राजस्थान

आसाराम का केस जैसे ही मेरी झोली में आकर गीरा, तब लगा कि आज मेरे पास अपने आप को साबित करने का मौका है...

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के अंतिम दिन एडिशनल कमिश्नर ऑफ पुलिस जयपुर (एसीपी) अजय पाल लांबा ने अपने सेशन ‘कॉप नॉयर: द ट्रू बैकस्टोरीज’ में सतीश मेहता के साथ चर्चा की। गौरतलब है कि लांबा ने आसााराम को अपने ही गुरुकुल की नाबालिग छात्रा के साथ यौन उत्पीड़न के मामले में कारावास तक पहुंचाया।

ChandraVeer Singh

रणवीर तंवर की रिपोर्टः आसाराम का केस जैसे ही मेरी झोली में आकर गीरा, तब मुझे लगा कि आज मेरे पास अपने आप को साबित करने का मौका है। आसााराम के करोड़ों फॉलोवर्स थे.... आवेश में आकर लिया गया मेरा एक भी फैसला केस का रोडा बन सकता था... इसलिए मैंने इसीकी पूरी योजना बनाई कि कैसे मीडिया के जरिए लोगों तक आसााराम का सच पहुंचाना है.... और ऐसा मीडिया से क्या छिपाना है ​जिससे केस प्रभावित न हो....।

क्योंकि यहां केवल एक बच्ची को न्याय दिलाने की बात नहीं थी.... बल्कि उन सभी पीड़िताओ को न्याय दिलाना था जो आसाराम का शिकार हुई है और आगे हो सकतीं थीं..... ये कहना था एडिशनल कमिश्नर ऑफ पुलिस जयपुर (एसीपी) अजय पाल लांबा का। JLF के दौरान लांबा ने सेशन ‘कॉप नॉयर: द ट्रू बैकस्टोरीज’ में सतीश मेहता के साथ चर्चा की।

गौरतलब है कि लांबा ने आसााराम को अपने ही गुरुकुल की नाबालिग छात्रा के साथ यौन उत्पीड़न के मामले में कारावास तक पहुंचाया। इस केस पर लांबा ने बुक लिखी है जिसमें इस पूरे मामलों को विस्तार से दर्शाया गया है।

आसाराम केस में प्लानिंग ही हमारा मुख्य हथियार थी
मैंने बचपन से सीखा है कि किसी भी काम को अंजाम तक पहुंचाने के लिए प्लानिंग बेहद जरूरी है.... और आसााराम केस में प्लानिंग ही हमारा मुख्य हथियार साबित हुई है। इसमें टीम का काफी सपोर्ट रहा.... टीम सलेक्शन के वक्त मैंने अपने आप पर काफी कंट्रोल रखा। मैं अग्रेसिव होने से बच रहा था... क्योंकि ये एक ऐसी गलती साबित हो सकती थी जिसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती थी.... आसााराम के करोड़ों फॉलोवर्स थे, यानी हमारी एक गलती इस केस में बेहद भारी साबित हो सकती थी। मीडिया के जरिए दिन में दो बार जो भी हमारे पास एविडेंस होते थे उन्हें लोगों तक पहुंचाया ताकि लोगों को कोई गुमराह नहीं कर सके। साथ ही ऐसे एविडेंस को भी छुपाया जो केस को प्रभावित कर सकते थे।
निर्भया केस ने महिलाओं को गलत के खिलाफ आवाज उठाना सिखाया
निर्भया केस ने सोसायटी को काफी कुछ सिखाया है। वुमन इम्पावरमेंट ने ‌इस केस के बाद स्पीड पकड़ी है। शहर ही नहीं गावों तक में आज महिलाएं अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने लगी हैं। दूसरा सबसे बड़ा बदलाव ये देखने को मिला है कि पहले किसी भी केस की जांच में एजेंसियां कई महीने लगा देती थी। लेकिन अब सरकार पर लोगों का प्रेशर रहता है, जिससे एजेंसियों के काम करने की रफ्तार में काफी सुधार आया है।

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