
रूस इस समय यूक्रेन पर सीधा हमलावर बना हुआ है, लेकिन जब यूलिया प्रधानमंत्री थी तो रूस कभी भी उन्हें धमकाने की हिमाकत नहीं कर पाया था। यूलिया बिना लड़े रूस को 'एक इंच जमीन' भी देने को तैयार नहीं थी। यूक्रेन के मौजूदा हालात के चलते आज वहां के लोग अपनी बहादुर महिला प्रधानमंत्री को याद कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि यदि यूलिया ने देश को अपने हाथों में ले लिया होता तो देश की ऐसी स्थिति नहीं होती।
गैस कारोबार के कारण थी गैस क्वीन,फिर बनी PM
यूलिया को यूक्रेन में गैस क्वीन के नाम से भी जाना जाता था। उनका यूक्रेन में गैस का बड़ा कारोबार था। ये वो दौर था जब उन्हें यूक्रेन की सबसे सफल कारोबारी महिलाओं में गिना जाता था। फिर परिस्थितियां कुछ ऐसी हुई कि उन्होंने राजनीति में आने का फैसला किया। जल्द ही वे यूक्रेन की पहली महिला प्रधानमंत्री बन गईं। यूलिया 2005 में कुछ महीनों के लिए यूक्रेन की पीएम बनी उसके बाद फिर से 2007 से 2010 तक प्रधानमंत्री रहीं।

देश के लिए रूस के खिलाफ हमेशा रहीं बेबाक

प्रधानमंत्री या विपक्ष की नेता होने के बावजूद यूलिया के आक्रामक रवैये में कभी कमी नहीं आई। वह रूस के लगी गार्जियन के तौर पर यूक्रेन को स्वतंत्र रखने की वकालत करती थीं। उन्होंने बड़े ही बेबाकी से रूस को धमकी देते हुए कहा कि 'रूस को एक इंच भी जमीन नहीं लेने दी जाएगी'।

ऑरेंज रिवोल्यूशन में प्रमुख नेता के तौर पर उभरीं

रूस समर्थक राष्ट्रपति विक्टर युश्नकोव ने 2004 का चुनाव जीता। यूलिया सहित अन्य विपक्षी नेताओं ने विक्टर पर चुनाव में धांधली का आरोप लगाया। जिससे देश में 'ऑरेंज रिवोल्यूशन' की शुरुआत हुई।

यूलिया की पार्टी का झंडा भी ऑरेंज था और उनकी पार्टी रूसी झुकाव वाले विक्टर के खिलाफ सबसे आगे थी। जिसके कारण इस आंदोलन को 'ऑरेंज रिवोल्यूशन' नाम दिया गया। इस आंदोलन में यूलिया एक प्रमुख नेता के तौर पर उभरीं। इस आंदोलन को यूक्रेन में उन्हें खूब समर्थन मिला। नतीजा ये रहा कि विक्टर को पद और देश को छोड़कर रूस भागना पड़ा।

रूस समर्थक विक्टर युश्नकोव

रूस समर्थक विक्टर युश्नकोव के चुनाव जीतते ही यूलिया के बुरे दिन शुरू हुए
साल 2010 में यूलिया ने राष्ट्रपति चुनाव लड़ा था। लेकिन दुर्भाग्य से वे विक्टर युश्नकोव से केवल 3.3% वोटों से पीछे रहीं। बस यहीं से यूलिया के बुरे दिन शुरू हो गए। विक्टर युश्नकोव के सत्ता में आते ही उसने यूलिया को टार्गेट करना शुरू कर दिया। रूस के साथ गैस डील में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए राष्ट्रपति विक्टर युश्नकोव ने उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में कैद कर लिया था। वह 2011 से 2014 तक जेल में रहीं। दुनिया ने उनकी गिरफ्तारी को राजनीतिक प्रतिशोध के रूप में देखा। उन्होंने जेल में भी काफी यातनाएं झेली। जेल में रहते हुए उन्हें यूरोपियन यूनियन और अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों का सपोर्ट मिला। यूलिया 2011 से 2014 तक जेल में रही थीं। जेल में रहते हुए यूलिया को काफी यातनाएं भी सहनी पड़ीं। हालांकि, उनके समर्थन में दुनिया के कई देशों ने आवाज उठाई थी।
रूस समर्थित विक्टर यानुकोविच (Viktor Yanukovych) की जीत हुई। इसके बाद देशभर में विद्रोह शुरू हो गया। इसे Orange Revolution नाम दिया गया. हालांकि, इन प्रदर्शनों को दबा दिया गया।
2010 में एक बार फिर विक्टर यानुकोविच की जीत हुई। नवंबर 2013 में यानुकोविच यूरोपियन यूनियन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर करने से पीछे हट गए। इस समझौते से यूक्रेन को 15 अरब डॉलर का पैकेज मिलने वाला था। उनके इस फैसले के देश में फिर प्रदर्शन हुए, लेकिन इस बार प्रदर्शन इतने जोरदार थे कि यानुकोविच को देश छोड़कर जाना पड़ा।
22 फरवरी 2014 को यानुकोविच ने देश छोड़ दिया। यूरोपियन यूनियन के समर्थकों की सत्ता आने के बाद रूस ने क्रीमिया पर हमला कर दिया। 27 फरवरी 2014 को आर्मी की वर्दी पहने बंदूकधारियों ने क्रीमिया की सरकारी इमारतों पर कब्जा कर लिया। रूस ने इन्हें रूसी सैनिक मानने से इनकार कर दिया।
16 मार्च 2014 को क्रीमिया में जनमत संग्रह कराया गया। दावा किया कि 97 फीसदी लोगों ने रूस में शामिल होने के पक्ष में वोट दिया है। 18 मार्च 2014 को क्रीमिया को औपचारिक रूप से रूस में मिला लिया गया। क्रीमिया पहले रूस का ही हिस्सा था, जिसे 1954 में सोवियत संघ के नेता निकिता ख्रुश्चेव ने यूक्रेन को तोहफे के तौर पर दे दिया था।

Diabetes से हो सकता है अंधापन, इस बात का रखें ख्याल

बीफ या एनिमल फैट का करते है सेवन, तो सकती है यह गंभीर बीमारियां

Jammu & Kashmir Assembly Elections 2024: कश्मीर में संपन्न हुआ मतदान, 59 प्रतिशत पड़े वोट

Vastu के अनुसार लगाएं शीशा, चमक जाएगी किस्मत

Tiger Parks: भारत के 8 फेमस पार्क,जहां आप कर सकते है टाइगर का दीदार