अवैध खनन के खिलाफ 550 दिन से चल रहा धरना समाप्त  Image Credit: HT photo
राष्ट्रीय

बृज 84 कोसः खनन की जलन के बाद सरकार ने सुनी संतो की मांगे, 15 दिन में घोषित होगा वन संरक्षित क्षेत्र

लगभग 550 दिन से चल रहा अवैध खनन के खिलाफ धरना सरकार से समझौते के बाद खत्म हुआ। पर्यटन मंत्री ने 15 दिन में विवादित क्षेत्र को संरक्षित वन क्षेत्र घोषित करने और लीज को दो महीने में शिफ्ट करने का आश्वासन दिया है।

Ravesh Gupta

बृज चौरासी में लगातार कई सालों से हो रहे खनन के खिलाफ चल रहा आंदोलन आखिर सफल हुआ है। लगभग 550 दिन आंदोलन करने, एक संत के टॉवर पर चढ़ने और एक संत के द्वारा आत्मदाह का प्रयास करने के बाद सरकार ने इन साधुओं की मांगे मान ली हैं।

संतो की पर्यटन मंत्री, संभागीय आयुक्त और आईजी से हुई वार्ता के बाद इन प्रमुख तीन मांगो पर समझौता हुआ है कि आदिबद्री – कनकांचल को 15 दिन में नोटिफिकेशन जारी कर वन क्षेत्र घोषित किया जाएगा। खनन को तुरंत प्रभाव से बंद कर दिया जाएगा और लीज को शिफ्ट किया जाएगा।

749 हेक्टेयर क्षेत्र घोषित होगा वन क्षेत्र

बृज चौरासी कोस में पिछले कई सालों से अवैध खनन चल रहा था। आदिबद्री और कनकांचल पहाड़ियों को खनन माफिया अपने स्वार्थ के लिए छलनी कर रहे थे। लेकिन अब इस आंदोलन के बाद सरकार ने संतो की गुहार को सुन लिया है।

रिपोर्ट्स के अनुसार आदिबद्री और कनकांचल में 749 हेक्टेयर को वन क्षेत्र घोषित किया जाएगा । बताया जा रहा है कि समझौते में 15 दिन के अंदर नोटिफिकेशन जारी कर विवादित क्षेत्र को वन क्षेत्र घोषित करने की बात कही गई है।

सरकार ने किए ये तीन मुख्य समझौते

पिछले लगभग 551 दिन से बृज चौरासी को बचाने के लिए और खनन को रोकने लिए साधू संत आंदोलन कर रहे थे। आंदोलन के दौरान बाबा विजयदास के आत्मदाह के प्रयास के बाद सरकार की तंद्रा टूटी और सरकार ने संतो से तीन मुख्य समझौते किए हैं। ये तीन समझौते इस प्रकार हैं -

पहला समझौता -

आदिबद्री और कनकांचल में 749 हेक्टेयर क्षेत्र को वन क्षेत्र घोषित किया जाएगा। 15 दिन में नोटिफिकेशन जारी कर इस पर कार्रवाई की जाएगी।

दूसरा समझौता -

विवादित क्षेत्र पर खनन को रोक जाएगा। फिलहाल जिन जगहों पर लीज है उसको 2 महीने के अंदर दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया जाएगा।

तीसरा समझौता -

कनकांचल और आदिबद्री जो कि स्थानीय लोगों और संतो के लिए अंत्यंत पूज्यनीय है, इस क्षेत्र को देवस्थान घोषित किया जाएगा। साथ ही इस क्षेत्र को पर्यटन विभाग द्वारा धार्मिक तीर्थ स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा।

कलेक्टर ने आदेश पढ़ा तब जाकर माने संत

बुधवार 20 जुलाई को आंदोलन के दौरान संत बाबा विजयदास के खुद को आग लगाने के बाद प्रशासन पसोपा धाम पहुंचा और संतो से समझाइश शुरू की। हालांकि पर्यटन मंत्री विश्वेन्द्र सिंह पिछले तीन से भरतपुर में मौजूद थे और संतो से समझाइश की थी।

20 जुलाई जब एक संत ने आग लगा ली और सरकार को आंदोलन की गंभीरता महसूस हुई और संतो से समझौता वार्ता करने कलेक्टर, आईजी सहित सूबे का तमाम प्रशासन पहुंच गया।

पूरे घटनाक्रम को लेकर बुधवार दोपहर को ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने खनन, गृह और अन्य विभाग की बैठक ली थीं उसके बाद इस बैठक में हुए फैसले को भरतपुर कलक्टर के पास भेजा गया था।

यह फैसला भरतपुर कलेक्टर ने सभी संतों को पढ़कर सुनाया तब जाकर संतों ने धरना स्थल को छोड़ा। कलक्टर आलोक रंजन ने पढ़कर सुनाया कि सरकार ने निर्देश दिए हैं कि 15 दिन में आदिबद्री धाम और कनकांचल पर्वत क्षेत्र को सीमांकित कर वन क्षेत्र घोषित करने की कार्रवाई की जाएगी।

सरकार आदिबद्री धाम और कनकांचल पर्वत क्षेत्र में संचालित वैध खदानों को अन्य स्थान पर पुनर्वासित करने की योजना बनाएगी।

एक संत टॉवर पर चढ़े, दूसरे ने आग लगाई तब टूटी सरकार की तंद्रा

ये आंदोलन कुछ महीनों नहीं कई महीनों से चल रहा था। 11 जनवरी 2021 को बाबा हरिबोल ने सरकार के खिलाफ आवाज उठाना शुरू किया था। संतो पिछले लगभग 551 दिन से बृज के पसोपा धाम में आंदोलन कर रहे थे और अपने पूज्य आदिबद्री और कनकांचल को बचाने के लिए आवाज उठा रहे थे।

आंदोलनकारियों से प्रियंका गांधी और सीएम गहलोत मिले जरूर लेकिन खनन नहीं रूका। उसके बाद एक संत टॉवर पर चढ़ गए। अब एक संत ने जब अपनी जान की बाजी लगाई तब जाकर इस मूक प्रशासन और सरकार की नींद खुली और तुरंत खनन के मामले पर मीटिंग बुलाई। मीटिंग के बाद विवादित क्षेत्र को वन क्षेत्र घोषित करने का फैसला लिया गया।

2009 में संरक्षित वन क्षेत्र से छूट गए थे दोनों पहाड़

वर्ष 2009 में भी भरतपुर के डीग व कामां तहसील में पड़ रहे ब्रज के धार्मिक पर्वतों को संरक्षित वन क्षेत्र घोषित किया गया था, पर उस समय तहसील अंतर होने से ब्रज के प्रमुख पर्वत कनकांचल और आदिबद्री का कुछ हिस्सा संरक्षित वन क्षेत्र होने से छूट गया था।

इसके कारण वहां बहुत बड़ी मात्रा में खनन जारी है। लेकिन अब कनकांचल और आदिबद्री पर्वत के क्षेत्र को वन संरक्षित भूमि का दर्जा देने से यहां खनन नहीं हो पाएगा। सुप्रीम कोर्ट के 1996 के एक आदेश के अनुसार संरक्षित वन क्षेत्र में खनन नहीं किया जा सकता।

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