होली आने के साथ-साथ मौसमी रंग अब राजनीतिक पार्टियों में भी दिखने लगा है। राजस्थान भाजपा में गुटबाज़ी के एक ही दिन में तीन अलग-अलग रंग साफ नजर आये। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश भाजपा के अन्दर अंतकलह बढ़ गयी है, जो स्पष्ट तौर पर नजर आ रही है।
पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने जन्मदिन के पूर्व बड़ा शक्ति प्रदर्शन किया है। आयोजन की व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी वसुंधरा के नजदीकी नेताओं ने संभाली। दावा किया जा रहा है कि इस महोत्सव में एक लाख से ज्यादा लोग जुटे है।
दूसरी ओर, भाजपा संगठन जहां गहलोत सरकार के खिलाफ जयपुर में विभिन्न जनहित के मुद्दों पर हल्ला बोल किया गया। ये प्रदर्शन भाजयुमो कार्यकर्ताओं की ओर से पेपर लीक और प्रदेश में बिगड़ती कानून व्यवस्था के विरोध में किया गया।
वहीं सांसद डॉ किरोड़ी लाल मीणा का राजधानी जयपुर के शहीद स्मारक पर बेमियादी धरने पर बैठे है। किरोड़ी लाल पुलवामा के शहीद सैनिकों की वीरांगनाओं को न्याय दिलाने की मांग पर दिन भर धरने पर बैठे हैं।
राज्य में एक के बाद एक हो रहे पेपर लीक मामले और बिगड़ती कानून व्यवस्था के विरोध में आज भारतीय जनता युवा मोर्चा की ओर से मुख्यमंत्री आवास का घेराव करने का प्रयास किया गया। मुख्यमंत्री आवास का घेराव करने निकले भाजयुमो कार्यकर्ताओं को पुलिस ने 22 गोदाम सर्किल पर ही बैरिकेड लगाकर रोक लिया।
पुलिस ने भाजयुमो कार्यकर्ताओं को तितर-बितर करने के लिए वाटर कैनन का इस्तेमाल भी किया। इस दौरान भाजयुमो कार्यकर्ताओं ने जमकर गहलोत सरकार के खिलाफ नारेबाजी भी की।
राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने शनिवार यानि 4 मार्च को प्रदेश के चूरू जिले में स्थिति सालासर में एक महासभा करते हुए इस साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव 2023 के लिए खुद की ताल ठोक दी है। भारतीय जनता पार्टी में वसुंधरा राजे का ये शक्ति प्रदर्शन राजस्थान की राजनीति में कई तरह के मायनों से देखा जा रहा है।
इस प्रदर्शन के जरिये राजे ने केंद्रीय नेतृत्व को दिखा कि राजस्थान से वे ही सीएम का चेहरा है।राजे ने सालासर में आयोजित हुए कार्यक्रम में स्पष्ट रूप से मंच से कहा कि 'अगर वो 2023 चुनाव के बाद CM बनती है तो सालासर बालाजी मंदिर नव निर्माण व सालासर धाम का विकास करेंगे'
सांसद डॉ किरोड़ी लाल मीणा का कहना है कि 'हल्ला बोल' कार्यक्रम में पूरी भाजपा एकजुट होकर उतरती तो ज़्यादा बेहतर होता। साथ मिलकर विरोध-प्रदर्शन करके जनता की आवाज़ उठाने से पार्टी नेता-कार्यकर्ता के साथ जनता का भी जुड़ाव ज़्यादा रहता और सरकार भी दबाव महसूस करती।