जयपुर की गलियों से निकला राजनीति का धुंरधर योद्धा: लालकृष्ण आडवाणी  
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जयपुर की गलियों से निकला राजनीति का धुंरधर योद्धा: लालकृष्ण आडवाणी

Rajesh Singhal

News: भाजपा के वयोवृद्ध नेता लालकृष्ण आडवाणी को 96 साल की उम्र में भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बाद भाजपा के वे दूसरे नेता हैं, जिन्हें देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान दिया जाएगा।

अब तक 49 लोगों को भारत रत्न दिया जा चुका है। यह सम्मान पाने वाले आडवाणी 50वीं हस्ती हैं। पीएम नरेंद्र मोदी ने शनिवार को सोशल मीडिया पर यह जानकारी दी

पाकिस्तान के कराची में जन्म लेकिन 1947 बंटवारे में सरहद से सटे राजस्थान की राजधानी जयपुर आ गए। 21 साल की उम्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्यालय गोपाल जी का रास्ता से राजनीति का कखग सीखा और फिर कुछ दिन अलवर में नई अलख जगाई।

अटल-आडवाणी जोड़ी ने वो इतिहास लिखा, जिससे BJP का परचम लहरा पूरे देश में

सेंट पैट्रिक में पढ़ाई के कारण अंग्रेजी दुरूस्त थी तो संघ ने दिल्ली में राजनीति कर रहे अटल बिहारी वाजपेयी की सहायता के लिए भेज दिया गया।

यहीं से आडवाणी की राजनीतिक अंगड़ाई ने ऐसा स्वरूप धारण जिसने कांग्रेस के एकाधिकार को खत्म करने का काम किया। 90 के दशक में हिंदुत्व और राष्ट्रवाद को ऐसी हवा दी कि राजनीति की हवा बदल गई।

भारत की राजनीति में अटल-आडवाणी जोड़ी ने वो इतिहास लिखा जिससे भारतीय जनता पार्टी का परचम अब पूरे देश में लहरा रहा है।

भाजपा की इमारत जिन ईंटों पर बुलंद है उसकी नींव में एक पत्थर आडवाणी के भी नाम है। भारत जिस समय अपनी आजादी का अमृत काल मना रहा है ठीक उतना ही समय लालकृष्ण आडवाणी को राजनीतिक जीवन में हो चुका है।

पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी को तेवर की तासीर का नेता माना जाता रहा जो अपने कार्यकर्ताओं से कहता था कि मारक क्षमता जरूरी है 90 के दशक में सोमनाथ से अयोध्या की पहली रथयात्रा कि और फिर इसके बाद भाजपा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। भाजपा संपूर्ण प्रभुत्व के साथ मजबूती से खड़ी है।

सबसे अधिक समय तक भाजपा अध्यक्ष, कांग्रेस की आंधी में भी जीते

लालकृष्ण आडवाणी सबसे अधिक तीन बार भाजपा अध्यक्ष रहे। 2005 में हुई पाकिस्तान यात्रा में पाकिस्तान संस्थापक जिन्ना को धर्म निरपेक्ष बताए जाने पर संघ के दबाव में आडवाणी को भाजपा अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा।

आडवाणी चार बार राज्यसभा के और सात बार लोकसभा के सदस्य रहे। 1977 से 1979 तक पहली बार कैबिनेट मंत्री सूचना प्रसारण बने। 1999 में केन्द्रीय गृहमंत्री बने और फिर 29 जून 2002 को उप प्रधानमन्त्री पद का सौंपा गया।

 लोकसभा चुनाव 1985। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद बहुत तेज सहानुभूति की लहर चल रही थी। इस लहर में भाजपा के करीब सभी दिग्गज नेता चुनाव हार गए। इस चुनाव में भी आडवाणी ने जीत दर्ज की थी। 2009 में लोकसभा चुनाव आडवाणी के नेतृत्व में लड़ा गया लेकिन इसमें पार्टी को जीत नहीं मिली।

पहली बार कैबिनेट मंत्री सूचना प्रसारण बने

आडवाणी के राजनीतिक करियर की शुरुआत 1942 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के वालंटियर के तौर पर हुई थी।  आडवाणी 1970 से 1972 तक जनसंघ की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष रहे। 1973 से 1977 तक जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे।  

1970 से 1989 तक वे चार बार राज्यसभा के सदस्य रहे। इस बीच 1977 में वे जनता पार्टी के महासचिव भी रहे।  1977 से 1979 तक वे केंद्र में मोरारजी देसाई की अगुआई में बनी जनता पार्टी की सरकार में सूचना एवं प्रसारण मंत्री रहे। श् वे 1986-91 और 1993-98 और 2004-05 तक भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे।

1989 में वे 9वीं लोकसभा के लिए दिल्ली से सांसद चुने गए। 1989-91 तक वे लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे। 1991, 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 में वे गांधीनगर से लोकसभा सांसद चुने गए। 1998 से लेकर 2004 तक एनडीए सरकार में गृह मंत्री रहे।

वे अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में 2002 से 2005 तक उप प्रधानमंत्री भी रहे।  2015 में उन्हें देश के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हाथों उन्होंने यह सम्मान प्राप्त किया।

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