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Subhash Chandra Bose Jayanti: नेताजी की जयंती को आज से देश पराक्रम दिवस के तौर पर मनाएगा , जानिए बोस की मृत्यु का वो सस्पेंस जो आपके लिए जानना जरूरी है

ChandraVeer Singh

नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत के महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक हैं जिनसे आज भी युवा प्रेरणा लेते हैं। सरकार ने नेताजी के जन्मदिन को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की है। इस बात की जानकारी गृह मंत्री अमित शाह ने अपने ट्वीट के जरिए दी।

अमित शाह ने लिखा, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की आजादी में नेताजी के अतुलनीय योगदान को पूरे देश में 'पराक्रम दिवस' के रूप में मनाने का एक अभिनव कार्य किया है। विचारों और आदर्शों को सिंचित करने का काम करेंगे। इसके साथ ही नेताजी सुभाष चंद्र के अवसर पर बोस की 126वीं जयंती आज, देश भर के नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी।

आजाद हिंद की पहली सरकार नेताजी ने बनाई थी, कहा था ‘अर्जी हुकुमते-आजाद हिंद'
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्टूबर 1943 को भारत की पहली स्वतंत्र अंतरिम सरकार बनाई थी और इसका नाम आजाद हिंद सरकार रखा गया। बता दें कि बोस ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सिंगापुर में इस सरकार का गठन किया था। नेताजी ने इस सरकार को स्वतंत्र भारत का पहला ‘अर्जी हुकुमते-आजाद हिंद' कहा था, इसे निर्वासित सरकार के तौर पर ही जाना गया। नेताजी ने ये सरकार बनाते ही भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त करने के लिए एक सशस्त्र संघर्ष शुरू किया। बोस को यकीन था कि यह सशस्त्र संघर्ष देशवासियों को स्वतंत्रता प्राप्त करने में मदद करेगा। बाद में, जापान ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को भी नेताजी के नेतृत्व वाली आज़ाद हिंद सरकार को सौंप दिया।
पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक देश के हर प्रधानमंत्री ने इस रहस्य को अपने उत्तराधिकारी को सौंप दिया। इसे मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सुलझाने की कोशिश की
जापान के ताइपे में कथित विमान दुर्घटना को 77 साल बीत चुके हैं, लेकिन इन सात दशकों में तीन जांच आयोग इस मुद्दे को किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा पाए। पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक देश के हर प्रधानमंत्री ने इस रहस्य को अपने उत्तराधिकारी को सौंप दिया। इसे मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सुलझाने की कोशिश की लेकिन पहेली अभी भी बनी हुई है।

भारत के राजनीतिक इतिहास की इस सबसे बड़ी पहेली को प्रामाणिक रूप से कोई नहीं सुलझा सका

अंग्रेजों के शासनकाल में खुद अपने-अपने तरीके से नेताजी की स्थिति की गुपचुप तरीके से जांच कराई। इस विषय को लेकर काफी राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप भी लगे और शोधकर्ताओं के बीच कई आपसी विवाद भी हुए। लेकिन भारत के राजनीतिक इतिहास की इस सबसे बड़ी पहेली को प्रामाणिक रूप से कोई नहीं सुलझा सका। यहां तक कि 7 दशकों तक बेहद गोपनीय रखी गई फाइलों को भी सार्वजनिक किया गया, फिर भी नेताजी की मृत्यु अब तक राज ही है।

जापान में शामिल होने और मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत सरकार के खिलाफ युद्ध शुरू करने के बाद नेताजी को अंग्रेजों द्वारा युद्ध अपराधी घोषित कर दिया गया था। इसलिए नेताजी के लापता होने का रहस्य और गहरा गया।

जांच का दायरा बड़ा लेकिन मृत्यु के रहस्य से पर्दा नहीं उठा

जापान ने पहली बार 23 अगस्त 1945 को घोषणा की कि 18 अगस्त 1945 को एक विमान दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु हो गई। लेकिन जब टोकिया और टहैकू के अलग अलग बयानों पर शक पैदा हुआ, तो 3 दिसंबर 1955 को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 3 सदस्यीय जांच समिति के गठन की घोषणा की। शाहनवाज खान, संसदीय सचिव और नेताजी के करीबी सहयोगी, नेताजी के बड़े भाई सुरेश चंद्र बोस और आईसीएस शामिल हैं। एनएन मैत्रा शामिल थे।

जबकि इस समिति के शाहनवाज खान और आइसीएस एन.एन. मैत्रा ने नेताजी की मृत्यु की जापान की घोषणा को सही ठहराया, सुरेश चंद्र बोस असहमत थे। इसलिए विवाद बना रहा। इसके बाद 11 जुलाई 1970 को जस्टिस जीडी ने जब खोसला की अध्यक्षता में एक जांच आयोग का गठन किया तो आयोग ने विमान दुर्घटना के पक्ष को सही माना, लेकिन समर गुहा सहित नेताजी के परिवार के सदस्यों ने इसे अविश्वसनीय बताया।

जब मुखर्जी आयोग ने मृत्यु विमान दुर्घटना में नहीं हुई

उसी दौरान कलकत्ता उच्च न्यायालय ने भी भारत सरकार को इस मामले की गहन जांच करने का आदेश दिया। इसके बाद 1999 में वाजपेयी सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश मनोज मुखर्जी की अध्यक्षता में एक और जांच आयोग का गठन किया। 7 साल की जांच के बाद आयोग ने 6 मई 2006 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। इसमें आयोग ने पाया कि नेताजी की मृत्यु विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी। लेकिन मुखर्जी आयोग ने यह भी स्वीकार किया कि नेताजी अब जीवित नहीं हैं, लेकिन वे 18 अगस्त, 1945 को ताइपे में किसी विमान दुर्घटना के शिकार नहीं हुए थे।

गुमनामी बाबा के नेताजी होने के कोई पुख्ता सबूत नहीं थे

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि ताइवान ने कहा कि 18 अगस्त, 1945 को कोई विमान दुर्घटना नहीं हुई थी और रेनकोजी मंदिर (टोक्यो) में रखी राख नेताजी की नहीं थी। आयोग की जांच में यह भी पाया गया कि गुमनामी बाबा के नेताजी होने के कोई पुख्ता सबूत नहीं थे। नेताजी के परिवार के दो सदस्यों ने नेताजी की रहस्यमय मौत की जांच के लिए मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया था।

जब नेताजी से जुड़ी गोपनीय फाइलें सार्वजनिक की गईं

राष्ट्रीय अभिलेखागार ने 29 मार्च 2016 और 27 अप्रैल 2016 को दो किश्तों में नेताजी से संबंधित 75 अवर्गीकृत डिजिटल फाइलों की प्रतियां सार्वजनिक सूचना के लिए भी जारी कीं। अभिलेखागार ने 27 मई 2016 को आम जनता के लिए 25 फाइलों का चौथा बैच जारी किया जिसमें 5 फाइलें प्रधानमंत्री कार्यालय से संबंधित हैं, 4 फाइलें गृह मंत्रालय की हैं और 16 फाइलें विदेश मंत्रालय की हैं। इसी तरह, पश्चिम बंगाल सरकार ने भी कुछ गोपनीय फाइलें राज्य के अभिलेखागार को सौंप दीं। कोलकाता में, राज्य सरकार ने 18 सितंबर 2015 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस से संबंधित 64 फाइलों को सीडी के रूप में आम लोगों और नेताजी के परिवार के सदस्यों के बीच वितरित किया।

प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर कहा, "सभी देशवासियों को पराक्रम दिवस की ढेरों शुभकामनाएं। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती पर उन्हें मेरी आदरपूर्ण श्रद्धांजलि। मैं नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर उन्हें नमन करता हूं। प्रत्येक भारतीय को हमारे राष्ट्र के लिए उनके महत्वपूर्ण योगदान पर गर्व है।" आज प्रधानमंत्री मोदी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति का आज इंडिया गेट पर अनावरण भी करेंगे।

वहीं, देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने ट्वीट कर कहा, "नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती पर भारत कृतज्ञतापूर्वक श्रद्धांजलि देता है। स्वतंत्र भारत के विचार के प्रति अपनी उग्र प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए उन्होंने जो साहसी कदम उठाए - आजाद हिंद - उन्हें एक राष्ट्रीय प्रतीक बनाते हैं। उनके आदर्श और बलिदान हर भारतीय को हमेशा प्रेरित करते रहेंगे।"

देश के गृह मंत्री अमित शाह ने लिखा, "आजादी के महानायक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती पर उन्हें कोटिशः नमन करता हूँ। उन्होंने अपने असाधारण देशप्रेम, अदम्य साहस व तेजस्वी वाणी से युवाओं को संगठित कर विदेशी शासन की नींव हिला दी। मातृभूमि के लिए उनका अद्वितीय त्याग, तप व संघर्ष सदैव देश का मार्गदर्शन करता रहेगा।"

देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लिखा, "आपको 'पराक्रम दिवस' की बधाई। मैं इस अवसर पर साहस और वीरता के प्रतीक नेताजी सुभाष चंद्र बोस को नमन करता हूं। उन्होंने अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए लड़ते हुए काफी संघर्ष किया। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान हमें आज भी प्रेरित करता है।"

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने लिखा, "नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर देश उन्हें व उनके जोशीले शब्दों को याद करता है। विनम्र श्रद्धांजलि।"

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार यानि 21 जनवरी, 2022 को घोषणा की थी कि स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की एक भव्य प्रतिमा इंडिया गेट पर उनकी स्मृति में बनाई जाएगी। प्रतिष्ठित प्रतिमा स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान का सम्मान करेगी। पीएम मोदी ने घोषणा की कि जब तक ग्रेनाइट से बनी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा पूरी नहीं हो जाती, तब तक नेताजी की होलोग्राम प्रतिमा उसी स्थान पर लगाई जाएगी।

होलोग्राम तकनीक क्या है?

होलोग्राम या होलोग्राफी को सरल भाषा में समझें तो इसे थ्रीडी पिक्चर कहा जा सकता है, इसकी विशेषता यह है कि इसे स्थैतिक किरणों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। वास्तव में कोई ठोस (भौतिक) वस्तु मौजूद नहीं है। यानी इस तकनीक के जरिए ऐसे व्यक्ति या चीज को ऐसी जगह दिखाया जा सकता है जहां वह खुद मौजूद नहीं है।

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