विश्व के सबसे पुरातन धर्म सनातन में चार धाम और सात नगरों को सबसे पवित्र माना गया है। यह चार धाम बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथपुरी और रामेश्वरम हैं।
वहीं सात नगरों की बात की जाए तो यह हैं- अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी, कांची, अवंति (उज्जैन की तत्कालीन मालवनी राजधानी) और द्वारावती (द्वारका नगरी)। इन धामों और नगरों का उल्लेख गरुड़पुराण के प्रेतखण्ड के 34वें और 56वें श्लोक में मिलता है।
स्कंदपुराण के काशीखंड में भी इन सभी सात नगरों का उल्लेख है। ये सात नगर और चारों धाम मोक्ष देने वाले कहे गए हैं।
इन सब नगरों में सबसे पवित्र द्वारका धाम है। द्वारका का जिक्र सातों नगरों और चारों धाम, दोनों में है। द्वारका नगरी का अपना काफी गौरवशाली और रोचक इतिहास है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार (25 फरवरी,2024) को धर्मनगरी द्वारका का दौरा किया । यहां PM मोदी ने भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना की और बेट द्वारका नगरी को मुख्य भूमि से जोड़ने वाले नवनिर्मित ‘सुदर्शन सेतु’ का लोकार्पण भी किया। इसके बाद PM मोदी ने समुद्र में डूबे प्राचीन द्वारका शहर के अवशेषों को देखा, इसके लिए PM मोदी समुद्र के अंदर गए।
इस अनुभव के बारे में बात करते हुए पीएम मोदी ने कहा, “जल के भीतर द्वारका शहर में प्रार्थना करना एक दिव्य अनुभव था।
मुझे यहां भक्ति और आध्यात्मिक वैभव के प्राचीन युग से जुड़ाव का अनुभव हुआ। भगवान श्रीकृष्ण सभी को आशीर्वाद दें।”
द्वारका एक प्राचीन और पवित्र शहर के रूप में जाना जाता है। द्वारका का इतिहास गौरवशाली और रोचक है।
ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाए तो द्वारका प्राचीन भारत का सबसे उन्नत एवं आधुनिक नगर था। सबसे बड़ा आश्चर्य ये है उस समय समुद्र के बीचों बीच द्वारका कैसे बसाई गई होगी। हाल ही में समुद्र में भेजे गए अभियानों में समुद्र में डूबी स्वर्ण नगरी द्वारका के अवशेष मिले हैं।
द्वारका नगरी का उल्लेख महाभारत के आसपास लिखे गए ग्रंथों में मिलता है। बताया जाता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने मामा और मथुरा के अत्याचारी राजा कंस का वध किया, तब कंस के ससुर और तत्कालीन मगध नरेश जरासंध ने श्रीकृष्ण से बदला लेने के लिए यादवों पर लगातार हमले चालू कर दिए।
ब्रजभूमि को लगातार होने वाले आक्रमणों से बचाने के लिए, भगवान श्रीकृष्ण ने एक नए स्थान पर बसने का निर्णय किया।
इसके लिए उन्होंने सुराष्ट्र (आधुनिक सौराष्ट्र) में कुशस्थली इलाके को चुना। कुशस्थली आने से पहले भगवान श्रीकृष्ण ने कुशादित्य, कर्णादित्य, सर्वादित्य और गृहादित्य नामक कई राक्षसों से युद्ध करके उनका विनाश कर दिया था और समुद्र तट पर द्वारका का निर्माण किया था।
श्रीमद्भागवत के अनुसार, द्वारका का निर्माण करने से पहले, भगवान श्रीकृष्ण ने समुद्र से भूमि देने और पानी को दूसरी जगह स्थानांतरित करने की विनती की।
वरुण देव ने भगवान श्रीकृष्ण की कोमलता को पहचाना और समुद्र के ठीक बीच में एक बड़ा क्षेत्र दिया। इसके बाद विश्वकर्माजी ने द्वारका नगरी का निर्माण किया।
भगवान कृष्ण ने द्वारका नगरी की स्थापना की और इसे समृद्धि का मुख्य केंद्र बनाया। भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की कई महत्वपूर्ण घटनाएं द्वारका नगरी में ही घटित हुईं, जैसे रुक्मणिहरण और विवाह, जाम्बवती, रोहिणी, सत्यभामा, कालिंदी, मिगविंदा, सत्या, नग्नजीति, सुशीलमाद्रि, लक्ष्मण, दत्त सुशल्या आदि।
इसके अलावा अनिरुद्ध का विवाह, महाभारत युद्ध प्रबंधन भी यहीं से सम्बंधित है। इसके अलावा चीरहरण से द्रौपदी की रक्षा और शिशुपाल वध की गवाह द्वारका है।
भगवान श्रीकृष्ण के समय में द्वारका की भौतिक समृद्धि सफलता के उच्चतम स्तर तक पहुंच चुकी थी। द्वारका प्राचीन भारत का सबसे उन्नत शहर बन गया था।
विदेशी व्यापार से लेकर विज्ञान तक क्षेत्रों में प्राचीन द्वारका सबसे अग्रणी थी। भगवान कृष्ण के नेतृत्व में यदुवंश भी समृद्ध हो रहा था।
प्राचीन भारत उस समय की बाक़ी दुनिया से कहीं आगे था और उसमें भी द्वारका शहरी उन्नति के सभी शिखरों को छू रही थी।
इसका उदाहरण समुद्र के बीचों बीच एक पूरा साम्राज्य खड़ा करना है और वो भी बिना आधुनिक मशीनरी के। यहां विशाल महल और मकान थे। उत्कृष्ट सड़क व्यवस्था थी और प्रकाश की भी व्यवस्था थी।
तब भगवान श्रीकृष्ण के पास प्राचीन विश्व की सबसे शक्तिशाली सेना थी। इसे नारायणी सेना के नाम से जाना जाता था। इस सेना के समक्ष बड़ी बड़ी सेनाएं बिना लड़ें ही हार मान लेती ।
हालाँकि, समय के साथ परिस्थितियां बदलने लगीं और भौतिक सुविधाओं में सुधार के कारण यदु वंश भोग-विलास में लिप्त होने लगा।
द्वारका में एक साथ अनेक त्रासदियां घटित होने लगीं।इसी दौरान, यादवों ने पिंडतारण क्षेत्र में रहने वाले ऋषियों के लिए बाधाएं खड़ी की।
हालांकि , ऋषियों ने यादवों को माफ कर दिया। यादवों ने उन ऋषियों की धार्मिक कार्यकलापों में बाधा डालना शुरू कर दिया। अंततः ऋषियों ने यादवों को श्राप दे दिया। यह यदुवंश को मिला पहला श्राप था।
कई इतिहासकारों के अनुसार वाराणसी भी द्वारका सभ्यता का हिस्सा था। वाराणसी को विश्व के सबसे प्राचीन शहर के रूप में जाना जाता है।
विशेष बात यह है कि सिंधु घाटी सभ्यता के शहर जैसे कि मोहन-जो-दाड़ो, लोथल, हड़प्पा, धोलावीरा आदि विकसित और सुनियोजित शहर माने जाते थे।
जिसमें मोहनजो-दाडो को सबसे अधिक विकसित शहर माना जाता था। उनकी नगर रचना बहुत अच्छी थी।