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Rajasthan: पेड़ों के लिए महाबलिदान..खेजड़ली महान; यहां लगता है अद्भुत मेला, हजारों लोग लेते हैं पर्यावरण संरक्षण की शपथ

जोधपुर जिले के खेजड़ली गांव में एक ऐसा मेला लगता है जो पर्यावरण को समर्पित है। यह मेला पर्यावरण प्रेमी अमृता देवी और उनके साथ शहीद 363 पर्यावरण प्रेमियों की याद में हर वर्ष लगता है। मेले में विश्नोई समाज के लोग हवन में आहुतियां देकर फेरी लगाते हैं और शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं।

Om Prakash Napit

राजस्थानी पारंपरिक परिधान में सजी-धजी सोने के भारी भरकम गहने पहने महिलाएं..बच्चों, युवाओं समेत हजारों लोगों का हुजूम..बुजुर्गों के सिर पर रंग बिरंगी पगड़ियां..हवन में आहुतियां..यह नजारा एक ऐसे मेले का है जो पर्यावरण के प्रति प्रेम और उसके लिए बलिदान होने की गाथा समेटे हुए है। मेले में जुटने वाले हजारों लोग पर्यावरण संरक्षण के लिए शपथ लेते हैं।

राजस्थान में जोधपुर जिले के खेजड़ली गांव में यह मेला पर्यावरण प्रेमी अमृता देवी और उनके साथ शहीद 363 पर्यावरण प्रेमियों की याद में हर वर्ष लगता है। 280 वर्ष पूर्व वृक्षों की रक्षा के लिये दिए गए इस अनूठे बलिदान को विश्नोई समाज हर वर्ष इसी तरह याद कर उन शहीदों को श्रद्धाजंलि देता है।

मेले में जुटने वाले हजारों लोग हवन में आहुतियां देकर फेरी लगाते हैं। खेजड़ली गांव में यह मेला दो दिन पूर्व सोमवार को भाद्रपद मास की दशमी तिथि के दिन आयोजित हुआ। मेले में देशभर से बिश्नोई समाज के हजारों लोग शामिल हुए।

विचित्र है इस मेले का इतिहास

खेजड़ली गांव जोधपुर के लूणी इलाके में स्थित है। विक्रम संवत 1787 में जोधपुर में राज कार्य के लिए लकड़ियों की पूर्ति के लिए तत्कालीन महाराजा के आदेशानुसार खेजडली गांव में लकड़ियां काटने गए लोगों का बिश्नोई समाज के लोगों ने विरोध किया, लेकिन महाराजा के फरमान की पालना का हवाला देकर पेड़ काटने की शुरुआत करते ही बिश्नोई समाज के लोग पेड़ों से लिपट गए और अपनी गर्दन कटवाकर पेड़ों को बचाया।

280 वर्ष की इस घटना में पर्यावरण प्रेमी अमृता देवी और उनके साथ 363 पर्यावरण प्रेमी शहीद हुए थे। उसके बाद यहां शहीद स्मारक में बनाया गया। अब एक मंदिर के साथ-साथ पार्क भी विकसित किया जा रहा है। पेड़ बचाने के लिए इतनी बड़ी शहादत का वाकिया इतिहास में शायद ही कहीं मिले।

लाखों के गहनों से सजी महिलाएं आकर्षण का केंद्र

मेले में आने वाली महिलाओं के गहने खास आकर्षण का केंद्र होते हैं। महिलाएं सोने के भारी भरकम गहने पहनकर पहुंचती हैं। बड़े शहरों में जहां महिलायें अमूमन चेन स्नेचर्स के डर से गले में पतली सी चेन या कानों में छोटे टॉप्स पहनने में भी घबराती हैं वहीं इस मेले में हजारों लोगों की भीड़ में ये महिलाएं बेखौफ सोने के भारी भरकम गहने पहनकर घूमती हैं।

कई महिलाएं 1 से 2 किलो वजन से भी अधिक के गहने पहनकर मेले में पहुंचती हैं। इन पुश्तैनी गहनों को उनकी खानदानी निशानी के रूप में पहचाना जाता है। कई महिलाएं 30 से 40 लाख रुपये कीमत तक के गहने पहनकर पारंपरिक वेशभूषा में यहां आती हैं।

राजस्थान के पारंपरिक और लुप्त होते गहने भी इस मेले में देखे जा सकते हैं। सबसे महत्वपूर्ण गले में पहने जाने वाली आड है। यह काफी वजनी होती है। यह महिला के परिवार की संपन्नता और समृद्धता निशानी भी मानी जाती है। मेले में महिला के श्रृंगार के सभी गहने देखे जा सकते हैं।

गुरु जंभोजी के नियमों की पालना में दिया बलिदान

विश्नोई एक समाज है जिसकी स्थापना वहां के गुरु श्री जंभोजी ने की थी। उन्होंने गांव में वहां के लोगों के लिए 29 नियम बताएं, जो पर्यावरण सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण नियम थे। अमृता देवी और विश्नोनोई समाज ने उनके नियमों को आदर्श मानकर अपने प्राण पर्यावरण संरक्षण के लिए गंवा दिए। जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी बिश्नोई समाज वर्तमान समय में भी उस नियम की पालना एक शपथ के रूप में निभाता आ रहा है।

यूं करते हैं शहीदों को नमन

यह मेला पेड़ों को बचाने की खातिर अपना बलिदान देने वाले 363 शहीदों की याद में आयोजित किया जाता है। मेले में हवन कुण्ड में आहुतियां देकर शहीदों को नमन किया जाता है। खेजड़ली शहीदी मेले में राजस्थान समेत देशभर के विश्नोई समाज के लोग शामिल होते हैं। शहीदी मेले में महिलाओं की संख्या भी बहुतायत रहती है। वे भी अग्नि कुंड की फेरी लगाती हैं और शहीद स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित करती हैं। अधिकांश पुरुष सफेद वस्त्र पहनकर आते हैं।

चिपको की शुरुआत – पेड़ बचाओ आंदोलन

खेजड़ली गांव, यह वह स्थान है जहां चिपको आंदोलन की उत्पत्ति भारत में हुई थी। वह मंगलवार का दिन था, काला मंगलवार खेजड़ली गांव के लिए। 1730 ईसवी में भद्रा महीने (भारतीय चंद्र कैलेंडर) के 10 वें उज्ज्वल पखवाड़े के दिन अमृता देवी अपनी तीन बेटियों आसू, रत्नी और भागू बाई के साथ घर पर थीं। तभी अचानक उन्हें पता चला की मारवाड़ जोधपुर के महाराजा अभय सिंह के सैनिक उनके गांव खेजड़ी के पेड़ों को काटने आएं हैं।

खेजड़ी के पेड़ों की लकड़ियों का इस्तेमाल महाराजा अभय सिंह अपने नए महल के निर्माण में करना चाहते थे। थार रेगिस्तान में होने के बाद भी बिश्नोई गांवों में बहुत हरियाली थी और खेजड़ी के पेड़ बहुतायत में थे। इसलिए महाराजा अभय सिंह ने अपने आदमियों को खेजड़ी के पेड़ों से लकड़ियाँ प्राप्त करने का आदेश दिया था।

तेजाजी मेला : यह गौ रक्षा के लिए समर्पित

नागौर जिले के खरनाल में वीर तेजाजी के स्मारक पर भी तेजा दशमी पर सोमवार को तेजाजी का मेला आयोजित हुआ। इस मेले में जाट समाज के लोग जुटते हैं। तेजाजी ने गौ रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। इस दिन यहां पर बड़ी सभा भी होती है, जिसमें कई राजनीतिक संदेश भी दिए जाते हैं। जाट समाज के हर दल के नेता यहां आते हैं। प्रतिभाओं का सम्मान भी होता है।

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