लम्हों ने खता की थी और सदियों ने सजा पाई ये लाइनें सही साबित होती हैं उस विवाद को लेकर जो कई सालों पहले आज ही के दिन घटित हुआ थ। धर्म जब राजनीति में हथियार की तरह इस्तेमाल होने लगे तो खून सिर्फ और सिर्फ आम जनता का ही बहता है, वैसे तो कैलेंडर पर कई साल दर्ज हो चुके हैं पूरी सदी भी तारीखों की शक्ल में बदल गई है लेकिन भारत के दिल पर लगे दाग हमें याद दिलाते हैं जब सियासत आवाम को फुसलाने में कामयाब हो जाती है तो किस तरह पूरे सामाजिक ताने बाने का अस्तित्व ही बदल जाता है।
आज 6 दिसंबर है। वह तारीख है जब अयोध्या में राम जन्मभूमि पर बने मस्जिद-ए-जन्म अस्थान के ढांचे को ढहा दिया गया था। आज उस घटना को 29 साल हो चुके हैं। इस मौके पर हम एक नजर डालेंगे इतिहास के तकरीबन 450 वर्ष के उन पन्नों पर जिन पर दर्ज है इस घटना के अंजाम से पहले की शुरुआत से कहानी ,साथ ही सरकार , प्रशासन और समाज में हुए घटना क्रमों की जो इस घटना के पीछे से लेकर बाद तक हुए।
ऐतिहासिक तथ्य क्या कहते हैं ?
1527 में फरगना से जब मुस्लिम सम्राट बाबर आया तो उसने सिकरी में चित्तौड़गढ़ के हिंदू राजा राणा संग्राम सिंह को तोपखाने और गोला-बारूद का इस्तेमाल करके हराया। इस जीत के बाद, बाबर ने उस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया, उसने अपने सेनापति मीर बाकी को वहां का सूबेदार बना दिया।
भारत पर कब्जा करने वाले मुग़ल साम्राज्य के पहले तानाशाह बाबर के आदेश पर 1527 ईसवी में इस मस्जिद का निर्माण किया गया था।
इसके निर्माण का जिम्मां मीर बांकी ने लिया था और उसने इसका नाम बाबरी मस्जिद रखा था। 1940 के पहली तक इसे मस्जिद-ए-जन्म अस्थान ही कहा जाता था। जिससे अंदाजा लगाने में अचरज नहीं कि इसका तात्पर्य ईश्वर श्री राम के जन्मस्थल से जोड़ कर देखा जाता था ।
राम जन्मभूमि के दावे और मस्जिद के नाम में भी जन्म अस्थान का प्रयोग किया जाना इसको सैकड़ो वर्षों से विवादित बनाये रखा। जिससे ये जगह हमेशा हिन्दू और मुस्लिमों के बीच अपनी अपनी बताये जाने और मालिकाना हक पाने की लड़ाई चलती रही। हालाँकि इस ढांचे का प्रयोग भी मस्जिद के तौर पर नहीं किया जाता था और इसकी स्थिति भी जर्जर हालत में थी फिर भी इसको लेकर देश और विदेश में अनेक हिंसक घटनाओ को अंजाम दिया गया।
6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों द्वारा बाबरी मस्जिद के विध्वंस के दिन जो कुछ भी हुआ, लिब्रहान रिपोर्ट ने उन घटनाओं की श्रृंखला के टुकड़ों को एक साथ जोड़ दिया था।
लालकृष्ण आडवाणी और अन्य ने रविवार सुबह विनय कटियार के घर पर मुलाकात की। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके बाद वे विवादित ढांचे के लिए रवाना हो गए।
दोपहर में, एक किशोर कारसेवक ने गुंबद के शीर्ष पर छलांग लगा दी और बाहरी घेरे के टूटने का संकेत दिया। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस समय आडवाणी, जोशी और विजय राजे सिंधिया
"... या तो गंभीरता से या मीडिया का फायदा उठाने के लिए, कारसेवकों से नीचे उतरने का औपचारिक अनुरोध किया। गर्भगृह या संरचना में प्रवेश नहीं करने के लिए। पवित्र स्थान।" कारसेवकों से इसे ध्वस्त करने की कोई अपील नहीं की गई। रिपोर्ट में कहा गया है: "नेताओं की इस तरह की चुनिंदा हरकतें विवादित ढांचे को गिराने को पूरा करने के उनके भीतर छिपे इरादों को उजागर करती हैं।"
जैसे ही ये मस्जिद गिरायी गयी देश - विदेश में हिन्दू विरोधी दंगे शुरू हो गए। जिसमें बहुत से लोग मारे गए। औरतों और बच्चियों के बलात्कार कर उन्हें मार डाला गया। सैकड़ों मंदिरों को तोड़ दिया गया। बांग्लादेश की राजधानी ढाका का नाम जिस मंदिर में स्थापित देवी ढाकेश्वरी के नाम पर रखा गया उस मंदिर को भी तोडा गया। बांग्लादेश और पाकिस्तान में भी हिन्दू विरोधी दंगे किये गए और रेप की घटनाएं हुई।
बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन द्वारा 1993 में लिखे गए विवादास्पद बंगाली उपन्यास लज्जा की कहानी विध्वंस के बाद के दिनों पर आधारित है। इसके विमोचन के बाद, लेखक को अपने देश में जान से मारने की धमकी मिली है और तब से वह निर्वासन में रह रही है।
विध्वंस के धुएं के परिणामस्वरूप होने वाली घटनाएं और दंगे बॉम्बे (1995), दैवनमथिल (2005) जैसी फिल्मों की कहानी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं, दोनों ने राष्ट्रीय एकता के लिए सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए नरगिस दत्त पुरस्कार जीता। संबंधित राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार; इसका उल्लेख नसीम (1995), स्ट्राइकर (2010) और स्लमडॉग मिलियनेयर (2008) में भी किया गया था।
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