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PFI होगा बैन! केंद्र ने कर्नाटक के साथ मिलकर बनाया एक्शन का मास्टर प्लाॅन

वर्ष 2022 PFI का आखिरी साल हो सकता है। PFI पर बैन के लिए एक एक्शन टीम का गठन भी हो चुका है। कर्नाटक के BJP नेता प्रवीण नेट्टारू की हत्या के बाद PFI केंद्र के रडार पर आ गई है। केंद्र सरकार ने कर्नाटक सरकार के साथ मिलकर PFI पर एक्शन का मास्टर प्लान बनाया है।

Om Prakash Napit

केंद्र सरकार ने इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी PFI पर लगाम कसने की तैयारी शुरू कर दी है। वर्ष 2022 PFI का आखिरी साल हो सकता है। सूत्रों के मुताबिक इसके लिए एक एक्शन टीम का गठन भी हो चुका है। दरअसल PFI का कई आतंकी गतिविधियों में कथित तौर पर हाथ रहा है, लेकिन अभी तक वो देश में बैन नहीं हो सका है। अब कर्नाटक के BJP नेता प्रवीण नेट्टारू की हत्या के बाद वो केंद्र के रडार पर आ गई है।

4 अगस्त को गृहमंत्री अमित शाह बेंगलुरु के एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचे थे। पता चला है कि कार्यक्रम के बाद अमित शाह, कर्नाटक के CM बसव राज बोम्मई और राज्य के गृह मंत्री अरागा ज्ञानेंद्र के बीच बैठक हुई। इस मीटिंग में PFI को खत्म करने के लिए एक जॉइंट एक्शन प्लान बनाने का फैसला हुआ। इसके 3 दिन बाद यानी 7 अगस्त को प्लान पर काम करने के लिए टीम का गठन भी हो गया।

3 मोर्चे पर होगी PFI की पड़ताल

एक्शन टीम में दिल्ली और कर्नाटक के कुछ आला अधिकारियों के साथ ही इंटेलिजेंस के लोग भी शामिल हैं। केंद्र सरकार देशभर के उन अधिकारियों की लिस्ट भी तैयार कर रही है, जो पहले भी इस तरह के सेंसिटिव मामलों के इन्वेस्टिगेशन में शामिल रहे हैं। यह टीम कर्नाटक ही नहीं बल्कि देश के सभी हिस्सों में PFI के खिलाफ 3 मोर्चों पर काम करेगी। इस टीम का काम मुख्य रूप से PFI के खिलाफ ऐसे ठोस डॉक्युमेंट इकट्ठा करना है, जो नेशनल ही नहीं बल्कि इंटरनेशनल लेवल पर भी इसके खराब मंसूबों के खिलाफ सबूत जुटा सकें।

कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले एक्शन संभव

फिलहाल कोई डेटलाइन तय नहीं हुई है। कर्नाटक में अगले साल फरवरी-मार्च तक चुनाव होने की संभावना है। एक्शन प्लान बनाते वक्त भी इस बात की चर्चा हुई है। ऐसे में चुनाव से पहले PFI के खिलाफ कुछ बड़ा एक्शन लिया जा सकता है।

इन मोर्चों पर काम करेगी टीम

  • PFI के नेटवर्क की मैपिंग करना। शुरुआत कर्नाटक से होगी, लेकिन देश के उन सभी इलाकों का भी एक मैप तैयार होगा जहां PFI से जुड़ा एक भी व्यक्ति रहता है।

  • PFI की फंडिंग के सोर्सेज का का पता लगाना। साथ ही उससे जुड़े सारे डॉक्युमेंट कलेक्ट करना।

  • PFI का नाम जिन-जिन दंगों या फिर घटनाओं में आया उन सभी मामलों को जॉइंट टीम रीविजिट करेगी।

केंद्र पर इन वजह से बना दबाव

  • BJP नेता प्रवीण नेट्टारू की हत्या के बाद भाजपा युवा मोर्चा के हजारों वर्कर्स सड़कों पर निकल आए। उन्होंने BJP प्रदेश अध्यक्ष की कार को घंटों घेरे रखा था। प्रवीण की हत्या 27 जुलाई को हुई थी।

  • BJP नेता प्रवीण नेट्टारू की हत्या के बाद भाजपा युवा मोर्चा के हजारों वर्कर्स सड़कों पर निकल आए। उन्होंने BJP प्रदेश अध्यक्ष की कार को घंटों घेरे रखा था। प्रवीण की हत्या 27 जुलाई को हुई थी।

  • प्रवीण नेट्टारू की हत्या के बाद सरकार के खिलाफ BJP कार्यकर्ताओं के बगावती सुर पनपे, उसकी धमक दिल्ली तक सुनाई दी। कर्नाटक के BJP कार्यकर्ताओं ने अपने प्रदेश अध्यक्ष नलिन कुमार कतील की कार को घेर लिया और जमकर हंगामा किया था। वे कई घंटों तक भीड़ के बीच फंसे रहे। इतना ही नहीं, भाजपा युवा मोर्चा के कई कार्यकर्ताओं ने सामूहिक इस्तीफा भी दिया था।

  • इससे पहले राजस्थान के उदयपुर हत्याकांड और महाराष्ट्र में फार्मासिस्ट उमेश कोल्हे की हत्या में भी PFI का हाथ होने की बात सामने आई थी। इस बीच पटना में भी PFI के बड़े नेटवर्क का भंडाफोड़ हो चुका है।

देश के 20 राज्यों में है PFI का नेटवर्क

1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद 1994 में केरल में मुसलमानों ने नेशनल डेवलपमेंट फंड (NDF) की स्थापना की। धीरे-धीरे केरल में इसकी लोकप्रियता बढ़ती गई और इस संगठन की सांप्रदायिक गतिविधियों में संलिप्तता भी सामने आती गई। साल 2003 में कोझिकोड के मराड बीच पर 8 हिंदुओं की हत्या में NDF के कार्यकर्ता गिरफ्तार हुए। इस घटना के बाद BJP ने NDF के ISI से संबंध होने के आरोप लगाए, जिन्हें साबित नहीं किया जा सका। केरल के अलावा कर्नाटक में कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी यानी KFD और तमिलनाडु में मनिथा नीति पसाराई (MNP) नाम के संगठन जमीनी स्तर पर मुसलमानों के लिए काम कर रहे थे। इन संगठनों का भी हिंसक गतिविधियों में नाम आता रहा था। अभी PFI देश के 20 राज्यों में एक्टिव है।

किन राज्यों में बैन है PFI

PFI के राष्ट्रीय महासचिव अनीस अहमद के मुताबिक PFI अभी सिर्फ झारखंड में ही बैन है। इसके खिलाफ PFI ने कोर्ट में अपील भी की है। इससे पहले भी हमें बैन किया गया था, लेकिन रांची हाईकोर्ट ने बैन हटा दिया था। ये बैन भी जल्द ही हट जाएगा।

हाथ काटने से लेकर हत्या तक में PFI का नाम

कर्नाटक में BJP युवा मोर्चा कार्यकर्ता की हत्या, उत्तर प्रदेश के कानपुर में हिंसा, मध्य प्रदेश के खरगौन में सांप्रदायिक दंगा, राजस्थान के करौली में हिंसा, उदयपुर में दर्जी कन्हैयालाल का सिर कलम और कर्नाटक के शिवमोगा में बजरंग दल कार्यकर्ता का कत्ल। इन सभी मामलों में एक संगठन का नाम बार-बार आता रहा है। वो है- PFI यानी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया। हाल ही में पटना में पुलिस ने कई संदिग्धों को गिरफ्तार किया और इनके भी PFI से जुड़े होने का दावा किया। अब राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) बिहार में PFI की जड़ें तलाश रही है।

उठती रही है PFI को प्रतिबंधित करने की मांग

केरल हाईकोर्ट ने अपनी एक टिप्पणी में PFI को एक ‘चरमपंथी संगठन’ बताया था। हिंदूवादी संगठन PFI को प्रतिबंधित करने की मांग करते रहे हैं और मीडिया में केंद्र सरकार से इस संगठन को प्रतिबंधित करने पर विचार करने की रिपोर्टें भी आती रही हैं। हालांकि अब तक झारखंड के अलावा कहीं भी PFI पर बैन नहीं लगा है। झारखंड के बैन को भी अदालत में चुनौती दी गई है। वहीं PFI खुद को एक सामाजिक संगठन बताता है और कहता है कि वो दबे-कुचले वर्ग के उत्थान के लिए काम करता है।

2010 में केरल से चर्चा में आया PFI

PFI सबसे पहले चर्चा में आया था 2010 में केरल में प्रोफेसर टीजे जोसेफ का हाथ काटने की घटना के बाद। प्रोफेसर जोसेफ पर एक प्रश्नपत्र में पूछे गए सवाल के जरिए पैगंबर मोहम्मद साहब के अपमान का आरोप लगा था। इसके बाद आरोप है कि PFI कार्यकर्ताओं ने प्रोफेसर जोसेफ के हाथ काट दिए थे। प्रोफेसर जोसेफ के अनुसार 'पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया एक आतंकवादी संगठन है जो इस्लाम की कट्टरपंथी विचारधारा को फैलाता है और लागू करता है। उनकी सभी गतिविधियां, जिनमें 2010 में मुझ पर हुआ हमला भी शामिल है, ने समूचे भारत में आतंक की एक लहर पैदा की है। ये संगठन लोगों के शांतिपूर्वक जीवन और देश की धर्मनिरपेक्षता के लिए खतरा बन गया है।'

कब-कब उठे PFI पर सवाल

  • 2018 में केरल के एर्नाकुलम में CFI के कार्यकर्ताओं ने वामपंथी छात्र संगठन SFI (स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया) के छात्र नेता अभिमन्यु की चाकू मार कर हत्या कर दी थी। तब भी PFI सवालों में घिरा था।

  • कर्नाटक में हिजाब आंदोलन के लिए मुस्लिम लड़कियों को भड़काने में PFI के ही छात्र संगठन CFI का नाम चर्चा में आया था।

  • कर्नाटक में हिजाब आंदोलन के लिए मुस्लिम लड़कियों को भड़काने में PFI के ही छात्र संगठन CFI का नाम चर्चा में आया था।

  • इस साल उडुपी में जब मुस्लिम छात्राओं ने हिजाब को लेकर प्रोटेस्ट किए तो उनके पीछे भी PFI के छात्र संगठन कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया यानी CFI की ही रणनीति बताई गई।

  • हाल ही में कानपुर हिंसा, उदयपुर में दर्जी कन्हैयालाल की हत्या और पटना में संदिग्धों की गिरफ्तारी में भी PFI का नाम आया है।

बिहार के पटना में पकड़ा नेटवर्क

PFI बिहार में साल 2016 से सक्रिय है। पूर्णिया जिले में संगठन ने हेडक्वार्टर स्थापित करने की तैयारियां की थीं। इसके अलावा राज्य के 15 से अधिक जिले में ट्रेनिंग सेंटर भी चलाए हैं। पुलिस ने देश के खिलाफ साजिश रचने के आरोप में पटना से चार संदिग्धों को गिरफ्तार किया है। ये हैं अतहर परवेज, मो. जलालुद्दीन, अरमान मलिक और एडवोकेट नूरुद्दीन जंगी। पुलिस के मुताबिक ये चारों ही PFI से जुड़े हैं। पटना में गिरफ्तारियों के बाद अब जांच NIA कर रही है। NIA ने PFI का नेटवर्क तलाशने के लिए बिहार के कई शहरों में छापेमारी भी की है। पटना में जांच से जुड़े अधिकारियों ने बताया है कि PFI अनपढ़, बेरोजगार मुस्लिम युवाओं को टारगेट करके अपने साथ जोड़ रहा है। पुलिस जांच में सामने आया है कि युवाओं को हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी दी गई है। PFI के तार विदेशों से जुड़े होने और बाहर से फंडिंग की भी जांच की जा रही है। पुलिस को PFI के अकाउंट में 90 लाख रुपए मिले हैं।

कानपुर में भी PFI काफी सक्रिय

कानपुर में PFI काफी सक्रिय रहा है, लेकिन इसका कोई आधिकारिक दफ्तर शहर में नहीं है। पुलिस के मुताबिक बाबूपुरवा इलाके में PFI की गतिविधियां दिखती रही हैं। स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया यानी SIMI पर बैन लगने के बाद इससे जुड़े लोग भी PFI से जुड़ गए थे। कानपुर में CAA-NRC विरोधी आंदोलन के दौरान PFI काफी सक्रिय रहा था और इसके पांच सदस्यों को गिरफ्तार भी किया गया था। इन सभी को बाबूपुरवा इलाके से ही गिरफ्तार किया गया था। पुलिस के मुताबिक PFI ने CAA विरोधी आंदोलन की फंडिंग की थी। पुलिस ने इस संबंध में चार्जशीट भी दाखिल की थी। हाल ही में 3 जून को कानपुर में हुई हिंसा की जांच के दौरान भी PFI की भूमिका सामने आई थी। पुलिस के मुताबिक गिरफ्तार किए गए लोगों में से तीन PFI के सदस्य हैं। कानपुर में हिंसा की जांच SIT कर रही है। सूत्रों के मुताबिक चार्जशीट में PFI सदस्यों पर भी आरोप तय किए जा रहे हैं।

उदयपुर : कन्हैया हत्याकांड के बाद नेटवर्क खंगाल रही जांच एजेंसियां

उदयपुर में टेलर कन्हैयालाल की हत्या के बाद पुलिस ने हत्यारों का कनेक्शन PFI से जुड़े होने का दावा किया था, लेकिन अब तक की जांच में PFI के खिलाफ कुछ सामने नहीं आया है। जांच से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक हत्यारों या उनके सहयोगियों के PFI से जुड़े होने के सबूत नहीं मिले हैं। उदयपुर में PFI का कोई दफ्तर भी नहीं है। हालांकि अधिकारी ये मानते हैं कि देश के बाकी हिस्सों की तरह उदयपुर में भी PFI का नेटवर्क हो सकता है। राजस्थान में PFI का नेटवर्क जांच एजेंसियों के रडार पर है।

2007 में बना, 20 राज्यों में फैला

  • PFI की जड़ें 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद मुसलमानों के हितों की रक्षा के लिए खड़े हुए आंदोलनों से जुड़ती हैं। 1994 में केरल में मुसलमानों ने नेशनल डेवलपमेंट फंड (NDF) की स्थापना की थी।

  • स्थापना के बाद से ही NDF ने केरल में अपनी जड़ें मजबूत कीं और इसकी लोकप्रियता बढ़ती गई और इस संगठन की सांप्रदायिक गतिविधियों में संलिप्तता भी सामने आती गई।

  • साल 2003 में कोझिकोड के मराड बीच पर 8 हिंदुओं की हत्या में NDF के कार्यकर्ता गिरफ्तार हुए। इस घटना के बाद BJP ने NDF के ISI से संबंध होने के आरोप लगाए, जिन्हें साबित नहीं किया जा सका।

  • केरल के अलावा दक्षिण भारतीय राज्यों, तमिलनाडु और कर्नाटक में भी मुसलमानों के लिए काम कर रहे संगठन सक्रिय थे। कर्नाटक में कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी यानी KFD और तमिलनाडु में मनिथा नीति पसाराई (MNP) नाम के संगठन जमीनी स्तर पर मुसलमानों के लिए काम कर रहे थे।

  • इन संगठनों का भी हिंसक गतिविधियों में नाम आता रहा था। नवंबर 2006 में दिल्ली में हुई एक बैठक के बाद NDF और ये संगठन एक होकर PFI बन गए। इस तरह साल 2007 में PFI अस्तित्व में आया और आज 20 राज्यों में ये संगठन काम कर रहा है।

  • अब PFI एक संगठित नेटवर्क है जिसकी देश के बीस से अधिक राज्यों में मौजूदगी है। PFI की एक राष्ट्रीय समिति होती है और राज्यों की अलग समितियां होती हैं। ग्राउंड लेवल पर इसके वर्कर होते हैं। समिति के सदस्य हर तीन साल में होने वाले चुनाव से चुने जाते हैं।

  • 2009 में PFIने अपने राजनीतिक दल SDPI (सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी आफ इंडिया) और छात्र संगठन CFI (कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया) का गठन किया था।

  • जैसे-जैसे PFI का प्रभाव बढ़ा, कई राज्यों के अन्य संगठन भी PFI के साथ जुड़ते चले गए। गोवा का सिटीजन फोरम, पश्चिम बंगाल का नागरिक अधिकार सुरक्षा समिति, आंध्र प्रदेश का एसोसिएशन ऑफ सोशल जस्टिस और राजस्थान का कम्युनिटी सोशल एंड एजुकेशन सोसायटी- ये सभी संगठन PFI का हिस्सा हो गए।

  • देशभर में आधार बनाने के बाद PFI ने अपना मुख्यालय भी कोझिकोड से दिल्ली स्थानांतरित कर लिया।

  • अब PFI देश के अधिकतर हिस्सों में सक्रिय है, लेकिन इसका मजबूत आधार दक्षिण भारत में ही है। हाल ही में जब कर्नाटक में हिजाब विवाद हुआ तो कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया और PFI ने अपनी जड़ें मजबूत करने के लिए उसका जमकर इस्तेमाल किया।

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