Atal Bihari Vajpayee birthday special : हिंदू तन मन, हिंदू जीवन रग-रग, हिंदू मेरा परिचय

 

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Atal Bihari Vajpayee birthday special : हिंदू तन मन, हिंदू जीवन रग-रग, हिंदू मेरा परिचय

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का आज जन्मदिन है। ऐसे में हिंदू धर्म के साथ साथ धर्म और राजनीती पर भारतरत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के विचारों को याद करना बेहतर होगा। दरअसल वाजपेयी की छवि सेक्युलर नेता की रही।

Ishika Jain

आगामी विधानसभा चुनावों कि आहट के बीच सभी राजनितिक दलों में धर्म को लेकर सियासत तेज़ हो गई है। अब हर कोई खुद को सबसे बड़ा हिन्दू साबित करने की जद्दो जहद में जुट गया है। भारतीय राजनीति में हिंदुत्व ऐसा विषय है, जिस पर हमेशा राजनीति होती रही है। कांग्रेस के पूर्वाध्यक्ष राहुल गाँधी हिंदुत्व के मुद्दे पर लगातार भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साध रहे हैं। अभी हाल ही में जयपुर में हुई महारैली में राहुल गाँधी ने खुद को 'असली हिन्दू' और भाजपा को 'हिंदुत्ववादी' का करार दिया था।

ऐसे में हिंदू धर्म के साथ साथ धर्म और राजनीती पर भारतरत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के विचारों को याद करना बेहतर होगा। दरअसल वाजपेयी की छवि सेक्युलर नेता की रही। वाजपेयी सनातनी हिन्दू तो रहे ही हैं, लेकिन हिन्दू धर्म के मर्म को समझने और समझाने की प्रतिभा भी उनमें खूब रही।

3 बार प्रधानमंत्री रह चुके हैं वाजपेयी

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का आज जन्मदिन है। इस अवसर पर एक नज़र अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीतिक सफर पर डालें, तो वे कुल मिलाकर 47 सालों तक संसद के सदस्य रहे है। वाजपेयी ने 1942 में राजनीती के जगत में अपने कदम रखें। यह वह दौर था, जब भारत छोड़ो आंदोलन शीर्ष पर था और वाजपेयी के भाई 23 दिनों के लिए जेल गए थे। भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी देश के एकमात्र ऐसे राजनेता थे, जो चार राज्यों के 6 लोकसभा क्षेत्रों की नुमाइंदगी कर चुके हैं। बता दें कि, उत्तर प्रदेश के लखनऊ और बलरामपुर, गुजरात के गांधीनगर, मध्यप्रदेश के ग्वालियर और विदिशा और साथ ही नई दिल्ली की संसदीय सीट से चुनाव जीतने वाले अटल बिहारी वाजपेयी इकलौते नेता हैं। वाजपेयी 1996 से 2004 के बीच तीन बार प्रधानमंत्री भी रहे हैं। वे पहली बार 13 दिन के लिए, फिर 1998 और 1999 के बीच 13 महीनों के लिए और फिर 1999 से 2004 तक प्रधानमंत्री के रूप में कार्यरत रहे।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी

'मेरा हिंदुत्व बहुत विशाल है'

जब वाजपेयी दसवीं कक्षा में थे तब उन्होंने एक कविता लिखी थी, जो इस प्रकार है -  हिंदू तन मन, हिंदू जीवन रग-रग, हिंदू मेरा परिचय। हिंदू धर्म पर वाजपेयी ने एक निबंध भी लिखा था, जिसमें उन्होंने लिखा कि, "हिंदू धर्म के प्रति मेरे आकर्षण का सबसे मुख्य कारण यह है कि यह मानव का सर्वोत्मकृष्ट धर्म है। हिंदू धर्म ना तो किसी पुस्तक से जुड़ा है और ना ही किसी एक धर्म प्रवर्तक से, जो कालगति से असंगत हो जाते हैं। हिंदू धर्म का स्वरूप हिंदू समाज द्वारा निर्मित होता है और यही कारण है कि यह धर्म युग युगांतर से संवर्धित और पुष्पित होता आ रहा है।"

जब हिंदू धर्म पर वाजपेयी के विचारों कि बात हो ही रही हैं तो पुणे में उनके द्वारा दिए गए भाषण का जिक्र करना भी जरुरी है। इस भाषण में उन्होंने कहा था कि "मैं हिन्दू  हूं, ये मैं कैसे भूल सकता हूं? और किसी को भूलना भी नहीं चाहिए। मेरा हिंदुत्व सीमित नहीं हैं, संकुचित नहीं हैं मेरा हिंदुत्व हरिजन के लिए मंदिर के दरवाजे बंद नहीं कर सकता है। मेरा हिन्दुत्त्व अंतरजातीय, अंतरप्रांतीय और अंतरराष्ट्रीय विवाहों का विरोध नहीं करता है। हिंदुत्व बहुत विशाल है।" अटल बिहारी वाजपेयी हमेशा से हिंदू धर्म को जीवन की एक विशिष्ट पद्धति मानते रहे हैं और धर्मपरायण व भगवान में आस्था रखने वालों में से रहे है।

हिन्दुओं की दो पहचान - शिखा और सूत्र
जहां पूरे समाज में धर्म और जातियों को लेकर राजनीतिक पहचान बनाने के प्रयास हो रहे हो और हमारे राजनेता खुद को असली हिंदू साबित करने के लिए अपनी जनेऊ और गोत्र का ढिंढोरा पीट रहे हो, वहां वाजपेयी की विचारधारा देखना जरुरी हो जाता है। एक बार वाजपेयी ने कहा था कि, "आपको मालूम है जब मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए पूरा समय देने के लिए निकला, उस समय तक भी जनेऊ पहनता था। बाद में मैंने जनेऊ उतार दिया, क्योंकि मुझे लगा कि यह जनेऊ मुझे अन्य हिन्दुओं से अलग करता है। पहले हिन्दुओं की दो पहचाने थी - शिखा और सूत्र। अब बहुत से लोग चोटी नहीं रखते। इस पर यह कहना कि उन्होंने हिन्दुत्व छोड़ दिया है, ठीक बात नहीं है। हां, जब चोटी ज़बर्दस्ती काटी जाती थी, तो उसकी रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य था।"

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी

सेक्यूलरिज़्म पर वाजपेयी की राय

दिसम्बर 1992 में डॉ राजेन्द्र प्रसाद व्याख्यानमाला में ‘सेक्यूलरिज़्म’ पर वाजपेयी का भाषण काफी अहम हैं। ‘सेक्यूलरिज़्म’ की पश्चिमी अवधारणा को तो वाजपेयी स्वीकार नहीं करते हैं, लेकिन वे महात्मा गाँधी के 'सर्वधर्म संभाव' को जरूर मानते हैं। धर्म की व्याख्या करते हुए वाजपेयी कहते हैं कि धर्म को समझने से पहले हमें 'रिलीजन' के अंतर समझना आवश्यक है। उनका कहना है कि, 'रिलीजन' का संबंध कुछ निश्चित आस्थाओं से होता है।

जब तक व्यक्ति उन आस्थाओं को मानता है तब तक वह उस रिलीजन या मजहब का सदस्य बना रहता है और जैसे ही वह उन आस्थाओं को छोड़ता है, वह उस रिलीजन से बहिष्कृत हो जाता है। धर्म केवल आस्थाओं पर आधारित नहीं है। सर्वधर्म सम्भाव हमें जीने का तरीका सिखाता है। सेक्यूलरवाद की भारतीय कल्पना अधिक सकारात्मक है।' भाषण का अंत वाजपेयी ने गुरु गोविन्द सिंह को याद करते हुए किया और उनका एक दोहा सुनाया -

देहुरा मसीत सोई, पूजा ओ नमाज ओई,

मानस सभै एक पै,अनेक को प्रभाव है।

अलख अभेख सोई, पुराण ओ कुरान कोई,

एक ही सरूप सभै, एक ही बनाव है।

इस दोहे का अर्थ है कि मंदिर और मस्जिद, पूजा और नमाज, पुराण और कुरान में कोई फर्क नहीं है। सभी मानव एक समान हैं और एक ही कर्ता की रचना है।

former PM Atal Bihari Vajpayee

'छूआछूत एक पाप है और अस्पृश्यता कलंक है'

1968 में संसद में अपने एक भाषण में अटल जी ने छुआछूत को लेकर गंभीर चर्चा की, जो हर किसी के बस की बात नहीं हैं। वाजपेयी कहते थे कि भारत में उपासना पद्धति के आधार पर कभी भी किसी के साथ भेदभाव नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि, "हम इस बात को मानने के लिए कतई तैयार नहीं हैं कि छुआछूत और भेदभाव हिंदू धर्म का हिस्सा हैं। छूआछूत एक पाप है, अभिशाप है और अस्पृश्यता कलंक है। और यह कलंक हमारे माथे से तब तक नहीं हटेगा, जब तक हम दुनिया के सामने अपना सिर ऊंचा करके खड़े नहीं हो सकते। मैं नहीं समझता कि हिन्दू शास्त्र अस्पृश्यता के पक्ष में हैं।" वे आगे कहते हैं कि, अगर हिंदू शास्त्रों में ऐसी व्याख्या भी हुई है तो वह सरासर गलत व्याख्या हुई है। मैं एक कदम और आगे जाकर यह कहने के लिए तैयार हूँ कि अगर कल को परमात्मा भी धरती पर आकर यह कहें की छुआछूत मानों, तो मैं ऐसे परमात्मा को भी मानने के लिए तैयार नहीं हूँ। लेकिन परमात्मा ऐसा नहीं कर सकता तो जो परमात्मा के भक्त बनते हैं उनको भी ऐसी बात नहीं करनी चाहिए।"

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