अफ़ग़ानिस्तान से विदेशी सैनिकों की वापसी के बाद तालिबान बहुत तेज़ी के साथ मज़बूत हुआ है, लेकिन तुर्की इसके बावजूद काबुल एयरपोर्ट को चलाना चाहता है और इसकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी ख़ुद लेना चाहता है। तुर्की के रक्षा मंत्री हुलुसी अकर ने बुधवार को कहा कि काबुल एयरपोर्ट का खुला रहना फ़ायदेमंद है और आने वाले दिनों में इसे लेकर कुछ फ़ैसले लिए जाएंगे।
तुर्की के रक्षा मंत्री ने गुरुवार को कहा कि काबुल एयरपोर्ट के संचालन को लेकर तुर्की बातचीत कर रहा है। गुरुवार को टर्किश रक्षा मंत्री ने ये बात पाकिस्तान के इस्लामाबाद स्थित अपने दूतावास में कही। टर्किश रक्षा मंत्री ने कहा कि अगर काबुल एयरपोर्ट बंद हुआ तो अफ़ग़ानिस्तान में कोई भी राजनयिक मिशन काम नहीं कर पाएगा। टर्किश रक्षा मंत्री ने कहा, "इसी वजह से हमलोग चाहते हैं कि काबुल एयरपोर्ट खुला रहे। आने वाले दिनों में इसे लेकर कुछ होगा।"
बुधवार को सीएनएन तुर्क को दिए इंटरव्यू में तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन ने कहा, "अफ़ग़ानिस्तान में बढ़ती हिंसा को लेकर वे तालिबान से मिल सकते हैं। हमारी संबंधित एजेंसियां तालिबान के साथ बैठक को लेकर काम कर रही हैं। मैं भी तालिबान के किसी एक नेता से मिल सकता हूँ।" हालांकि तालिबान ने तुर्की को धमकी दे रखी है कि वो काबुल एयरपोर्ट पर अपनी सेना ना भेजे।
बुधवार को इस्लामाबाद में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने तुर्की के रक्षा मंत्री से मुलाक़ात के बाद विदेशी मीडिया से कहा था कि तालिबान और तुर्की के बीच बातचीत कराने की कोशिश की जाएगी। इमरान ख़ान ने कहा था, "तुर्की और तालिबान आमने-सामने बात करें तो ये ज़्यादा अच्छा रहेगा। दोनों आपस में उन वजहों पर बात कर सकते हैं कि काबुल एयरपोर्ट का सुरक्षित रहना क्यों ज़रूरी है। इसीलिए हम तालिबान से बात कर रहे हैं कि वे तुर्की के साथ आमने-सामने बात कर सकें।"
इमरान ख़ान ने कहा, "अफ़ग़ान सरकार के मन में पाकिस्तान को लेकर बहुत पूर्वाग्रह है। उन्हें लगता है कि पाकिस्तान के पास तालिबान को समझाने की कोई जादुई छड़ी है। अब तालिबान को राज़ी करना और मुश्किल हो गया है। अब तो तालिबान को लगता है कि उसने अमेरिका को हरा दिया है।"
इमरान ख़ान ने अफ़ग़ानिस्तान में चीन की भूमिका पर कहा कि चीन एक उभरती शक्ति है और अफ़ग़ानिस्तान का पड़ोसी भी है, ऐसे में अफ़ग़ान शांति प्रक्रिया में चीन की अहम भूमिका है।
इमरान ख़ान ने कहा, "पाकिस्तान में 30 लाख रजिस्टर्ड अफ़ग़ान शरणार्थी हैं। इसके अलावा बड़ी संख्या में वैसे शरणार्थी भी हैं जिनके बारे में कुछ पता नहीं है। हमारी अर्थव्यवस्था किसी भी तरह से पटरी पर आ रही है, ऐसे में हम और शरणार्थी नहीं चाहते हैं। इस साल की शुरुआत में तालिबान नेता पाकिस्तान आए थे तो हमने राजनीतिक समाधान के लिए कहा था, लेकिन उन्होंने राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी से बात करने से इनकार कर दिया था।"
अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति भवन समेत तमाम दूतावासों के नज़दीक स्थित काबुल हवाई अड्डा रणनीतिक रूप से काफ़ी अहम है। यह एयरपोर्ट अफ़ग़ानिस्तान को दुनिया से जोड़ने का काम करता है। काबुल एयरपोर्ट इस युद्धग्रस्त मुल्क तक मानवीय सहायता पहुँचाने के लिए एक सुरक्षित रास्ता देता है। टर्किश न्यूज़ वेबसाइट डेली सबाह के मुताबिक़, ये एयरपोर्ट संवेदनशील स्थिति पैदा होने पर विदेशी राजनयिकों को सुरक्षित बाहर निकालने का एकमात्र विकल्प है। इस एयरपोर्ट पर तालिबान लड़ाकों का कब्ज़ा होते ही अफ़ग़ानिस्तान एक हद तक दुनिया से कट जाएगा।
कहा जा रहा है कि अर्दोआन के अचानक आए इस प्रस्ताव की वजह से पिछले महीने जून में तुर्की को नेटो सम्मेलन के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से पहली मुलाक़ात में ही बेहतर तालमेल बिठाने का मौक़ा मिला। इस प्रस्ताव से अर्दोआन के दो उद्देश्य बताए जा रहे हैं। पहला उद्देश्य पश्चिमी सहयोगियों के साथ एक ख़राब संबंधों में गर्मजोशी लाना और दूसरा उद्देश्य मानवीय सहायता पहुँचाने का रास्ता खुला रखकर शरणार्थी संकट से बचना है।