Ram Mandir: जात-पात को लेकर आज तक हम लड़ रहे है, लेकिन सदियों पहले श्रीराम ने सबको एक समान ही समझा 
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Ram Mandir: जात-पात को लेकर आज तक हम लड़ रहे है, लेकिन सदियों पहले श्रीराम ने सबको एक समान ही समझा

Rajesh Singhal

Ram Mandir: देवताओं की नगरी अयोध्या ने बल, प्रताप, बलिदान देखे, तो दुखों का पहाड़ भी झेलना पड़ा।

ऋषितुल्य राजा मांधाता का साम्राज्य देखा तो राजा हरिश्चंद्र की सत्यवादिता और वचन की खातिर राजपाट त्याग देने, यहां तक कि मर मिटने तक का बलिदान भी देखा।

भागते रथ के टूटे पहिए में अपनी अंगुली लगा देने वाला कैकेयी का त्याग देखा तो श्रीराम को वनवास भेजने वाले उन्हीं कैकेयी के हठ की भी साक्षी रही।

त्रेता से कलयुग तक के सफर की अनगिनत कहानियां

अयोध्या की तुलना यदि स्वर्ग के सुखों से गई है, तो वहीं अनगिनत पीड़ाए भी सहन की है। पुत्र वियोग में राजा दशरथ का प्राण त्यागना हो या भरत का राजपाट छोड़कर पादुका पूजन हो, सब कुछ, आज भी अयोध्या की आंखों में झिलमिलाता रहता है।

लक्ष्मण की चौदह साल की सेवा हो या उर्मिला का विरह, ये सब सिहरन पैदा करने वाले पल रहे। त्रेता से कलयुग तक के सफ़र की अनगिनत कहानियां इस नगरी की छाती में धंसी हुई हैं। इन्हें एक एक कर निकालना, अपने ही दुखों की सुइयां पोरों से निकालने की तरह है।

कैकेयी के हठ के कारण अयोध्या का राज कैकेयी पुत्र भरत को सौंपा गया

अयोध्या के राजा दशरथ बड़े पराक्रमी हुए। बड़े दिनों बाद राजा दशरथ के यहां राम सहित चार पुत्रों ने जन्म लिया। ये थे राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न।

जन्मोत्सव की ख़ुशी में महीनों पूरी अयोध्या सोहर और बलैंया गाती रही। चारों भाइयों की शिक्षा दीक्षा का काम महर्षि वशिष्ठ ने अपने हाथ में लिया।

इसी दौरान मिथिला नरेश राजा जनक के यहां स्वयंवर में राम ने शिवजी का धनुष तोड़ा और सीता से विवाह हुआ।

विवाह के बाद राम का राजतिलक होने ही वाला था कि माता कैकेयी के हठ के कारण अयोध्या का राज कैकेयी पुत्र भरत को सौंपा गया। और राम को चौदह वर्ष के वनवास का आदेश हुआ। इसके बाद आता है वनगमन प्रसंग

भगवान श्री राम का वनगमन वर्तमान में भी कई शिक्षा देता है। भाइयों का प्रेम देखिए कि जिस मां ने भरत के लिए राज मांगा, ज्येष्ठ भ्राता के प्रेम में उसी भरत ने सिंहासन त्याग कर वहां राम की पादुका रखकर प्रजा के लिए न्यायप्रिय शासन किया।

इन चौदह बरस में एक पल भी भरत ने खुद को राजा नहीं माना, बल्कि प्रभु राम का सेवक बनकर ही रहे। जात-पात को लेकर आज तक हम लड़ते रहते हैं, लेकिन सदियों पहले राम ने सबको एक समान समझा। गुह निषाद को गले लगाया।

केवट के सामने अनुनय विनय की। यहां तक कि आततायी रावण को हराने के लिए वानरों तक को अपना सच्चा, सगा साथी बनाया।

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