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पंजाब में कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के सरेंडर से राजस्थान में सचिन पायलट के समर्थक उत्साहित, क्या ऐसा राजस्थान में होगा ?

savan meena

23 जुलाई को पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष पद संभाल लिया है। इससे पहले मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने सिद्धू सहित कांग्रेस के सभी विधायकों को चाय पर आमंत्रित किया। सिद्धू ने कैप्टन के बगल में बैठकर गुफ्तगू भी की। इसे कैप्टन अमरेन्द्र सिंह का राजनीतिक सरेंडर माना जा रहा है, क्योंकि सिद्धू की घोषणा के बाद अमरेन्द्र सिंह की ओर से कहा गया कि जब तक सिद्धू अपनी सरकार विरोधी बयानों पर माफी नहीं मांगेंगे तब तक सिद्धू से मुलाकात नहीं होगी।

लेकिन 23 जुलाई को कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने केवल सिद्धू से मुलाकात की, बल्कि पास बैठकर गुफ्तगू भ की। सब जानते हैं कि कैप्टन की मर्जी के खिलाफ गांधी परिवार ने सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया है। अब कैप्टन ने भी सिद्धू के समक्ष राजनीतिक सरेंडर कर दिया है।

सीएम अमरेन्द्र सिंह के सरेंडर से राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के समर्थक उत्साहित है। क्योंकि शुरू से सिद्धू को लेकर मुख्यमंत्री ने जो रुख अपनाया था, वहीं रुख राजस्थान में पायलट को लेकर सीएम अशोक गहलोत प्रकट कर रहे हैं।

गहलोत भी नहीं चाहते हैं कि पायलट और उनके किसी समर्थक को सरकार और संगठन में स्थान मिले। गहलोत ने अपनी इन भावनाओं को निर्दलीय और बसपा वाले कांग्रेसी विधायकों से प्रकट करवाया है। लेकिन पंजाब के हालातों को देखते हुए पायलट समर्थकों को लगता है कि अब सीएम गहलोत को भी राजनीतिक सरेंडर करना पड़ेगा, क्योंकि गांधी परिवार में सचिन पायलट की स्थिति लगातार मजबूत हो रही है।

2018 में कांग्रेस की सरकार बनाने में पायलट की महत्वपूर्ण भूमिका रही

पायलट के समर्थकों को लगता है कि अब जल्द ही गहलोत को दिल्ली बुलाया जाएगा और पायलट के बारे में दिशा निर्देश दिए जाएंगे। गांधी परिवार भी मानता है कि 2018 में कांग्रेस की सरकार बनाने में पायलट की महत्वपूर्ण भूमिका रही है और 2023 में पायलट के सहयोग से दोबारा सरकार बनाई जा सकती है, इसलिए पायलट को प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कमान सौंपी जा सकती है तथा समर्थक विधायकों को मंत्री बनाया जा सकता है।

दिसम्बर 2018 में पायलट के दावे को दरकिनार कर गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया गया था

गांधी परिवार यह भी मानता है कि दिसम्बर 2018 में पायलट के दावे को दरकिनार कर गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया गया था। लेकिन पायलट को सरकार में जो महत्व मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला। पायलट को डिप्टी सीएम तो बनाया, लेकिन गहलोत ने गृह, वित्त जैसे महत्वपूर्ण विभाग अपने पास रख लिए और पायलट को पंचायती राज, पीडब्ल्यूडी जैसे कम महत्व वाले विभाग दिए।

आईएएस अफसरों के कारण पायलट की अपने ही विभागों में नहीं चली

ऐसे में पायलट को अपने समर्थक 18 विधायकों के साथ गांधी परिवार से मिलने के लिए दिल्ली जाना पड़ा। गत वर्ष जब पायलट दिल्ली गई तब जयपुर में पायलट को प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और डिप्टी सीएम के पद से बर्खास्त कर दिया गया। तब पायलट पर यह आरोप लगाया गया कि वे भाजपा के साथ मिलकर अपनी ही सरकार को गिराना चाहते हैं।

गांधी परिवार से मिल कर पायलट और उनके समर्थक विधायक जयपुर लौट आए

हालांकि एक माह बाद गांधी परिवार से मिल कर पायलट और उनके समर्थक विधायक जयपुर लौट आए और तभी से गहलोत के साथ खड़े हैं। लेकिन गहलोत ने पायलट और उनके समर्थकों को अभी तक भी मान सम्मान नहीं दिया है। इस बार पायलट और उनके समर्थक कांग्रेस में रह कर ही संघर्ष कर रहे हैं। 23 जुलाई को जिस तरह पंजाब में राजनीतिक माहौल बदला है, उससे राजस्थान में पायलट के समर्थक उत्साहित हैं। समर्थकों का मानना है कि अब जल्द ही राजस्थान की समस्या का समाधान हो जाएगा। 23 जुलाई को ही दिल्ली में मीडिया के सवाल पर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा कि अब पंजाब की समस्या का समाधान हो गया है।

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