युरोपियन यूनियन और अमेरिका कह रहा है कि रुस ने यूक्रेन पर हमला किया है और रुस और उसके साथी कह रहे हैं रुस युक्रेन पर विसैन्यकरण को लेकर एक ऑपरेशन चला रहा है. यूक्रेन की सेना का कहना है रूस को अब तक के युद्ध में काफी नुकसान पहुंचा है. उसने 9000 सैनिक, 30 प्लेन, 374 कार, 217 टैंक के अलावा 900 आर्म्ड पर्सनल कैरियर्स को गंवा दिया है. इस युद्ध में इतना नुकसान हो चुका है. तो वहीं यूक्रेन की एजेंसी का दावा है की यूक्रेन ने युद्ध में 352 सैनिक और नागरिक,31 एयरक्राफ्ट,314 टैंक बख्तबंद वाहन,121 तोप आर्टिलरी का नुकसान हुआ है.
ये कॉन्फिल्कट की लड़ाई इतनी जल्दी क्राइसिस बन जाएगी किसी को इसका अंदाजा नहीं था, कोरोना की मार के बाद दुनिया संभलने की कोशिश कर रही ही थी कि दो देशों के इस विवाद ने पूरी दुनिया को दो पालों में खड़ा कर दिया. महाशक्तियों के बीच में आने से वो देश भी सकते में हैं जो हमेशा विश्व शांति की बात करते रहे हैं. क्यों कि बातों में ही सही परमाणु हथियारों की एंट्री हो चुकी है. आइए तफ्सील से समझने की कोशिश करते हैं कि परमाणु हमले की नौबत कब आती है और इसकी क्या प्रक्रिया होती है.
24 फरवरी 2022, रूस में सुबह का समय, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के पूर्वी हिस्से में विशेष सैन्य अभियान का ऐलान किया और पहले से ही सीमा पर तैनात रूसी सेना ने यूक्रेन पर हमला बोल दिया. आकार के हिसाब से बात करें तो रूस दुनिया का सबसे बड़ा देश है और यूक्रेन आकार के हिसाब से 45 वे नबंर पर आता है.
रूस चाहता है कि यूक्रेन नाटो का सदस्य ना बने और पूर्व के देशों में नाटो की सेना तैनात न हो. लेकिन नाटो का सदस्य बनने के लिए यूक्रेन उसके साथ सहयोग बढ़ाना चाहता है. युद्ध शुरू होने के बाद संयुक्त राष्ट्र और पश्चिमी देशों ने कड़े शब्दों में रूस की निंदा की और उसपर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए. नाटो ने रूस के आसपास मौजूद अपने सदस्य देशों में सैन्य मौजूदगी बढ़ाई और कहा कि यूक्रेन को अपनी रक्षा करने का पूरा हक़ है.
वही 27 फरवरी को रूसी राष्ट्रपति ने ये कहते हुए अपने परमाणु हथियारों को 'स्पेशल अलर्ट' पर रखने का आदेश दे दिए कि पश्चिमी देशों ने पहले उन्हे धमकी दी. आपको बता दे की दुनिया का सबसे परमाणु हथियारों का जखीरा रूस के पास है. परमाणु हथियारों को लेकर जानकार मानते हैं कि रूस के ऐलान से एक वैश्विक संकट पैदा हो गया है. हालांकि रूस के अलावा अमेरिका, चीन और ब्रिटेन समेत कई और मुल्कों के पास भी परमाणु हथियार हैं. परमाणु हथियार जिन्हे तबाही या मौत का सौदागर कहा जाता है. हालांकि रूस के अलावा अमेरिका, चीन और ब्रिटेन समेत कई और मुल्कों के पास भी ऐसे हथियार हैं.
अमेरिका में परमाणु हथियार के बॉक्स को न्यूक्लियर फुटबाल कहा जाता है. एक पूर्व मिसाइल अधिकारी जिन्होने 70 के दशक में उन्होने अमरीका के खुफिया एटमी मिसाइल ठिकानों पर काम किया.
"अमेरिकी सिस्टम में परमाणु हथियारों इस्तेमाल करने के आदेश सिर्फ़ देश के राष्ट्रपति दे सकते है." "इसलिए अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ हर वक्त कुछ ख़ास मौजूद रहते हैं. उनके पास एक ब्रीफकेस होता है जिसे न्यूक्लियर फुटबॉल कहा जाता है. "ये काले रंग का चमड़े का ब्रीफकेस होता है जो दिखने में बेहद साधारण होता है. लेकिन इसके अंदर ख़ास तरह के उपकरण लगे होते हैं, जिसके ज़रिए राष्ट्रपति अपने वरिष्ठ सलाहकारों और कुछ अन्य बेहद ज़रूरी लोगों से कभी भी किसी भी वक्त बात कर सकते है.
अब बात करेंगे लॉन्च करने की प्रकिया कि. अमेरिका में मिसाइल लॉन्च करने की प्रक्रिया की शुरूआत पेंटागन वॉर रूम से होती है लेकिन इसके लिए वॉर रूम को राष्ट्रपति के आदेश की ज़रूरत होती है. लेकिन उनका आदेश भी तब मान्य होता है. जब वो मिसाइल लॉन्च ऑफ़िसर को अपना एक खास कोड़ बताते हैं. ये पहचान एक बिस्कुटनुमा प्लास्टिक कार्ड में छिपा होता है. अमेरिका के राष्ट्रपति को हमेशा इस कार्ड को अपने साथ रखना होता है. यही वो कार्ड है जिसकी वजह से अमरीकी राष्ट्रपति को दुनिया का सबसे ताक़तवर शख़्स कहे जाते है. राष्ट्रपति से मंज़ूरी मिलने के बाद चंद मिनट के अंदर परमाणु मिसाइल को लॉन्च किया जा सकता है. साथ ही उनका कहना है कि राष्ट्रपति का आदेश मिलने के बाद मिनटमैन, यानी ज़मीन पर तैनात एटमी मिसाइल से हमला करने वाले या फिर पनडुब्बी में तैनात मिसाइलों को लॉन्च कोड से खोला जाता है और हमले के लिए तैयार रहते है.
विशेषज्ञों के अनुसार उनके पूरे करियर में एक बार ऐसा हुआ था. जब लगा कि परमाणु युद्ध छिड़ जाएगा उस वक्त हमें डेफ़कॉन 3 अलर्ट मिला कि परमाणु युद्ध के लिए तैयार हो जाओ." ब्रूस और उनके सहयोगी टिमोथी मिसाइल का लॉन्च कोड यानी चाभी लेकर कुर्सी पर बैठ गए और मिसाइल लॉन्च के आख़िरी फ़रमान का इंतज़ार था, लेकिन राहत की बात रही कि वो कभी नहीं आया.साल 1973 की बात थी जब अरब और इसराइल जंग के मैदान में आमने-सामने थे. राहत की बात रही कि परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की उस समय भी नहीं आई. इससे पहले 1960 के दशक में क्यूबा मिसाइ संकट के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ परमाणु युद्ध के बेहद क़रीब पहुंच गए थे. लेकिन उस समय भी हमला नहीं हुआ. इसी बीच एक सवाल और की क्या अमेरिकी राष्ट्रपति के आदेश को ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के प्रमुख आदेश को मानने से इंकार कर सकते है.तो जवाब है हां. लेकिन ऐसा होनी की उम्मीद बेहद कम है. क्योंकि राष्ट्रपति के आस पास काम करने वाले लोगों को आदेश मानने की ट्रेनिंग दी जाती है. इसलिए अगर कोई राष्ट्रपति अपनी तरफ से परमाणु मिसाइल लॉन्च करने का आदेश दे भी देता है.
इगोर जो हथियारों के जानकार है. वो रुस के रहने वाले है और कभी वह सरकार के लिए काम किया करते थे.
ऐसे ही दो ब्रीफ़केस रूसी प्रधानमंत्री और रूसी रक्षा मंत्री के पास भी मौजूद होते है. लेकिन परमाणु हमले का आदेश केवल राष्ट्रपति ही दे सकते हैं.
ब्रिटिश सेना के पास ट्राइडेंट परमाणु मिसाइलों से लैस कुल 4 पनडुब्बियां हैं, जिनमें से एक नॉर्थ अटलांटिक महासागर में हमेशा तैनात रहती हैं, ये केवल एक इशारा मिलने पर परमाणु हमला कर सकती है. वो कहते हैं, "नॉर्थ अटलांटिक की ख़ामोश गहराइयों में हर समय कहीं न कहीं पनडुब्बी मौजूद रहती है जिसकी मौजूदगी के बारे में किसी को पता नहीं होता. कोई इस बारे में पता भी नहीं कर सकता.""ब्रितानी सिस्टम में परमाणु मिसाइल लॉन्च करने का आदेश सिर्फ़ प्रधानमंत्री दे सकते हैं. उनके आदेश देने के बाद रॉयल नेवी वैनगार्ड क्लास की पनडुब्बी परमाणु हमला कर सकती है."
इसके लिए ब्रितानी प्रधानमंत्री को देश की नौसेना के दो अधिकारियों को मिसाइल लॉन्च का अपना एक ख़ास कोड बताना होता है. उन दोनों अधिकारियों के पास भी ख़ास कोड होते हैं, वो भी अपने-अपने कोड बताते हैं. इसकी प्रक्रिया, लंदन के बाहर स्थित एक बंकर में पूरी होती है. यहीं से महासागर में तैनात पनडुब्बी को एटमी मिसाइल लॉन्च करने का आदेश जारी किया जाता है. "पनडुब्बी में भी दो अधिकारी, वायरलेस के ज़रिए ये संदेश रिसीव करते हैं और फिर अपने-अपने कोड का मिलान करके मिसाइल लॉन्च की तैयारी करते हैं.
जिनमें न्यूक्लिर फिशन का इस्तेमाल होता है. जब एक न्यूट्रॉन एटम से टकराता है तो उससे एटम दो टुकड़ों में बंटता है. इस प्रक्रिया में बड़ी मात्रा में ऊर्जा और रोशनी पैदा होती है.
जिनमें न्यीक्लियर फ्यूशन का इस्तेमाल होता है. इसमें बेहद ऊंचे तापमान में हाइड्रोजन के आइसोटोप एक दूसरे से जुड़कर हीलियम बनाते हैं और इस प्रक्रिया में उर्जा और रोशनी पैदा होती है.
परमाणु हथियारों को लॉन्च करने का मतलब है. दुश्मन का खात्मा. लेकिन इसे बड़ी ज़िम्मेदारी के साथ चलाया जाता है. कहा जाता है "ब्रिटेन में जब कोई प्रधानमंत्री बनता है, तो वो अपने हाथों से परमाणु मिसाइलों वाली चार पनडुब्बियों को ख़त लिखता है. इस चिट्ठी को ‘लेटर ऑफ लास्ट रिजॉर्ट कहा जाता है. जिसे पनडुब्बी की तिजोरी में रखा जाता है. प्रोटोकॉल के अनुसार इसे तभी पढ़ा जाता है. जब ब्रिटेन किसी हमले में पूरी तरह से तबाह हो जाए. "लेटर ऑफ़ लास्ट रिज़ॉर्ट में पनडुब्बी के कमांडर के लिए क्या आदेश लिखा गया है,इसके बारे में अभी तक किसी को नहीं पता चल पाया है. जब यूके पीएम बदलते हैं, तो इस चिट्ठी को बिना खोले ही नष्ट कर दिया जाता है. और इसी तरह हर बार एक नया पीएम पनडुब्बी के लिए कमांडर को नई चिट्ठी लिखता है.
चीन भी परमाणु संपन देशों की गिनती में आता है.चीन में मौजूद टोंग जाओ जो बीजिंग में कार्नेगी चिन्हुआ सेंटर फ़ॉर ग्लोबल पॉलिसी में फेलो हैं. उनका मानना है कि ये सबसे गंभीर मुद्दा है जिसका सामना इंसान कर रहे हैं. परमाणु हथियार और परमाणु युद्ध का सीधा संबंध इंसान के अस्तित्व से जुडा है उनका कहना है की "इतिहास में ऐसे कई मौक़े आए जब हम परमाणु युद्ध के मुहाने तक पहुंच गए. और पूरी मानव जाति पर ख़तरा मंडराने लगा.
"फिलहाल चीन दुनिया के उन देशों में शामिल है जिनके पास परमाणु हथियारों की ताकत मौजूद है. लेकिन उसकी नीति पहले हमला करने की नहीं रही है. टोंग जाओ का ये भी मानना है कि इसके पीछे एक बड़ी वजह है कि चीन ने अभी ऐसी क्षमता विकसित नहीं की है. जिससे वह संभावित परमाणु हमले का पहले पता लगा सके. लेकिन एक सवाल है कि लेकिन अगर किसी हमले में चीन के सभी बड़े नेता और सैन्य कमांडर मारे जाएं और दुश्मन के हमले में चीन की परमाणु मिसाइल भी तबाह हो जाए, तो ऐसी स्थिति में चीन के पास क्या विकल्प होगा
जानकार मानते है की "हमले में अपने नेताओं और अपने परमाणु मिसाइलों को नष्ट होने से बचाने के लिए चीन ने पहले ही इसे लेकर काफी तैयारी कर ली है. इसके लिए चीन ने गहरी सुरंगों का नेटवर्क बनाया है. कुछ सुरंगें तो पहाड़ी इलाक़ों में ज़मीन के नीचे सौ-सौ मीटर की गहराई में भी बनी हुई हैं." मतलब ये कि ज़मीन पर जब जंग का धुंआ उठ आसमान में दिख रहा होगा तब जमीन में रहकर चीनी कमांडर कुछ महत्वपूर्ण फैसला ले रहे होंगे. लेकिन चीन में परमाणु हमले का आख़िरी फ़ैसला किसके हाथ में होता है? ये भी बड़ा सवाल है.
"ये सब गोपनीय बातें हैं लेकिन चीन के लोगों का मानना है कि चीन में सेना क्या करेगी इसका फ़ैसला कम्युनिस्ट पार्टी के पोलितब्यूरो की स्टैंडिंग कमिटी करती है औऱ अंतिम फ़ैसला कमिटी का या फिर राष्ट्रपति का होगा ये किसी को नहीं पता होता." चीन से जुडे जानकार मानते है की हो सकता है कि अपने ऊपर परमाणु हमला होने के कई हफ़्तों या महीनों तक चीन खामोश रहे और फिर पलटवार करे, क्योंकि शुरुआत से ही चीन, पहले हमला करने की पश्चिमी देशों की नीति का विरोध करता रहा है. क्योंकी परमाणु हमले की घाव का अदाजा उसने हिरोशिमा-नागासाकी से लगा लिया है.
पश्चिमी देशों की सोच का असर चीन पर दिखने लगा है. 2015 में चीन ने ज़मीन पर परमाणु और पारंपरिक मिसाइलों पर काम करने वाली ब्रांच को स्थायी तौर पर अपनी सेना में एक अंग के रुप में शामिल कर लिया जिसे पीपल्स लिबरेशन आर्मी रॉकेट फोर्स का नाम दिया गया. आपको बता दे की चीन भी दूसरे देशों की तरतह हाइपरसोनिक तकनीक पर काम कर रहा है और अपने परमाणु हथियारों का ज़खीरा बढ़ाने की कोशिश में लगा हुआ है.
इसी के चलते कुछ जानका मानते है की अमेरिका और रुस की तरह चीन के पास भी परमाणु हमले के आदेश देने का अधिकार होना चाहिए. इसी कारण से चीन इन दिनों का ताक़तवर रडार प्रणाली विकसित कर रहा है साथ ही लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलें बना रहा है."
जानकारों का ये भी मानना है कि आने वाले दिनों में चीन भी पहले इस्तेमाल न करने की अपनी नीति बदल दे.