सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में अपनाई गई वन रैंक-वन पेंशन (OROP) नीति को बरकरार रखने के अपने फैसले के संबंध में केंद्र सरकार द्वारा दायर एक समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस फैसले में न तो कोई संवैधानिक कमी है और न ही यह मनमाना है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच ने कहा कि पुनर्विचार याचिका में कोई दम नहीं है।
पुनरीक्षण याचिका को खुली अदालत में सूचीबद्ध करने का अनुरोध खारिज किया जाता है। हमने समीक्षा याचिका और उससे जुड़े दस्तावेजों को ध्यान से देखा है। हमें समीक्षा याचिका में कोई योग्यता नहीं मिलती है और तदनुसार इसे खारिज कर दिया जाता है।सुप्रीम कोर्ट
अदालत ने 16 मार्च को अपने फैसले में केंद्र द्वारा अपनाए गए 'वन रैंक-वन पेंशन' सिद्धांत को बरकरार रखा था।
कोर्ट ने कहा था कि भगत सिंह कोश्यारी समिति की रिपोर्ट 10 दिसंबर 2011 को राज्यसभा में पेश की गई थी और यह ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, मांग का कारण, संसदीय समिति का विचार प्रस्तुत करती है। समिति की रिपोर्ट ने सशस्त्र बलों से संबंधित कर्मियों के लिए ओआरओपी को अपनाने का प्रस्ताव रखा। कोर्ट ने कहा कि रिपोर्ट को सरकारी नीति का बयान नहीं माना जा सकता।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि ओआरओपी नीति को लागू करते समय, समान अवधि की सेवा वाले कर्मचारियों के लिए इसे 'वन रैंक मल्टीपल पेंशन' से बदल दिया गया है। अब स्वत: संशोधन की जगह पेंशन की दरों में समय-समय पर संशोधन किया जाएगा। केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा था कि एक रैंक, एक पेंशन प्रणाली तैयार करते समय समान सेवा अवधि के साथ समान रैंक के रक्षा कर्मियों के बीच कोई भेदभाव नहीं किया गया है।