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kamlesh kumari _ rubiya saeed 

 
राष्ट्रीय

13 दिसंबर : आतंक से जुडी आज की दो कहानियां ,संसद हमले की बरसी से लेकर कश्मीरी मंत्री की बेटी के अपहरण तक

Prabhat Chaturvedi

आज की तारीख को लेकर इतिहास के पन्ने पलटने पर हम दो कहानियां पाते हैं आतंक से जुडी घटनाओें को लेकर । दोनों की कहानी भारत के दो सबसे खास जगहों से जुडी है । एक हमला लोकतंत्र के मंदिर कहे जाने वाले संसद पर हुआ था । दूसरी घटना कश्मीर से जुडी है । जहां एक ओर एक बेटी की वजह से आतंक के मंसूबे सफल नहीं हो सके थे तो वहीं दूसरी ओर एक बेटी की रिहाई की कीमत आतंकियों की रिहाई के बदले हुई थी।

कहानी 2001 के 13 दिसम्बर की

सफेद रंग की एम्बेस्डर कार 13 दिसम्बर की सुबह सुरक्षाकर्मियों को गच्चा देकर संसद भवन में घुसी । लेकिन इससे पहले कि लोकतंत्र का मंदिर अपवित्र होता सुरक्षाबलों ने मोर्चा संभाल कर आतंकियों को मार गिराया । संसद पर हुए इस हमले के दौरान शहीद हुई कमलेश कुमारी को मरणोपरांत उनकी वीरता के लिए अशोक चक्र से सम्मानित किया गया वो पहली भारतीय महिला कांस्टेबल थीं जिनको यह सम्मान प्राप्त हुआ ।

shaheed kamlesh kumari 

कहानी विस्तार से

सुबह के 11 बजकर 25 मिनट हुए थे , संसद के भीतर शीतकालीन चक्र चल रहा था । कार्यवाही स्थगित हुए 40 मिनट गुजर चुके थे । 200 के करीब सांसद तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी समेत संसद के अंदर मौजूद थे । CRPF की महिला कांस्टेबल कमलेश कुमारी पर मुस्तैद थीं । उसी वक्त एक सफेद अंबेस्डर कार गेट नंबर एक पर आकर रूकी ।

इस कार में AK-47 और हैंड ग्रेनेड से लैस 5 आतंकी मौजूद थे । उन पांचो आतंकियों ने सुरक्षाकर्मियों को चकमा देने के लिेए सेना की वर्दी पहन रखी थी । लेकिन कमलेश कुमारी की पारखी नजर को आतंकी धोखा देने में सफल नहीं हो सके । जैसे ही आतंकी कार से निकलकर संसद में घुसने लगे , कमलेश कुमारी को उनके आतंकी होने की शंका हो गई ।

परंपरागत तौर पर संसद भवन में तैनात होने वाली महिला जवानों के पास कोई हथियार नहीं होता । कमलेश कुमारी के हांथ में सिर्फ वॉकी -टॉकी था । फौरन जोर जोर से चिल्लाकर अपने साथी कांस्टेबलों को अलर्ट किया । एक आतंकी ने भी उनकी आवाज सुन ली और उसने कमलेश कुमारी पर गोलियों की बौछार कर दी । 11 गोली लगने के बाद भी घायल कमलेश कुमारी ने हिम्मत जुटाकर किसी तरह अलार्म बजाकर सभी को सावधान कर दिया ,फौरन संसद की सुरक्षा मशीनरी हरकत मे आई ।

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वहीं, उनके साथी सुखविंदर सिंह ने दौड़कर संसद भवन के अंदर जाने के सभी गेट बंद कर दिए। तब तक पूरे संसद भवन में आतंकी हमले का हल्ला मच चुका था। इस दौरान आतंकियों और सुरक्षाबलों के बीच 45 मिनट तक मुठभेड़ हुई। इस दौरान, सुरक्षाकर्मियों ने पाँच आतंकियों को मार गिराया था। हमले के बाद 15 दिसंबर 2001 को दिल्ली पुलिस ने आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सदस्य और इस हमले के मास्टरमाइंड अफ़जल गुरू को जम्मू-कश्मीर से पकड़ लिया था।

कमलेश कुमारी को गोली मारने वाले आतंकी को सााथी जवान सुखविंदर ने ढेर किया था । एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार

सुखविंदर के हवाले से बताया गया , , “उन्होंने फिदायीन हमलावर को लेकर सिक्योरिटी को अलर्ट कर दिया। लेकिन वह निहत्थी थीं और खुले में होने के कारण उसकी आवाज़ आतंकी के कानों तक भी पहुॅंची। इससे पहले कि हमारी तरफ से कोई प्रतिक्रिया दी जाती उस आतंकी ने उनके पेट में गोली मार दी। यह आतंकी संसद के भीतर घुसने की फिराक में था। ।” यदि उस आतंकी पर कमलेश की नज़र नहीं पड़ती, उसे मार गिराया नहीं जाता और वह ख़ुद को उड़ा लेता तो नुक़सान कहीं ज़्यादा होता ”

शहीद कमलेश कुमारी के बारे में उनके परिवार वाले बताते हैं कि उन्हे बचपन से ही वर्दी से प्यार था । शादी के बाद उनका ये सपना पूरा हुआ , उनकी पहली पोस्टिंग इलाहाबाद में हुई थी । 2001 जुलाई से उनकी तैनाती संसद की सुरक्षा में की गई थी ।

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कहानी 13 दिसंबर से जुडे कश्मीर मे हुई आतंकी घटना की

1989 में, आतंकवादियों ने देश के तत्कालीन गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबिया सईद का अपहरण उसके कुछ साथियों को छुड़ाने के लिए किया था।13 दिसंबर को सरकार ने आतंकियों की मांग मान ली और पांचों आतंकियों को रिहा कर दिया |

इधर, मुफ्ती मोहम्मद सईद का परिवार आज भी राजनीति में सक्रिय है। सईद अब इस दुनिया में नहीं रहे। उनकी राजनीतिक विरासत बेटी महबूबा मुफ्ती के हाथों में है। वह जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। उनकी बहन रुबिया सार्वजनिक चर्चाओं से दूर रहती हैं। दैनिक भास्कर की 2016 की एक रिपोर्ट के अनुसार पेशे से डॉक्टर रुबिया अपने पति और दो बेटों के साथ चेन्नई में रहती हैं। उनके परिवार को वहां भी सुरक्षा मिली है |

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