बृज में हो रहे अवैध खनन के खिलाफ आत्मदाह के कोशिश करने वाले बाबा विजयदास ने अपने प्राण त्याग दिये हैं। शनिवार सुबह दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में करीब तड़के 2.30 बाबा ने अंतिम सांस ली। श्री कृष्ण की लीला स्थली माने जाने वाले आदिबद्री और कनकांचल पर्वत में कई सालों से हो रहे अवैध खनन के विरोध में पसोपा धाम में संत लगभग 550 दिन से आंदोलन कर रहे थे। इसी आंदोलन में 20 जुलाई को बाबा विजयदास ने खुद को आग लगा ली थी। जिनकी शनिवार तड़के मौत हो गई। जानकारी के अनुसार पोस्टमार्टम के बाद उनका शव दिल्ली से भरतपुर लाया जाएगा और बरसाना में उनका दाह संस्कार किया जाएगा।
सूत्रों के अनुसार, बाबा की पार्थिव देह का अंतिम संस्कार बरसाना धाम की माता श्री गौशाला में किया जाएगा। दिल्ली से शव को बरसाना लाया जाएगा. यहां साधु-संत और बाबा विजयदास की पौत्री दुर्गा उनके अंतिम दर्शन करेंगी। उनके आंदोलन स्थल पसोपा में भी आम लोगों को संत के अंतिम दर्शन कराए जाएंगे। मान मंदिर के कार्यकारी अध्यक्ष महंत राधा कांत शास्त्री ने बताया कि ये फैसला साधु-संतों और ग्रामीणों की बैठक के बाद किया गया।
भरतपुर और बृज क्षेत्र में पिछले कई सालों से अवैध खनन किया जा रहा था। विवाद आदिबद्री और कनकांचल पर्वत को लेकर था। आदिबद्री और कनकांचल पर्वत का पौराणिक महत्व बताया गया है और इनको भगवान श्री कृष्ण की लीला स्थली भी माना गया है।
लगभग 550 दिन से साधू संत इस खनन के विरोध में आंदोलन कर रहे थे। सीएम गहलोत और कांग्रेस महासचिव के आश्वासन के बाद भी खनन नहीं रूका।
अंत में बाबा विजय दास ने खनन रोकने के लिए अपने प्राण की आहुति देने का फैसला किया और गत 20 जुलाई को खुद को आग लगा ली। आत्मदाह में बाबा का 85प्रतिशत हिस्सा जल गया था।
आनन - फानन में बाबा को भरतपुर के आरबीएम अस्पताल में भर्ती किया गया। उसके बाद उनको जयपुर के एसएमएस अस्पताल रेफर किया गया लेकिन हालात गंभीर होने पर उनको दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल रेफर कर दिया गया। जहां 23 जुलाई की सुबह बाबा विजयदास की आत्मा ने देह त्याग कर दिया।
हालांकि सरकार ने आत्मदाह की कोशिश वाले दिन ही विवादित क्षेत्र को संरक्षित वन क्षेत्र घोषित करने का एलान कर दिया था।
गौरतलब है कि ये मामला नया नहीं है। अवैध खनन पिछले कई सालों से चल रहा है। वसुंधरा सरकार में भी इसका विरोध किया गया था। 11 जनवरी 2021 से ये आंदोलन लगातार भरतपुर के पसोपा धाम में चल रहा था। लगातार साधु संत अपने पौराणिक विरासतों को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे थे। लेकिन प्रशासन के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही थी।
ऐसा नहीं है कि सीएम को इस मामले के बारे में पता नहीं था या उन्हें सज्ञान नहीं था। खुद मुख्यमंत्री गहलोत और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी इन संतो से मिलकर उनकी समस्याओं, इस अवैध खनन और इन पौराणिक, धार्मिक विरासतों के हालातों को लेकर चर्चा कर चुके थे। लेकिन संतों को दोनों बार सिर्फ आश्वासन ही मिला, कार्रवाई नहीं। इस खनन और श्री कृष्ण की लीला स्थलियों को खत्म करने का खुलासा सिन्स इंडिपेंडेंस ने पहले ही एक खबर में कर दिया था
राज्य सरकार ने बाबा के आत्मदाह के प्रयास वाले दिन ही मीटिंग बुलाई और 15 दिन में विवादित भूमि को संरक्षित वन क्षेत्र का एलान कर दिया।
लेकिन ये सब हुआ बाबा विजयदास के आत्मदाह के बाद। अब सरकार पर सवाल उठना लाजिमी है कि क्या राज्य की गहलोत सरकार ऐसे ही किसी कदम का इंतजार कर रही थी ? लगभग 550 दिन तक आंदोलन चलने के बाद भी क्यों सरकार ने जरूरी कदम नहीं उठाए ? भगवान कृष्ण की लीला स्थलियों के लिए अपने जान की आहुति देने वाले बाबा विजयदास की मौत का आखिरकार जिम्मेदार कौन हैं ? इन सब सवालों के साथ ही राज्य की आम जनता भी एक बड़ा सवाल सरकार से पूछ रही है। क्या हर बार सरकार का ध्यान समस्याओं की ओर खींचने के लिए आमजन को ऐसे ही कदम उठाने पड़ेंगे?
उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने कांग्रेस सरकार को बाबा की मृत्यु के लिए जिम्मेदार ठहराया है और सरकार को आड़े हाथों लिया है। राजेन्द्र राठौड़ ने ट्वीट कर बाबा की मृत्यु को सरकार के माथे पर कलंक बताया है।
राज्य की गहलोत सरकार इस मुद्दे पर पिछले कई सालों से चुप्पी साधे हुए हैं। साधु संत ही नहीं आमजन और खुद कांग्रेस के विधायक सरकार को अवैध खनन के खिलाफ चेता चुके हैं। लेकिन सरकार हर बार मूकदर्शक बनी रहती है।
सरकार की ये चुप्पी सागोंद विधायक भरत सिंह कुन्दपुर के पत्र में किए गए दावों के सच होने की ओर इशारा करती है। विधायक भरत सिंह ने 22 जुलाई को राज्य सरकार को पत्र लिखकर कहा था कि प्रदेश का खनन मंत्री ही तो प्रदेश का सबसे बड़ा खनन माफिया है।
सरकार ने पहले तो अवैध खनन के खिलाफ सिर्फ आश्वासन देने के अलावा कोई और काम नहीं किया। जब काम किया तो उसके एवज में एक साधु की जान ले ली। सरकार का ये रवैया विधायक के पत्र के सच होने, खनन मंत्री प्रमोद जैन भाया तथा सरकार की खनन माफियाओं की साथ मिलीभगत होने की ओर साफ इशारा करता है। सिन्स इंडिपेंडेस पहले ही खनन मंत्री के ही खनन माफिया होने की खबर दिखा चुका है।
बाबा विजय दास भिवानी हरियाणा के बड़वाना गांव के मूल निवासी हैं और 2002 में मान मंदिर बरसाना में आकर संत बन गए थे। इससे पहले वो फरीदाबाद की एक कपड़ा फैक्ट्री में डिजाइनर एक्सपर्ट थे। एक हादसे में उनके पुत्र और पुत्रवधू की मौत हो गई थी, जिसके बाद वह अपनी पौत्री दुर्गा के साथ मान मंदिर बरसाना आकर रहने लगे। यहां आंदोलन के दौरान गांव पसोपा में मंदिर के महंत बनाए गए। फिलहाल उनकी पौत्री दुर्गा मान मंदिर के गुरुकुल में रहती हैं।