पद्म विभूषण से सम्मानित 83 साल की उम्र में अंतिम सांस  ली। 

राष्ट्रीय

प्रसिद्ध कथक सम्राट पद्म विभूषण बिरजू महाराज का 83 साल की उम्र में हार्ट अटैक से निधन‚ जानिए कैसा रहा ब्रजमोहन से बिरजू महाराज बनने का सफर

बिरजू महाराज ने महज 16 वर्ष की उम्र में ही अपनी पहली प्रस्तुति दी थी और 28 वर्ष तक की उम्र में कथक में उनकी निपुणता ने उन्हें ‘संगीत नाटक अकादमी’ का प्रतिष्ठित पुरस्कार दिलवा दिया।

ChandraVeer Singh

प्रख्यात कथक नृत्यांगना पंडित बिरजू महाराज का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। पद्म विभूषण से सम्मानित 83 वर्षीय बिरजू महाराज ने रविवार और सोमवार की दरम्यानी रात दिल्ली के साकेत अस्पताल में अंतिम सांस ली। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, गायिका मालिनी अवस्थी और अदनान सामी ने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए उन्हें श्रद्धांजलि दी है।

महाराज की पोती ने बताया कि महाराज-जी परिवार और शिष्यों से घिरे हुए थे और वे डिनर के बाद 'अंताक्षरी' खेल रहे थे कि अचानक उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया।

महाराज डिनर के बाद 'अंताक्षरी' खेल रहे थे...
बिरजू महाराज की पोती रागिनी ने बताया कि महाराज का एक महीने से इलाज चल रहा था। बीती रात करीब सवा सवा 12 से साढ़े 12 बजे उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। महाराज की पोती ने बताया कि महाराज-जी परिवार और शिष्यों से घिरे हुए थे और वे डिनर के बाद 'अंताक्षरी' खेल रहे थे कि अचानक उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया। वह किडनी की बीमारी से पीड़ित थे और उनका डायलिसिस उपचार चल रहा था। उनकी पोती ने कहा कि संभवत: कार्डियक अरेस्ट से उनकी मौत हुई है। हालांकि, हम उसे तुरंत अस्पताल ले गए लेकिन हम उसे बचा नहीं पाए।
16 वर्ष की उम्र में दी थी पहली प्रस्तुति, 28 की उम्र में हासिल ​​कर लिया था संगीत नाटक अकादमीका प्रतिष्ठि​त पुरस्कार
बिरजू महाराज ने महज 16 वर्ष की उम्र में ही अपनी पहली प्रस्तुति दी थी और 28 वर्ष तक की उम्र में कथक में उनकी निपुणता ने उन्हें ‘संगीत नाटक अकादमी’ का प्रतिष्ठित पुरस्कार दिलवा दिया। शास्त्रीय नृत्य में बिरजू महाराज फ्यूजन से भी हाथ अजमाया और उन्होंने लुई बैंक के साथ रोमियो और जूलियट की कथा को कत्थक शैली में भी प्रस्तुत किया था।

एक साक्षात्कार में बिरजू महाराज ने कहा था कि मुझे पतंग उड़ाना पसंद था, लेकिन अम्मा को पतंग उड़ाना और गिल्ली-डंडा खेलना बिल्कुल भी पसंद नहीं था.....।

मेरा जब जन्म जिस अस्पताल में हुआ उस दिन अस्पताल में सभी कन्याएं जन्मी थी, इसलिए मेरा नाम ब्रजमोहन रखा
एक साक्षात्कारके दौरान बिरजू महाराज ने कहा था कि 'जब मेरा जन्म 4 फरवरी 1938 को लखनऊ के एक अस्पताल में हुआ था...., उस दिन वहां सभी लड़कियों का जन्म हुआ था..., इसलिए मेरा नाम बृजमोहन था....। फिर कहा कि गोपियों में मैं बृजमोहन हूं.....। बाद में मुझे बिरजू कहा जाने लगा। ....पिता अचन महाराज और चाचा शंभू महाराज का नाम देश के प्रसिद्ध कलाकारों में शुमार था....। लय का परिचय बचपन से ही आंख-कान से होता था। मुझे पतंग उड़ाना पसंद था, लेकिन अम्मा को पतंग उड़ाना और गिल्ली-डंडा खेलना बिल्कुल भी पसंद नहीं था.....। अम्मा जिद करतीं और बाबूजी की सभा में भेज देतीं.... हाफिज अली खान और मुश्ताक खान जैसे संगीतकार जब अपनी आवाज खोलते हैं..., तो वे कहते हैं... कि लड़का लयबद्ध है...। शुरू से ही ताल और लय अच्छी थी, यह प्रभु की देन है...., लेकिन बाबूजी मना कर देते थे। वह अम्मा से कहते थे , पहले उसे नज़राना दिलवाओ.....। फिर मैंने बड़े और छोटे प्लेटफॉर्म पर परफॉर्म करना शुरू किया....।

पीएम मोदी ने जताया शोक

कई बड़ी हस्तियों ने महाराज को श्रद्धांजलि दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर लिखा- भारतीय नृत्य कला को दुनियाभर में खास पहचान दिलाने वाले पंडित बिरजू महाराज जी के निधन से गहरा दुख हुआ। उनका जाना संपूर्ण कला जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। दुख की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और प्रशंसकों के साथ हैं। शांति!

बॉलीवुड सिंगर अदनान सामी ने सोशल मीडिया पर लिखा- महान कथक डांसर पंडित बिरजू महाराज के निधन की खबर से गहरा दुख हुआ। आज हमने कला के क्षेत्र में एक अनूठी संस्था खो दी है। उन्होंने अपनी प्रतिभा से पीढ़ियों को प्रभावित किया है।

अभिनेता अनुपम खेर ने बिरजू महाराज को अपने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के दिनों को याद करते हुए एक वीडियो शेयर किया है। उन्होंने कहा कि, 'महाराज को परफॉर्म करते हुए देखना हमेशा एक जादुई अनुभव रहाा। वह मुझसे कहते थे, तेरी आंखों में बहुत शरारत है।'

पंडित बृजमोहन मिश्रा था असली नाम‚ बिरजू महाराज नाम से प्रसिद्ध हुए

लखनऊ घराने से ताल्लुक रखने वाले बिरजू महाराज का जन्म 4 फरवरी 1938 को लखनऊ में हुआ था। उनका असली नाम पंडित बृजमोहन मिश्रा था। कथक नर्तक होने के साथ-साथ वे शास्त्रीय गायक भी थे। बिरजू महाराज के पिता आचन महाराज, चाचा शंभू महाराज और लच्छू महाराज भी प्रसिद्ध कथक नर्तक थे।

पंडित जी कथक नर्तकों के महाराज परिवार के वंशज थे। इसमें अन्य प्रमुख विभूतियों में इनके दो चाचा व ताऊ, शंभु महाराज एवं लच्छू महाराज; तथा इनके स्वयं के पिता एवं गुरु अच्छन महाराज भी आते हैं। हालांकि इनका प्रथम जुड़ाव नृत्य से ही रहा, फिर भी इनकी पर भी अच्छी पकड़ रही और ये एक अच्छे शास्त्रीय गायक भी थे।

इन प्रतिष्ठित पुरस्कारों से बिरजू महाराज हुए सम्मानित

  • बिरजू महाराज को अपने क्षेत्र में शुरू से ही काफी प्रशंसा और सम्मान मिले।

  • इनमें से 1986 में पदम विभूषण, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार तथा कालिदास सम्मान प्रमुख है।

  • इसके साथ ही उन्हें काशी हिंदू विश्वविद्यालय और खैरागढ़ विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की मानद उपाधि मिली।

  • 2002 में लता मंगेशकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

  • 24 फरवरी, 2000 को उन्हें प्रतिष्ठित संगम कला पुरस्कार पुरस्कृत किया गया।

  • भरत मुनि सम्मान से नवाजा गया

  • 2012 में सर्वश्रेष्ठ नृत्य निर्देशन के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार फिल्म विश्वरूपम के लिए उन्हें सम्मानित किया गया

  • 2016 का सर्वश्रेष्ठ नृत्य निर्देशन के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार फिल्म बाजीराव मस्तानी के लिए मिला।

  • 2016 में हिंदी फिल्म बाजीराव मस्तानी में “मोहे रंग दो लाल” गाने पर नृत्य निर्देशन के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।

कथक शैली में नृत्य रचना को आधुनिक बनाया व नित्य नाटकों को प्रचलित किया
बिरजू महाराज ने राधा कृष्ण अनुश्रुत प्रसंगों के वर्णन के साथ कई अपौराणिक और सामाजिक विषय पर खुद को अभिव्यक्त करने के लिए नृत्य शैली में नये प्रयोग किए। उन्होंने कथक शैली में नृत्य रचना को आधुनिक बनाने में योगदान दिया और नित्य नाटकों को प्रचलित किया। ये पहले भारतीय नृत्य शैली में एक अनजाना तत्व था।

कथक शैली में नृत्य रचना को आधुनिक बनाने में योगदान दिया

फिल्मों दिया अहम योगदान
बिरजू महाराज ने देवदास, डेढ़ इश्किया, उमराव जान और बाजी राव मस्तानी जैसी फिल्मों के लिए कोरियोग्राफ किया था। इसके अलावा उन्होंने सत्यजीत रे की फिल्म 'शतरंज के खिलाड़ी' में संगीत भी दिया था।

फिल्म निर्माता निर्देशक यश चोपड़ा की फिल्म ‘ दिल तो पागल है’, ‘गदर एक प्रेम कथा’ में भी उन्होंने नृत्य सिखाया।

जब माधुरी दीक्षित के लिए कहा था ....तो मेरी फेवरेट हैं....

एक इंटरव्यू के दौरान अभिनेत्री माधुरी ने महाराज की तारीफ कर कहा था...., कि 'महाराज जी में कमाल का सेंस ऑफ़ ह्यूमर था और वो अक्सर विदेश यात्रा से जुड़े रोचक किस्से सेट पर सुनाया करते थे.....। जब उन्होंने देवदास के गाने 'काहे छेड़ छेड़ मोहे' गाने पर कोरियोग्राफी की तो मुद्राएं, अभिनय और बॉडी लैंग्वेज देखकर मुझे लगा कि मैं किसी सेट पर नहीं बल्कि स्वर्ग में हूं......। उनकी आर्ट इंद्रधनुष की तरह थी सप्तरंगी लेकिन नवरस से भरपूर थी.....।' एक साक्षात्कार में बिरजू महाराज ने भी माधुरी दीक्षित की तारीफ करते हुए कहा था, वो तो मेरी फेवरेट हैं। उनमें कुदरतन भाव है। महाराज ने माधुरी को सबसे पहले किसी फिल्म में डांस सिखाया था तो वो फिल्म 'दिल तो पागल है' थी। इसमें जिस जुगलबंदी वाले डांस सीक्वेंस की तारीफ हुई थी उसमें बिरजू महाराज ने ही माधुरी को डांस सिखाया था।

भजन सम्राट अनूप जलोटा ने कथक सरताज को श्रद्धांजली देते हुए लिखा, 'कुछ कलाकार होते हैं और कुछ फरिश्ते, पंडित बिरजू महाराज जी फरिश्तों की श्रेणी में आते हैं। स्वर्ग से आये, हम सब को स्वर्गिक आनंद दिया और स्वर्ग को प्रस्थान कर गए। कभी भुलाया नहीं जा सकता पंडित जी को....।'

फिल्ममेकर सुभाष घई ने अपनी पोस्ट पर लिखा, 'कथक नृत्य के उस्ताद से मेरी पहली शिक्षा मेरे कॉलेज यूथ फेस्टिवल में हुई थी। जब उन्होंने भगवान कृष्ण और राधा के बीच अपनी दो आंखों से बात करते हुए एक रोमांटिक बातचीत एक्सप्रेस की थी। मैंने सीखा डांस का मतलब शरीर है लेकिन आत्मा आंखों में है। इसीलिए वह कथक के जगत गुरु थे।'

2012 में, उन्हें फिल्म विश्वरूपम में कोरियोग्राफी के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 2016 में, बाजीराव मस्तानी की मोहे रंग दो लाल ने अपनी कोरियोग्राफी के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार जीता। फिल्म निर्माता निर्देशक यश चोपड़ा की फिल्म ‘ दिल तो पागल है’, ‘गदर एक प्रेम कथा’ में भी उन्होंने नृत्य सिखाया।

बाजीराव मस्तानी की मोहे रंग दो लाल ने अपनी कोरियोग्राफी के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार जीता।

आल‍िया भट्ट ने फिल्म कलंक के लिए पंड‍ित ब‍िरजू महाराज से दो महीने का नृत्य प्रश‍िक्षण लिया था।

कलंक के घर मोरे परदेस‍िया के लिए अलिया ने लिया था प्रशिक्षण

आल‍िया भट्ट ने फिल्म कलंक के लिए पंड‍ित ब‍िरजू महाराज से दो महीने का नृत्य प्रश‍िक्षण लिया था। ब‍िरजू महाराज ने चेहरे पर डांस के साथ एक्सप्रेशन लाने में बहुत मदद की। आल‍िया ने फिल्म में घर मोरे परदेस‍िया के लिए यह ट्रेन‍िंग ली थी जिसकी शूट‍िंग से एक हफ्ते पहले उन्होंने ब‍िरजू महाराज से सलाह-मशव‍िरा लिया।

बिरजू महाराज को 1983 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। इसके साथ ही उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और कालिदास सम्मान भी मिला है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और खैरागढ़ विश्वविद्यालय ने भी बिरजू महाराज को डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की।

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