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UP Election 2022: अखिलेश-शिवपाल के खिलाफ मायावती ने दलित कार्ड खेलकर क्या भाजपा के लिए खड़ी कर दी मुश्किलें?

अखिलेश के करहल और शिवपाल की पारंपरिक सीट जसवंतनगर पर मायावती ने दलित उम्मीदवारों को उतारकर दलित वोटों को बीजेपी में जाने से बचाया है। क्या कहते हैं सियासी समीकरण? समझिए

ChandraVeer Singh

(UP Election 2022) यूपी की सियासत में पहली दफा सपा मुखिया अखिलेश यादव मैनपुरी जिले की करहल सीट से विधानसभा चुनाव में दम खम से अपनी ताकत झोंक रहे हैं। वहीं अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव भी एक बार फिर अपनी फिक्स सीट जसवंतनगर से सियासी रण में हैं। ऐसे में बुआ यानि बसपा सुप्रीमों मायावती ने भी अखिलेश और शिवपाल यादव के खिलाफ अपना सियासी दाव चल दिया है।

मायावती ने इन सिटों पर दलित उम्मीदवार उतारे हैं। ऐसे में सियासी गलियारों में सवाल उठ रहे हैं कि सामान्य सीट होने के बावजूद बसपा मुखिया ने चाचा-भतीजे के खिलाफ दलित उम्मीदवार क्यों उतारा है। दरअसल मायावती ने गुरुवार को अपने 53 उम्मीदवारों की सूची जारी की। इसमें कुलदीप नारायण को सपा प्रमुख अखिलेश यादव की करहल सीट और उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव की जसवंतनगर सीट से ब्रजेंद्र प्रताप सिंह को उम्मीदवार बनाया है।

करहल से 2017 में बसपा ने उतारा था सामान्य वर्ग का उम्मीदवार
बसपा ने इन दोनों सीटों पर दलित उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि इन सीटों से जनरल और ओबीसी नेताओं को भी मैदान में उतारा जा सकता है। इसके बावजूद मायावती ने दलित उम्मीदवार का दाव चला। बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने करहल से जनरल के उम्मीदवार दलवीर को चुनाव में उतारा था। उस दौरान दलवीर 14.18 फीसदी मतों के साथ तीसरे स्थान पर रहे थे।

करहल और जसवंतनगर सीट पर यादवों का दबदबा तो ​दलितों की भी खासी पैठ

(UP Election 2022) 2017 में ही जसवंतनगर में, बसपा ने तत्कालीन ओबीसी दुर्वेश कुमार शाक्य को चुनाव में उतारा था। शाक्य 10.58 प्रतिशत मतों के साथ तीसरे स्थान पर रहे थे। वहीं बीजेपी ने पिछली दफा दोनों सीटों पर ओबीसी को उतारा था। भाजपा ने जसवंतनगर सीट से यादवों और करहल सीट से शाक्य कम्यूनिटी के केंडिडेट को चुनाव में उतारा था। बता दें कि करहल और जसवंतनगर दोनों सीटों पर यादवों का दबदबा है तो वहीं दलित मतदाताओं की भी अच्छी खासी पैठ है।

क्या बीजेपी के लिए इन दोनों सीट पर मुश्किल होगा मुकाबला
(UP Election 2022) 2017 में भी बीजेपी को दलितों का वोट मिला और दोनों सीटों पर बीजेपी दूसरे नंबर पर रही। ऐसे में एक सीट पर बसपा के जनरल और एक सीट पर ओबीसी उम्मीदवार होने के कारण वह तीसरे नंबर पर रही। इस राजनीतिक अनुभव को देखते हुए बसपा ने भले ही अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों को मैदान में उतारकर अखिलेश-शिवपाल की राह आसान कर दी हो, लेकिन अब बीजेपी के लिए मुकाबला मुश्किल हो गया है।

यादव बहुल होने के बावजूद यादव बनाम दलित की राजनीति शुरू से यहां रही

करहल सीट के सियासी रुझान को देखें तो अखिलेश यादव के लिए काफी सुरक्षित सीट मानी जा रही है। वहीं जसवंतनगर भी शिवपाल यादव के लिए सुरक्षित सीट ही मानी जाती है। दोनों सीटों पर सपा का दबदबा रहा है। यादव बहुल होने के बावजूद यादव बनाम दलित की राजनीति शुरू से ही यहां रही है। बसपा यहां दलित और गैर यादव ओबीसी के जरिए राजनीतिक दखल देती रही है, वहीं बीजेपी ने भी पिछले चुनाव में सवर्ण और ओबीसी वोटों के दम पर बड़ी चुनौती प्रस्तुत की थी।

BJP का करहल सीट पर यादव समुदाय का एक उम्मीदवार फाइनल था, लेकिन अखिलेश के चुनावी ऐलान से फिर मंथन
इधर भाजपा सवर्ण और ओबीसी के फॉर्मूले के जरिए करहल और जसवंतनगर सीट के उम्मीदवारों की तलाश कर रही थी। बीजेपी के अंदरखाने से आ रही खबर के अनुसार पार्टी ने करहल सीट पर यादव समुदाय के एक उम्मीदवार का नाम लगभग फाइनल कर लिया था, लेकिन अखिलेश के चुनाव मैदान में उतरने के ऐलान के बाद पार्टी फिर से उम्मीदवार पर चिंतन शुरू कर दिया है। ताकि सपा प्रमुख के सामने कोई बेहतर उम्मीदवार उतारकर कड़ी चुनौती दी जा सके।

अब यहां से मजबूत उम्मीदवार उतारना चाहती है बीजेपी

वहीं, जसवतनगर सीट से शिवपाल के खिलाफ पिछला दो चुनाव लड़ रहे मनीष यादव अब स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ सपा में शामिल हो गए हैं। मनीष ने 2012 में बसपा के टिकट पर तो वहीं 2017 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और दोनों बार दूसरे नंबर पर रहे। मनीष यादव के जाने के बाद बीजेपी मजबूत उम्मीदवार पर दांव लगाने पर मंथन कर रही है।

बसपा ने दलित वोटों को बीजेपी में जाने से बचाया?

मायावती की इस सियासी चाल से दलित समुदाय के वोट तीन पार्टी में बंटने की संभावना है। जिसका पॉलिटिकल बेनिफिट कहीं न कहीं सपा को मिलता दिख रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बसपा ने दलित वोटों को बीजेपी में जाने से बचाया है। वहीं भाजपा की नजर अब सपा के दूसरे विरोधी वोटों पर रहेगी। ऐसे में ये देखना रोचक होगा कि इन दोनों सीटों पर बीजेपी किसे अपना उम्मदवार घोषित करती है।

बुआ ने बिगाड़ा भाजपा का खेल!

बीजेपी की चुनावी रणनीति चाचा-भतीजे के विरुद्ध मजबूत उम्मीदवार उतारकर सवर्ण, गैर यादव ओबीसी और दलित वोटों को साथ में लेकर सपा को घरेलू सीट पर घेरने की है। जैसे बसपा सुप्रीमो मायावती ने बीजेपी के इन सीटों पर ऐलान से पहले दोनों सीटों पर दलित उम्मीदवारों की घोषणा कर दी। उसी तरह भाजपा अब यहां दोनों सीटो के लिए मंथन में जुट गई है।

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