‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ के एक और नियम के खिलाफ देश की सर्वोच्च न्यायालय में मामला जा पहुंचा है। इस बार मुद्दा मुस्लिम लड़कियों के निकाह की उम्र का है। जून 2022 में 16 साल की नाबालिग मुस्लिम लड़की और 21 साल के मुस्लिम लड़के के निकाह से जुड़ा मामला पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट पहुंचा था।
जिसमें घर वालों के निकाह के खिलाफ होने की वजह से सुरक्षा मांगी गई थी। लेकिन अब ये मामला सुप्रीम पहुंच गया है। SC ने बहस की तारीख 9 नवंबर 2022 मंजूर की है।
जून 2022 में मुस्लिम नाबालिग लड़की से निकाह से जुड़ा मामला पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में पहुंचा था। जिस याचिका में दोनों ने बताया था कि उन्होंने हाल ही में निकाह किया है। लेकिन दोनों के परिवार वाले इस निकाह के खिलाफ थे, ऐसे में उन्हें सुरक्षा दी जाए।
सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने कहा था कि, ‘कानून के मुताबिक मुस्लिम लड़कियों की शादी ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ के तहत होती है। ऐसे में 15 साल की उम्र में मुस्लिम लड़की निकाह के योग्य हो जाती है।’
जस्टिस जे एस बेदी की सिंगल बेंच ने यह कहते हुए उन्हें सुरक्षा प्रदान की थी की लड़का-लड़की ने अपने परिवार वालों की मर्जी के खिलाफ निकाह किया है। सिर्फ इस वजह से उन्हें संविधान से मिलने वाले मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है।
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के इस फैसले को नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड (NCPCR) ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। 17 अक्टूबर के दिन सुप्रीम कोर्ट के जज एस. के कौल और अभय एस. ओका की दो सदस्यीय पीठ ने इस मामले में नोटिस जारी किया।
अदालत ने इस केस में कानूनी सहायता के लिए सीनियर वकील राजशेखर राव को न्याय मित्र नियुक्त किया है। साथ ही इस मामले में सुनवाई के लिए 9 नवंबर की तारीख भी तय की है।
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस जे. एस. बेदी ने जून 2022 में सुनाए गए अपने फैसले में सर दिनशा फरदुनजी मुल्ला की किताब ‘प्रिंसिपल्स ऑफ मोहम्मडन लॉ’ का जिक्र करते हुए कहा था कि अनुच्छेद 195 के मुताबिक 16 साल की लड़की और 21 साल के लड़के के बीच निकाह कानूनन सही है।
वहीं, इस फैसले को चुनौती देते हुए NCPCR ने कहा कि यह फैसला एक तरह से बाल विवाह रोकने के लिए 2006 में बनाए गए कानून को तोड़ता है। जिसमें 18 साल से कम उम्र में लड़कियों की शादी बैन है। हाईकोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाला देकर बाल विवाह की अनुमति दी है।
याचिकाकर्ता की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में लड़कियों की शादी की उम्र 15 साल बताया गया है जो देश के 2 अहम कानून के खिलाफ है।
बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006- इस नियम के अनुसार, 18 साल से कम उम्र में शादी कानूनी अपराध के दायरे में आती है। इतना ही नहीं जबरन इस तरह की शादी कराने वाले लोग अपराधी माने जाते हैं। हालांकि, इस कानून में कोई ऐसा प्रोविजन नहीं है कि यह किसी दूसरे कानून को खत्म कर देगा। इसलिए मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत 15 साल में मुस्लिम लड़कियों को शादी की इजाजत मिल जाती है।
पॉक्सो एक्ट 2012- वहीं, पॉक्सो एक्ट 2012 में 18 साल से कम उम्र की लड़कियों को नाबालिग माना जाता है। नाबालिग लड़कियों से शादी करके शारीरिक संबंध बनाना कानूनन अपराध है। इसी वजह से मुस्लिम पर्सनल लॉ इन दोनों कानून के खिलाफ है।
देश में विवाह की उम्र को लेकर बहस कोई नई नहीं है। भारत में 18 साल की उम्र के सभी लोगों को इंडियन मेजॉरिटी एक्ट के तहत वयस्क माना जाता है। इसलिए उन्हें मताधिकार का हक दिया जाता है।
इसी वजह बहस छिड़ी थी कि लड़की और लड़के दोनों की शादी की उम्र बराबर कर दी जाए। इसके बाद लड़के की शादी की उम्र 21 से घटाकर 18 करने की जगह पर लड़की की शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल करने का फैसला किया गया। केंद्र सरकार ने इसके लिए एक प्रस्ताव को भी मंजूरी दी है। इस बारे में कानून बनाने पर अभी विचार हो रहा है।