महाराष्ट्र (Maharashtra) में सियासी संकट चरम पर है। एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) अपने साथ करीब चार दर्जन विधायकों को उठा लाये हैं और अपने "श्रीचरण" लेकर असम (Assam) में जाकर टिक गए हैं। वहां पर बैठकर महाराष्ट्र ((Maharashtra) की सरकार को गिराने की बाते कर रहे है। कमाल की बात है ढाई साल पहले सब खुश थे, कम से कम इतने नाराज तो नहीं की असम (Assam) में जाकर तमाशा करें।
कमाल कि बात ये है कि ये चार दर्जन विधायक बाढ़ से जूझ रहे असम (Assam) की बात तक नहीं कर रहे। न ही इसपर बात करने को वहां के मुख्यमंत्री इच्छुक हैं। बल्कि वे भी सबको यहाँ पर 'घूमने' आने का न्योता दे रहे हैं। मीडिया में भी सुबह से शाम तक महाराष्ट्र (Maharashtra) सियासी संकट लाइव चलता है, लेकिन इतनी हिम्मत किसी की नहीं एक घंटा तो असम (Assam) को भी दे दे या फिर जाकर उन विधायकों से ही पूछ ले की भाईसाहब यहाँ पर बैठकर कुर्सियां तोड़ने से बेहतर होगा की आप जनता की थोड़ी मदद ही कर ले, आख़िरकार यहाँ पर आप "सेफ" है इसीलिए तो महाराष्ट्र (Maharashtra) से भागकर आये है। थोड़ी सी सुरक्षा जनता को भी मुहैया करवा दे तो मेहेरबानी होगी।
असम (Assam) के कई जिलों में बाढ़ की वजह से हाहाकार मचा हुआ है। मरने वालो की संख्या सैकड़ा पूरा कर चुकी है जबकि इस बाढ़ से करीब 30 जिलों के 35 लाख लोग प्रभावित हुए है। राज्यभर में कुल जिले 35 है। यानी की पूरा असम (Assam) पानी में डूबा है और सियासत जिसे शर्म से डूब जाना चाहिए था वो अब भी किनारे पर है।
इस बाढ़ के चलते 173 सड़कों और 20 पुलों को नुकसान हुआ है, इसके अलावा बक्सा (Baksa) और दरांग (Darang) जिलों में भी दो तटबंध टूट गए हैं और तीन क्षतिग्रस्त हो गए हैं। बाढ़ की इस दूसरी लहर से 100869.7 हेक्टेयर फसल क्षेत्र और 33,77,518 जानवर प्रभावित हुए हैं जबकि 84 जानवर बह गए। PM और CM इस मामले पर भी नजर बनाये हुए है और महाराष्ट्र (Maharashtra) के सियासी घटनाक्रम पर भी नजर बनाये हुए है।राहत कार्य भी लगातार जारी है। लेकिन ऐसे समय में जब असम (Assam) को मदद की जरुरत है ऐसे में इन बागियों के जमावड़े को बिठाने की जरुरत कहाँ थी ये बात सोचने योग्य है, न सिर्फ हमारे लिए बल्कि वहां की सरकार के लिए भी।
राजनीति में नेताओ के लिए काम करना या यूँ कहें कि जनहित के काम करना कितना दुष्कर होता है उसे इसी बात से समझा सकता है कि पद सबको चाहिए लेकिन काम करने में सबको ज़ोर आता है। महाराष्ट्र (Maharashtra) को ही लें, मुंबई (Mumbai) , पुणे (Pune) , नासिक (Nasik) से आगे बढ़कर जब सूखे प्रभावित क्षेत्रो को देखेंगे तो पाएंगे की पता नहीं कब से ही आमजन को विदर्भ (Vidarbh) जैसे शहरो में नहर बनाने की बात करके चूना लगाया जा रहा है। यदि शिंदे (Eknath Shinde) को इतनी ही परेशानी थी तो भी कम से कम पांच साल की सरकार तो पूरी हो जाने देते, यूँ टाइम पास करके आमजन के साथ छलावा नहीं करना चाहिए था।
इस बात में कोई दो राय नहीं है की बीते कुछ सालो से BJP ने ये ट्रेंड बना रखा है की अगर उसे जीत नहीं मिली तो भी वो जीत दर्ज करके रहेगी। चाहे इसके लिए उसे इधर उधर के हथकंडे ही क्यों न अपनाने पड़े। बिहार (Bihar) में तो JDU से पार्टी के रिश्ते बहुत ही बुरी स्थिति के साथ खत्म हुए थे लेकिन जब सत्ता नहीं मिली तो फिर से सरकार बनाने का काम शुरू कर लिया।
मध्यप्रदेश (Madhyapradesh) ,कर्नाटक (Karnataka) और मणिपुर (Manipur) जैसे राज्य के वोटर भी BJP को वोट नहीं देने का परिणाम भुगत चुके है। जनता ने पार्टी को चुनने से मना कर दिया तो पार्टी ने जीती हुई पार्टी के विधायकों को चुन लिया। सन्देश साफ़ है जनसेवा भाड़ में जाए सत्ता सबकुछ है। और इसीलिए अब 5 साल में जो थोड़े बहुत काम भी पार्टिया करती थी वो भी अब नहीं हो पा रहे क्यूंकि अब वे दिन रात सरकार बचाने की जुगत में रहती है और विधायक आए दिन बाड़ेबंदी में जाकर बैठ जाते है।
इस पूरे घटनाक्रम को देखकर पहली नजर में मन में बहुत रोमांच जग जाता है लेकिन जब इस पर गौर करते है तो मालूम चलता है की ये देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था जो की दुनिया की सबसे खूबसूरत व्यवस्था है उसपर करारी चोट पहुंचाता है। खैर, राजनीति तमाशा है और तमाशे के लिए तो एक ही चीज़ कही जा सकती है The Show Must Go On।