राजस्थान के अलवर में हुई मूकबधिर बालिका के साथ बर्बरता के मामले में लगातार पुलिस की बयानबाजी ने मामलें को उलझा दिया है जिसके बाद लगातार आरोप लग रहे है कि मामलें को लेकर सरकार के दबाव के कारण पुलिस अपने बयान को बदल रही है। लेकिन जमींनी हकीकत आखिर क्या है?
सबसे बड़ा सवाल की आखिर पुलिस ने एफआईआर किस आधार पर दर्ज की.... सिंस इंडिपेंडेंस ने सबसे पहले उस एफआईआर की कॉपी को तलाश करने की कोशिश की जिससे इस घटना के बारें में कुछ अहम सुराग हाथ लग सकता था। हर तरफ खंगालने के बाद सिंस इंडिपेंडेंस के हाथ वो एफआईआर की कॉपी हाथ लगी.... इस एफआईआर की कॉपी में चौकानें वाले तथ्य हमारे हाथ लगें।
पुलिस ने चाचा को बताया कि लड़की के साथ कुछ गलत काम करके उसे तिजारा पुलिया पर फेंक दिया गया हैं....ये बात बकायदा पुलिस के द्वारा दर्ज की गई एफआईआर में कहीं गई हैं....
आखिर पुलिस के द्वारा दर्ज की गई एफआईआर का आधार क्या है? क्या पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने में जल्दबाजी की...क्या पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने से पहले अलवर में लड़की का उपचार करने वाली मेडिकल टीम से बात की....क्या पुलिस ने खुद से अनुमान लगा लिया की लड़की के साथ कुछ गलत हुआ है...अगर मेडिकल टीम से पुलिस ने मामले को लेकर सलाह ली... तो अब पुलिस इस पूरे मामले को क्यों रेप या गैंग रेप की जगह हिट एंड रन से जोड़ कर देख रही है... अगर पुलिस ने मामले को लेकर जल्दबाजी भी की है तो उसको पुलिस को द्वारा स्वीकार क्यों नहीं किया गया...
लेकिन अभी जब मामलें में किसी भी तरह का खुलासा नहीं हुआ है तो मुख्यमंत्री महोदय ने आखिर किस आधार पर विधानसभा में ये बोला कि लड़की के साथ किसी भी तरह की अप्रिय घटना नहीम हुई है।
मामलें में रिपोर्ट में जुर्म को देखते हुए पुलिस ने मामले को धारा 363 अपहरण, धारा 376 की तहत किसी महिला के साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाना।