जन्माष्टमी 2022: श्री वृंदावन धाम बृज की ऐसी पवित्र भूमि है, जिसके पांव धरने मात्र से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। यहां आकर हर कोई श्री बांके बिहारी जी के दर्शन कर अपना उद्धार करना चाहता है।
ऐसा माना जाता है कि वृंदावन में स्थित श्री बांके बिहारीजी मंदिर का निर्माण 1921 के आसपास स्वामी श्री हरिदास जी के वंशजों के सामूहिक प्रयासों से हुआ था।
वैष्णव स्वामी हरिदास जी का जन्म संवत 1536 में भाद्रपद के शुक्ल पक्ष में अष्टमी के दिन वृंदावन के पास राजपुर नामक गाँव में हुआ था। उनके देवता श्री कृष्णजी थे।
हरिदासजी को रासनिधि सखी का अवतार माना जाता है। बचपन से ही उनका संसार से वैराग्य हो गया था।
किशोरावस्था में उन्होंने अपने गुरु आशुधीर जी से दीक्षा ली और बिहारी जी की लीलाओं और यमुना के पास निकुंज में एकांत स्थान पर उनके ध्यान में लीन रहने लगे।
स्वामी हरिदासजी के सपने में दिखा था कि निकुंज वन में ही बिहारी जी की मूर्ति दब हुई है। सपने के अनुसार वन में खुदाई की गई और वहां से एक सुंदर काले-भूरे रंग की छवि वाले को जमीन से बाहर निकाली। यह सुन्दर मूर्ति ही श्री बांके बिहारी जी के नाम से विश्व में प्रसिद्ध हुई।
मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी तिथि को ठाकुर जी की इस मूर्ति का प्राकट्य हुआ था। इसलिए वृंदावन में प्राकट्य तिथि बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है।
युगल किशोर राधा कृष्ण की संयुक्त छवि के कारण बांके बिहारी की छवि के बीच दिव्य अलौकिक प्रकाश की अनुभूति होती है, जो बांके बिहारी जी में राधा तत्व का प्रतीक है।
श्री बांके बिहारी जी मंदिर में रात्रि में कृष्ण जन्माष्टमी पर ठाकुर जी का महा अभिषेक पूरे विधि-विधान से करने के बाद ही मंगला आरती की जाती है।
जन्माष्टमी 2022: इसलिए यहां नहीं होती है मंगला आरती
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार एक दिन हरिदासजी एक दिन प्रातः स्नान करके अपनी कुटिया में लौट आए। तो उन्होंने देखा कि कोई उसके बिस्तर पर सो रहा है, उनकी आंखों की रोशनी कमजोर हो गई है, इसलिए वो ठीक से देख नहीं पा रहे थे और उनके आते ही सोया हुआ व्यक्ति वहां से उठकर चला गया।
हरिदास जी को कुछ समझ नहीं आया, लेकिन तभी मंदिर से भागते हुए एक पुजारी वहां आ गया।
स्वामीजी ने कहा कि अब कोई मेरे बिस्तर पर सो रहा था, मेरे आने के बाद वह चला गया और जाते-जाते अपना कुछ सामान वहीं छोड़ गया।
जब पुजारी ने पास जाकर देखा तो बिहारी जी की चूड़ियां और बंसी थी, जिससे यह साबित हो गया कि रासलीला के बाद बिहारी जी नियमित रूप से यहां विश्राम करने आते हैं।
तब पता चला कि सुबह-सुबह मंगला आरती होने के कारण ठाकुर जी को निधिवन मंदिर से बांके बिहारी मंदिर आने की जल्दी है।
और आनन-फानन में उसकी चूड़ियां और बंसी वहीं छोड़ गए। तब से यह निर्णय लिया गया कि ठाकुरजी बांके बिहारी मंदिर में एक बच्चे के रूप में हैं और मंगला आरती उनकी नींद में खलल डालती है, इसलिए यहां हर रोज मंगला आरती नहीं की जाती है।