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J&K Assembly Election : मिशन कश्मीर...आजाद का 'तरकस', भाजपा के 'तीर'

जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने के लिए पूरा दमख्रम लगा रही मोदी सरकार वहां चुनावी बिसात बिछा चुकी है। मिशन कश्मीर फतह के लिए उसे एक कद्दावर साथी की तलाश थी जो अब पूरी होती दिख रही है। गुलाब नबी आजाद के कांग्रेस से इस्तीफा देकर J&K में नई पार्टी बनाने की घोषणा से भाजपा के मंसूबे पूरे होते दिख रहे हैं।

Om Prakash Napit

जम्मू कश्मीर में संभवत: इसी साल अंत तक विधानसभा चुनाव हो सकते हैं। खुद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह जनवरी में ही इस बाबत घोषणा कर चुके हैं। गुजरात और हिमाचल प्रदेश में भी वर्ष 2022 में ही विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन पूरे देशवासियों समेत सभी राजनीतिक दलों की निगाहें जम्मू कश्मीर के संभावित चुनावों पर टिकी हुई हैं। विशेषकर भारतीय जनता पार्टी। भाजपा नीत केंद्र सरकार के लिए J&K में चुनाव कराना और वहां भाजपा की जड़ें मजबूत करना एक चेलेंज है और इस चेलेंज को कामयाबी में बदलने के लिए खुद पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह पूरी तैयारी के साथ जुटे हुए हैं।

बिछाई जा चुकी है चुनावी चौसर

अब बात आती है मिशन कश्मीर फतह की तो भाजपा काफी अर्से से इसकी तैयारी में जुटी है। चुनावी चौसर बिछाई जा चुकी है और गोटियां भी तैयार हैं। गुलाम नबी आजाद का कांग्रेस छोड़कर J&K में नई पार्टी बनाने के ऐलान के पीछे भाजपा का छिपा एजेंडा बताया जा रहा है। जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके दिग्गज कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद का दो दिन पहले 29 अगस्त का बयान- ‘मैं तो मोदी जी को क्रूर आदमी समझता था। मुझे लगता था कि उन्होंने शादी नहीं की है और उनके बच्चे नहीं हैं तो उन्हें कोई परवाह नहीं है, लेकिन कम-से-कम इंसानियत तो उनमें है।' नए चुनावी समीकरण की ओर इशारा करता है।

J&K में गुलाम नबी का कद बड़ा

इसके बाद सियासी हलके में चर्चा है कि J&K में चुनाव बाद भाजपा गठबंधन कर गुलाम नबी आजाद को मुख्यमंत्री बना सकती है। गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर में गुलाम नबी आजाद का कद काफी बड़ा है। यह इस बात से भी पता चलता है कि गुलाम नबी के बाद जम्मू कश्मीर में कांग्रेस के 64 बड़े नेताओं ने उनके समर्थन में एक साथ इस्तीफे दिए। इनमें पूर्व डिप्टी CM तारा चंद, पूर्व मंत्री माजिद वानी, घारू चौधरी आदि बड़े नाम शामिल हैं।

BJP को घाटी में एक साथी की जरूरत

भाजपा को जम्मू कश्मीर में सरकार बनाने के लिए घाटी में एक साथी की जरूरत है। ऐसा साथी जो दिखने में BJP से अलग हो, लेकिन अंदर से उसके साथ हो। भाजपा के इस सपने को गुलाम नबी आजाद ही पूरा कर सकते हैं।’ पिछले साल भर में गुलाम नबी आजाद जम्मू कश्मीर में करीब 100 से ज्यादा रैलियां कर चुके हैं। ऐसे में साफ है कि वह यहां की राजनीति में एंट्री करने वाले हैं। आजाद की पार्टी कश्मीर में 10 या इससे ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब होती है तो इससे BJP की मदद से सरकार भी बन सकती है। प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले आजाद की पार्टी शायद BJP से किसी तरह का गठबंधन नहीं करे, लेकिन चुनाव के बाद ऐसा हो सकता है। यहां लोग नए विकल्प की तालाश में हैं ऐसे में पुराने नेता होने और कश्मीरियत की बात करने की वजह से आजाद की पार्टी को लाभ मिल सकता है।

एक तीर से कई निशाने

चुनाव बाद गुलाम नबी आजाद को जम्मू कश्मीर का मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा एक तीर से कई निशाने साधेगी। आजाद को J&K में CM बनाकर भाजपा एक ओर तो वहां के पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस जैसे स्थानीय दलों, जो कि जम्मू कश्मीर का माहौल खराब करने में जुटे हैं, की आवाज दबाने में सफल होगी, वहीं J&K में शांति बहाली का काम और तेजी से कर सकेगी। J&K में सरकार बनने के बाद वहां आतंकवाद पर भी कड़ाई से काबू पाया जा सकेगा, क्योंकि कुछ कट्टरवादी स्थानीय नेता ही वहां आंतक को पोषित कर रहे हैं। इसके अलावा सत्ता में शामिल होकर भाजपा वहां अपनी पकड़ मजबूत कर सकेगी।

आंसू से इस्तीफे तक; जानें यूं बिछी चुनावी चौसर?

फरवरी 2021: आजाद की राज्यसभा से विदाई, भावुक हुए PM मोदी

15 फरवरी 2021 के दिन गुलाम नबी आजाद के राज्यसभा का कार्यकाल खत्म हुआ। विदाई कार्यक्रम में PM नरेंद्र मोदी ने भावुक भाषण दिया, उनके आंसू छलक पड़े। उन्होंने कश्मीर में हुए एक धमाके को याद करते हुए CM रहते हुए गुलाम नबी आजाद की शानदार भूमिका को लेकर उनकी जमकर तारीफ की।

सितंबर 2021: गुलाम नबी को नहीं कश्मीर प्रभारी को बनाया राज्यसभा उम्मीदवार

सितंबर 2021 में महाराष्ट्र के राज्यसभा 7 सीटों के लिए चुनाव होने थे, जिसमें कांग्रेस के हिस्से में 2 सीट आनी थीं। गुलाम नबी को कैंडिडेट बनाए जाने की उम्मीद थी, लेकिन कांग्रेस ने उनकी जगह जम्मू-कश्मीर की प्रभारी रजनी पाटिल को टिकट दे दिया।

मार्च 2022: गुलाम नबी को मोदी सरकार ने दिया पद्म भूषण, कांग्रेस नेता ने किया पलटवार

52 साल कांग्रेस के सिपाही रहे गुलाम नबी को 21 मार्च 2022 को मोदी सरकार ने समाज सेवा का पद्म भूषण दिया। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस पर तंज कसा था। रमेश ने बंगाल के पूर्व CM बुद्धदेव भट्टाचार्य के पद्म भूषण पुरस्कार को अस्वीकार करने के फैसले याद करते हुए कहा था, 'उनका यह फैसला सही था, वह गुलाम नहीं आजाद होना चाहते थे।'

वे 3 घटनाएं जिससे BJP और आजाद की नजदीकी के मिलते हैं संकेत

  1. 5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने संविधान से अनुच्छेद 370 और आर्टिकल 35A को खत्म कर दिया। इसके बाद महबूबा मुफ्ती, फारुख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला समेत सभी बड़े नेताओं को हिरासत में लेकर नजरबंद किया गया था, लेकिन गुलाम नबी इस वक्त भी आजाद थे।

  2. फरवरी 2022 के बाद गुलाम नबी आजाद लोकसभा और राज्यसभा किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं। उनके पास कोई दूसरा अहम पद भी नहीं है। इसके बावजूद लुटियंस में उनका बंगला खाली नहीं कराया गया। अगस्त 2022 में ही उनके बंगले का एक्सटेंशन दे दिया गया।

  3. 29 अगस्त को गुलाम नबी आजाद ने एक सवाल के जवाब में कहा, 'मैं तो मोदी जी को क्रूर आदमी समझता था। मुझे लगता था कि उन्होंने शादी नहीं की है और उनके बच्चे नहीं हैं तो उन्हें कोई परवाह नहीं है, लेकिन कम से-कम इंसानियत तो उनमें है।'

गुलाम नबी आजाद कह चुके- जल्द शुरू करेंगे नई पारी, जम्मू-कश्मीर में बनाएंगे नई पार्टी

कांग्रेस से इस्तीफा देने वाले वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने शुक्रवार, 26 अगस्त को कहा कि वे जम्मू कश्मीर में जल्द ही अपनी नई पार्टी बनाएंगे। आजाद ने कहा कि वह अपने समर्थकों तथा लोगों से मुलाकात करने के लिए जल्द ही जम्मू कश्मीर जाएंगे। उन्होंने कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी को अपना इस्तीफा भेजने के बाद टीवी चैनलों को यह जानकारी देते हुए बताया कि मैं भारतीय जनता पार्टी में शामिल नहीं होऊंगा। पार्टी में बदलाव की मांग करने वाले जी-23 समूह में शामिल आजाद ने कहा कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) को संचालित कर रहे कुछ लोगों द्वारा नियंत्रित कांग्रेस ने भारत के लिए हितकारी मुद्दों की खातिर लड़ने की इच्छाशक्ति और क्षमता खो दी है।

आजाद ने कहा कि कांग्रेस में हालात अब ऐसी स्थिति पर पहुंच गए हैं, जहां से वापस नहीं आया जा सकता। उन्होंने कहा कि पार्टी में नेतृत्व के लिए परोक्ष तौर पर अपने प्रतिनिधियों को आगे बढ़ाया जा रहा है। उन्होंने पार्टी के साथ बड़े पैमाने पर हुए धोखे के लिए नेतृत्व को पूरी तरह से जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि एआईसीसी के चुने हुए पदाधिकारियों को एआईसीसी का संचालन करने वाले कुछ लोगों द्वारा तैयार की गई सूचियों पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया।

5 दिन में 2 बार आजाद से मिले आनंद, उठ रहे सवाल

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद के पार्टी छोड़ने के बाद एक और सीनियर लीडर आनंद शर्मा भी बगावती मूड में दिख रहे हैं। हिमाचल प्रदेश से आने वाले शर्मा आज बुधवार को पार्टी के मेनिफेस्टो प्रोग्राम से किनारा कर लिया। वे इसमें शामिल ही नहीं हुए। इससे पहले शर्मा ने 21 अगस्त को हिमाचल कांग्रेस की संचालन समिति के अध्यक्ष पद से भी इस्तीफा दे दिया था। गुलाम नबी आजाद के कांग्रेस छोड़ने के बाद पिछले 5 दिनों में आनंद शर्मा उनसे दो बार मिल चुके हैं। मंगलवार को आनंद शर्मा और भूपिंदर सिंह हुड्डा आजाद से मिलने पहुंचे थे। तीनों के बीच करीब 2 घंटे तक बातचीत हुई। इससे पहले, आनंद शर्मा 27 अगस्त को आजाद से मिलने उनके सरकारी आवास गए थे। इसे लेकर भी कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं।

कांग्रेस को एक और झटका, तेलंगाना में पूर्व राज्यसभा सदस्य खान ने छोड़ी पार्टी

दो बार के पूर्व राज्यसभा सदस्य एमए खान ने आज बुधवार को कांग्रेस छोड़ दी। राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजे पत्र में उन्होंने कहा कि पार्टी को जमीनी स्तर से फिर खड़ी करने के लिए कोई प्रयास नहीं हो रहे हैं। खान ने आरोप लगाया कि पार्टी ने कैडर के साथ अपने जमीनी संबंध खो दिए और जनता को यह समझाने में पूरी तरह से विफल रही है कि वह अपना खोया हुआ गौरव फिर से हासिल कर सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी की भलाई के लिए वरिष्ठ नेताओं द्वारा उठाई गई आवाज को शीर्ष नेताओं ने 'असंतुष्टों की गतिविधि' के रूप में देखा। खान ने आरोप लगाया कि वरिष्ठ नेताओं की सलाहों की उपेक्षा की गई। कांग्रेस और 10, जनपथ स्तर पर एक मंडली को प्रोत्साहित किया गया।

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