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Bharat Jodo Yatra: महबूबा ने राहुल की शान में पढ़े कसीदे; ये रिश्ता क्या कहलाता है?

Mehbooba Mufti News: PDP नेता महबूबा मुफ्ती ने राहुल गांधी और उनकी यात्रा को लेकर ऐसा बयान दिया है, जिसके मायने बहुत कुछ हैं। जानें पूरा बयान और इसके पीछे का खेल।

Om Prakash Napit

Mehbooba Mufti Statement on @RahulGandhihul Gandhi: राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से अब तक कई विवाद जुड़ चुके हैं। अभिनेता कमल हासन, एक्टर सुशांत सिंह, एक्ट्रेस स्वरा भास्कर, पूजा भट्ट आदि सेलीब्रिटीज का यात्रा में शामिल होना बहुत कुछ इशारा कर चुका। ये ऐसे नाम हैं जो गाहे बजाहे मोदी सरकार के खिलाफ जहर उगते रहे हैं।

इन पर टुकड़े-टुकड़े गैंग का हिस्सा होने का आरोप भी लगता रहा है। अब PDP अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती का बयान सामने आया है, जिसमें महबूबा ने राहुल गांधी की शान में जमकर कसीदे पढ़े हैं। साथ ही फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला भी राहुल की यात्रा का समर्थन कर चुके हैं।

गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर से धारा 370 और 35A हटाए जाने, J&K राज्य का विभाजन कर जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख को केन्द्र शासित क्षेत्र बनाने, जम्मू कश्मीर में सेना को फ्री हैंड करने जैसे मोदी सरकार के फैसलों से वहां के अलगाववादी नेता खफा हैं।

महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला मोदी सरकार के इन फैसलों से सबसे ज्यादा खफा हैं। ये लोग ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ते जब पीएम मोदी और केंद्र सरकार को नहीं कोसते हों। ऐसे में महबूबा और अब्दुल्ला का राहुल गांधी और उनकी यात्रा को समर्थन बहुत कुछ संदेश देता है।

यूं भी गुलाम नबी आजाद के कांग्रेस छोड़ने से जम्मू कश्मीर में कांग्रेस एक तरह से नेतृत्व विहीन हो गई थी। ऐसे में अब महबूबा और अब्दुल्ला का राहुल गांधी को समर्थन देना, उनके गुणगान करना भावी गठजोड़ की ओर इशारा करते है। जम्मू कश्मीर में होने वाले आगामी चुनाव में महबूबा, अब्दुल्ला जैसे अलगाववादी नेता कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ सकते हैं।

जानें राहुल को लेकर महबूबा के बोल...

जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और PDP अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने बुधवार को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की जमकर तारीफ की। महबूबा ने पार्टी हेडक्वॉर्टर में कार्यकर्ताओं को संबोधित करने के बाद मीडिया से बातचीत में ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का समर्थन किया।

राहुल गांधी की सराहना करते हुए PDP चीफ ने कहा कि जम्हूरी निजाम, सेक्युलरिज्म और देश को बांटने की कोशिश करने वालों के खिलाफ अकेला यही शख्स आवाज उठा रहा है। महबूबा ने साथ ही आशंका जाहिर की कि सरकार कोविड का बहाना बनाकर ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को रोकने की कोशिश कर सकती है।

महबूबा ने कहा, ‘जम्मू-कश्मीर सेक्युलरिज्म में सब से ज्यादा यकीन रखता है, इसलिए हमारा फर्ज बनता है कि जो शख्स देश की जम्हूरियत, सेक्युलरिज्म, और गंगा-जमुनी तहजीब को बचाने की कोशीश कर रहा है, उसके साथ खड़ा हुआ जाए। मुल्क को बांटने की जो कोशिश हो रही है उसका सबसे ज्यादा खामियाजा जम्मू-कश्मीर के लोगों को भुगतना पड़ेगा।’

महबूबा ने साथ ही यह भी कहा कि हो सकता है कि सरकार आतंकवाद या कोविड का बहाना बनाकर ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को रोकने की कोशिश करे।

राहुल को अब्दुल्ला का भी समर्थन

बता दें कि राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का समर्थन कई अन्य विपक्षी दल भी कर रहे हैं। कांग्रेस के जनरल सेक्रेटरी केसी वेणुगोपाल ने जम्मू कश्मीर के 3 पूर्व मुख्यमंत्रियों, उमर अब्दुल्ला, फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में शामिल होने के फैसले पर खुशी जताई थी। वेणुगोपाल ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर के लोगों को ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का बेसब्री से इंतजार है। यह यात्रा 22, 23 जनवारी को जम्मू-कश्मीर में दाखिल होगी।

जानें कश्मीर मामले में नेहरू की गलतियां

केंद्रीय कानून मंत्री किरेण रिजिजू के अनुसार कश्मीर समस्या तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की देन है। रिजिजू ने 27 अक्तूबर, 2022 को कहा कि कश्मीर पर नेहरू की गलतियों की यह 75वीं वर्षगांठ है। एक ऐसी त्रुटि जिसके लिए भारत और भारतीयों ने 75 वर्षों तक अपने खून से इसका भुगतान किया।

जुलाई 1947 में महाराजा हरि सिंह ने अन्य रियासतों की तरह भारत में शामिल होने के लिए कांग्रेस से संपर्क किया। इस पर नेहरू ने इनकार करते हुए कहा कि उन्हें एक ऐसी आवश्यकता चाहिए जो किसी भी साधन में मौजूद नहीं थी। 20 अक्तूबर, 1947 को पाकिस्तानी हमलावरों ने कश्मीर क्षेत्र पर आक्रमण किया।

नेहरू अभी भी हिचकिचाते रहे और भारत में शामिल होने के कश्मीर के अनुरोध को स्वीकार नहीं किया। 21 अक्तूबर को नेहरू ने आधिकारिक तौर पर महाराजा हरि सिंह के पी.एम. को पत्र लिख कर कहा कि उस समय कश्मीर का भारत में विलय होना वांछनीय नहीं है इसके बावजूद पाकिस्तानी सेना कश्मीर में तेजी से आगे बढ़ती रही।

26 अक्तूबर को पाकिस्तानी सेना ने श्रीनगर को घेर लिया और महाराजा हरि सिंह ने एक बार फिर से भारत में शामिल होने की बेताब अपील की। नेहरू ने जवाब देने में अत्यधिक देरी कर दी। 27 अक्तूबर को शेख अब्दुल्ला पर नेहरू की मांग पूरी होने पर कश्मीर आखिरकार भारतीय संघ में स्वीकार कर लिया गया।

1947 में पंडित नेहरू ने मामले को सरदार पटेल पर छोडऩे की बजाय जम्मू-कश्मीर के एकीकरण को संभालने का फैसला किया जिन्होंने अपनी सभी रियासतों के एकीकरण का प्रबंधन किया। हालांकि 1947 से लेकर 1949 तक की महत्वपूर्ण अवधि के दौरान नेहरू द्वारा की गई पांच ऐतिहासिक भूलों ने न केवल जम्मू-कश्मीर के पूर्ण एकीकरण को रोका बल्कि सुरक्षा खतरों और भारत विरोधी गतिविधियों के लिए एक भूमि तैयार की जिसने इस क्षेत्र को कई दशकों से त्रस्त कर रखा है।

75 वर्षों से एक ऐतिहासिक झूठ का प्रचार किया गया है कि महाराजा हरि सिंह ने भारत में प्रवेश किया था। हालांकि नेहरू के भाषणों और पत्रों से संकेत मिलता है कि उनके निराशाजनक व्यवहार के कारण मामलों से निपटने में देरी हुई और जम्मू-कश्मीर के विलय को लगभग पटरी से उतार दिया गया। महाराजा हरिसिंह जुलाई 1947 में शामिल होने के इच्छुक थे परंतु नेहरू ने मना कर दिया।

24 जुलाई, 1952 में एक भाषण में जवाहर लाल नेहरू ने उल्लेख किया कि महाराजा हरि सिंह ने जुलाई 1947 में ही भारत से संपर्क किया था। हालांकि परिग्रहण को औपचारिक रूप देने की बजाय नेहरू ने कश्मीर को एक विशेष मामला माना और कुछ और अधिक समय मांगा। नेहरू ने जानबूझ कर कश्मीर को एक अनूठा मामला बना दिया। जहां शासक शामिल होने के लिए तैयार था लेकिन केंद्र सरकार ने विलय को अंतिम रूप देने में संकोच किया।

नेहरू ने जानबूझ कर कश्मीर को एक अपवाद बना दिया और शेख अब्दुल्ला के साथ बातचीत करने का फैसला किया। नेहरू ने झूठा प्रचार किया कि शेख अब्दुल्ला राज्य की प्रमुख लोकप्रिय आवाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। विभाजन के बाद हुए रक्तपात और हिंसा के बावजूद नेहरू जम्मू-कश्मीर के विलय के लिए पूर्व शर्तों को बनाने पर अड़े रहे। वह चाहते थे कि महाराजा भारत में विलय से पहले एक अंतरिम सरकार की स्थापना करें। वहीं नेहरू इस बात पर अड़े थे कि शेख अब्दुल्ला को अंतरिम सरकार का नेतृत्व करना चाहिए।

पाकिस्तान के हमलावरों ने 20 अक्तूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर में प्रवेश किया और तेजी से राज्य के क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। हालांकि तेजी से विलय को औपचारिक रूप देने और जम्मू-कश्मीर को सैन्य सहायता देने की बजाय नेहरू ने परिग्रहण के लिए पूर्व शर्तों को चित्रित करना जारी रखा। यही देरी भारत के लिए महंगी साबित हुई जिससे पाकिस्तानी सेना को अपनी स्थिति मजबूत करने और आगे बढऩे का मौका मिला।

26-27 अक्तूबर को जब पाकिस्तानी सेना श्रीनगर से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर पहुंची थी तब नेहरू को विलय स्वीकार करने में अपने पर भरोसा नहीं था। नेहरू ने ये मिथक बनाया कि जम्मू-कश्मीर के विलय सशर्त और अस्थायी था। एक जनवरी, 1948 को नेहरू ने कश्मीर पर यू.एन.एस.सी. से संपर्क करने का फैसला किया। संयुक्त राष्ट्र ने हस्तक्षेप करने का फैसला किया और भारत तथा पाकिस्तान के लिए संयुक्त राष्ट्र आयोग का गठन किया।

पिछले कई दशकों से जम्मू-कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों ने भारत की स्थिति को कमजोर कर दिया है। एक लोकप्रिय मिथक के विपरीत यू.एन.सी.आई.पी. का जनमत संग्रह करवाने का सुझाव भारत के लिए बाध्यकारी नहीं है। यू.एन.सी.आई.पी. ने खुद इस बात को स्वीकार किया है। 3 अगस्त 1948 को यू.एन.सी.आई.पी. ने 3 भागों के साथ एक प्रस्ताव पारित किया जिसे क्रमिक रूप से पूरा किया जाना था।

एक जनवरी, 1949 को भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम किया गया था। हालांकि पाकिस्तान अपने सैनिकों को उचित रूप से वापस लेने में असफल रहा। इस मामले पर यू.एन.सी.आई. पी. की स्पष्ट नीति के बावजूद कि जनमत संग्रह विफल है, एक ऐतिहासिक मिथक का प्रचार किया गया है कि भारत एक जनमत संग्रह आयोजित करने के लिए बाध्य है।

306 ए जो बाद में धारा 370 बन गया, के विभिन्न प्रारूप एन. गोपाल स्वामी अयंगर शेख अब्दुल्ला के बीच कई दौर के आदान-प्रदान के बाद तैयार किए गए थे। अंतिम मसौदा शेख अब्दुल्ला द्वारा की गई विभिन्न मांगों की एक रियायत और स्वीकृति थी।

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