नागौर में हाल ही में एक 7 साल की बच्ची के साथ रेप का मामला सामने आया जिसमे दो हवसी नाबालिगों ने बच्ची को बहला फुसला कर उसे एक कुंए के पास ले गए जिसके बाद वहां के एक छपरे में ले जाकर उसके साथ दुष्कर्म किया गया। सात साल की बच्ची जाहिर तौर पर ये भी नहीं समझ पाई की उसके साथ आखिर हो क्या रहा है लेकिन जब उसे दर्द हुआ तो वो चिल्लाई। जिसके बाद नाबालिगों ने बच्ची को डराते धमकाते हुए कहा की अगर उसने ये बात बताई तो वे उसके माता पिता को जान ले लेंगे। हैरानी की बात ये है की दोनों आरोपियों में से एक आरोपी पीड़िता की ही उम्र का है।
ये घटना मानसिक तौर पर तो झकझोरती है ही साथ ही में प्रदेश सरकार के कानून व्यवस्था पर भी सवालिया निशान उठाती है। महिलाओ के प्रति हितेषी बनने की ओर अग्रसर और 'लड़की हूँ कर सकती हूँ' के फलसफे को मानने वाली कांग्रेस पार्टी जहाँ पूरे देश के सामने महिलाओ के प्रति एक बेहतरीन सुरक्षा व्यवस्था का मॉडल बनाकर एक मिसाल पेश कर सकती थी तो वहीँ मौजूदा व्यवस्था अपराधियों के सामने लचर नजर आती है।
आंकड़ों की बात करें तो प्रदेश बीते दो सालो से लगातार रेप के मामलो में नंबर एक की पोजीशन पर अपनी पैठ बनाये हुए है। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष और वायनाड से सांसद राहुल गांधी जब रेप इन इंडिया का जिक्र करते है तो संभवतः वे राजस्थान का ही ख्याल कर रहे थे। महिलाओ की सुरक्षा को लेकर सरकार कितनी "संवेदनशील" है इसका अंदाजा NCRB के आंकड़ों से लगाया जा सकता है। साल 2019 में रेप के 5997 मामले दर्ज हुए इसके अगले साल यानी की 2020 में ये आंकड़ा 5310 रहा जबकि 2021 में ये आंकड़ा अपने उच्चतम स्तर पर जाते हुए 6337 पर जा पहुंचा।
रेप के इन बढ़ते आंकड़ों पर हालाँकि प्रदेश के DGP ML Lather बढ़ते अपराध के मामलो को लेकर कहते है की इसकी वजह कोरोना है। क्यूंकि कोरोना में देशभर में व्यापक स्तर पर लॉकडाउन देखने मिला था जिसके चलते ये आंकड़े ज्यादा नजर आते है। बहरहाल जब आंकड़ों थोड़ा और टटोलते है तो मालूम चलता है की देश की राजधानी जयपुर रेप के मामलो में भी "राजधानी" दिखाई पड़ती है। बीते 28 महीनो में राजधानी में नाबालिगों से रेप के 11,307 मामले दर्ज किये गए।
अब बात करें मामलो की तो बीते 28 महीने में कुल दर्ज मामलो के 45% केस यानी 6,191 मामले ही कोर्ट तक पहुंच पाए। और जब सजा के मामलो पर नजर घुमाएंगे तो पता चलेगा की मात्र 4.46% मामलों में ही अब तक सजा दी गई है। यानी की बेदम सुरक्षा व्यवस्था के साथ कानून प्रणाली भी कदमताल करती नजर आती है। बीते 3 सालो में अपनी हवस की प्यास मासूमो के जरिये बुझाने वाले दरिंदो में से 8 अभियुक्तों को पॉक्सो कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई, लेकिन अमल एक भी मामले में नहीं हुआ।
हाईकोर्ट के आदेश को भी किया नजरअंदाज
प्रदेश में नाबालिगों के खिलाफ हो रहे बढ़ते अपराधों को देखते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने साल 2018 में 50 दुष्कर्म के मुकदमों पर एक पॉक्सो कोर्ट खोलने का आदेश दिया था। अब इस हिसाब से देखा जाए तो प्रदेश में 153 पोक्सो कोर्ट खुलनी थी, नई कोर्ट खुलना तो दूर, मौजूदा 57 पॉक्सो कोर्ट पर ही भार बढ़ा दिया गया। मौजूदा स्थिति ऐसी है की कई पॉक्सो कोर्ट में महिला उत्पीडन के मामले भी भेजे जा रहे है जिसके चलते रेप जैसे गंभीर मामले हाशिए पर जा रहे हैं।