UP उपचुनावों को लेकर सिंस इंडिपेंडेंस का आकलन बिल्कुल सही निकला। उत्तर प्रदेश के लोकसभा उपचुनावों में BJP ने दोनों लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की। इन उपचुनावों में न तो आजम खान का गढ़ रामपुर भाजपा के सामने बचा और न ही सपा आजमगढ़ में अपना वर्चस्व बचा पाई।
उत्तर प्रदेश के लोकसभा उपचुनावों में रामपुर से BJP प्रत्याशी घनश्याम सिंह लोधी ने 42,192 वोटों से और आजमगढ़ में दिनेश लाल यादव 'निरहुआ' ने 8679 वोटों से जीत दर्ज की है।
वहीं, आजमगढ़ में बसपा प्रत्याशी शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली भले ही तीसरे नंबर पर रहे हों, लेकिन बसपा प्रमुख मायावती का दलित-मुस्लिम फॉर्मूला यहां कारगर साबित हुआ।
सिंस इंडिपेंडेंस ने अपनी रिपोर्ट में पहले ही आकलन किया था कि आजमगढ़ में बसपा समाजवादी पार्टी की जीत में रोड़ा बन सकती है और हमारी रिपोर्ट बिल्कुल सटीक निकली।
आजमगढ़ में बीजेपी प्रत्याशी दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ को 3,12,768 वोट मिले। सपा के धर्मेंद्र यादव को 3,04,089 वोट मिले जबकि बसपा के गुड्डू जमाली को 2,66,210 वोट मिले। यहां बीजेपी 8679 वोटों से जीत दर्ज करने में कामयाब रही।
बता दें कि अगर बसपा ने अपने प्रत्याशी गुड्डू जमाली को मैदान में ना उतारती तो आजमगढ़ में सपा का वापस सत्ता में आना तय था। आजमगढ़ में हार ने समाजवादी पार्टी (सपा) को तनाव में डाल दिया है वहीं सपा अपने पुराने जनाधार को वापस पाकर खुश है।
बता दें कि बसपा की आजमगढ़ वापसी का एक ही मंत्र बचा था दलित-मुस्लिम समीकरण का। मायावती ने उपचुनाव में गुड्डू जमाली को मैदान में उतारकर दलित-मुस्लिम फॉर्मूला आजमाया तो वह कामयाब साबित हुआ। भले ही बसपा यहां जीत हांसिल करने में असफल रही पर उसने अपनी विरोधी पार्टी को भी यहां जीत हासिल करने से रोका।
यूपी उपचुनावों में मायावती के इस फार्मुले से बसपा का वोट 2.24 लाख से बढ़कर 2.66 लाख हो गया जबकि सपा का वोट 4.35 लाख से घटकर 3.04 लाख हो गया। इस तरह 1.31 लाख वोट कम हो गए, और समाजवादी पार्टी यहां जीत हांसिल करने से पीछे रह गई।
बता दें की 13 साल से आजमगढ़ समाजवादी पार्टी का गढ़ रहा है। इससे पहले साल 2009 में आजमगढ़ से बीजेपी के रमाकांत यादव जीते थे। जिसके बाद बीजेपी के लिए यहां वापसी करना मुश्किल हो गया, क्योंकि 2014 में मुलायम सिंह यादव और 2019 में अखिलेश यादव की जीत ने बीजेपी को संभलने का मौका भी नहीं दिया।
2019 में आजमगढ़ में मोदी लहर और निरहुआ के दिन-रात के अभियान और जनसंपर्क के बावजूद निरहुआ को हार का सामना करना पड़ा। लेकिन 2022 में यहां बीजेपी अग्निपथ जैसे विवादित मुद्दों के बाद भी ऐतिहासिक जीत हांसिल करने में सफल रही।