हाल ही में जालंधर में 4 लड़कियों ने एक युवक को कार में अगवा कर उसका गैंगरेप किया। पीड़ित शादीशुदा और बच्चों का पिता है। वह चमड़ा फैक्ट्री में मजदूर है।
उसने बताया कि लड़कियों ने उसे एड्रेस पूछने के बहाने रोका फिर उसके चेहरे पर स्प्रे मारकर उसे गाड़ी में डाल लिया। जबरदस्ती शराब पिलाई और नशे की हालत में लड़कियों ने उसके साथ बलात्कार किया।
अब सवाल ये है की क्या रेप करने वाली लड़कियां आरोपी है? अगर आरोपी है तो उन पर किन धाराओं के तहत कार्रवाही होगी? क्या हमारा संविधान जेंडर न्यूट्रल है?
भारत में कितने पुरुषों के साथ रेप हुआ, इसका कोई डेटा नहीं है लेकिन समय-समय पर ऐसे कई मामले सामने आए हैं।
2017 में मुंबई के स्कूल में 16 साल के एक किशोर के साथ 15 लड़कों ने गैंगरेप किया।
वहीं मुंबई के पवई में 13 साल के रेप पीड़ित लड़के ने आत्महत्या कर ली थी।
साल 2014 में शामली में एक महिला टीचर ने अपने 12 साल के छात्र के साथ रेप किया।
इस तरह के कई मामले सामने आने लगे है जो कानून का ध्यान अपनी ओर खींच रहें हैं। अब ये मांग उठने लगी है की रेप जैसे अपराधों पर कानून को जेंडर न्यूट्रल बनाया जाए।
भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 375 में रेप की परिभाषा तय की गई है। इसके तहत किसी महिला से कोई पुरुष जबरन यौनाचार या दुराचार करे तो दोनों ही रेप के दायरे में आएंगे।
लेकिन 2012 में निर्भया गैंगरेप के बाद इस परिभाषा में बड़ा बदलाव किया गया। अब महिला के प्राइवेट पार्ट या शरीर के किसी भी हिस्से को उसकी मर्जी के बिना छूना भी रेप के दायरे में आ सकता है।
महिला की उम्र अगर 18 साल से कम है और संबंध बनाने में उसकी सहमति है तो भी वह रेप होगा। महिला के कपड़े उतारना या बिना कपड़े उतारे ही उसे संबंध बनाने के लिए पोजिशन में लाना भी रेप माना जाएगा।
केंद्र सरकार ने 2012 में IPC की धारा 375 में रेप की परिभाषा बदलने की कोशिश की थी, जिसमें रेप के दायरे में पीड़ित पुरुष को भी शामिल करने की बात कही गई थी लेकिन कुछ गैर सरकारी संगठनों और नारीवादी संगठनों ने सरकार के इस प्रस्ताव पर विरोध जताया और कहा कि इससे महिला रेप पीड़िता को लेकर संवेदनहीनता और बढ़ेगी।
2013 में क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट लाया गया, जिसमें रेप और सेक्शुअल हैरासमेंट अपराधों को जेंडर न्यूट्रल बनाया गया। रेप शब्द हटा दिया गया, उसकी जगह सेक्शुअल असॉल्ट शब्द लाया गया लेकिन फेमिनिस्ट ग्रुप के कड़े विरोध के बाद सरकार ने कानून में रेप शब्द को फिर से शामिल किया, जिसमें कानून में पहले जैसी स्थिति बरकरार रखी गई कि पुरुष ही महिला का रेपिस्ट हो सकता है।
भारत में पुरुषों के साथ रेप को IPC की धारा 377 में रखा गया है लेकिन ये धारा तब लगती है जब पुरुष के साथ पुरुष रेप करें। कानून की नजर में महिलाओं को बलात्कारी नहीं माना जाता है।