चारा घोटाले को लेकर सबसे बड़े घोटाले यानि 139.35 करोड़ रुपए अवैध निकासी के मामले में CBI स्पेशल कोर्ट का फैसला आखिरकार मंगलवार को आ गया। CBI स्पेशल कोर्ट ने लालू यादव समेत 75 आरोपियों को दोषी करार दिया है। स्पेशल जज एसके शशि ने मामले में छह महिलाओं सहित 24 आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया। वहीं दोषी करार दिए जाने के बाद सजा पर बिंदुवार बहस चली। कोर्ट ने 34 आरोपियों को तीन-तीन साल की सजा सुनाई है। लालू प्रसाद यादव सहित 41 आरोपियों की सजा पर फैसला 21 फरवरी को आना है। गौरतलब है कि करोड़ों रुपयों के चारा घोटाले से जुड़े पांच में से चार मामलों में लालू यादव को पहले ही दोषी घोषित किया जा चुका है।
कोर्ट का फैसला आते ही बाहर मौजूद राजद नेताओं और कार्यकर्ता गमगीन हो गए। कई नेता और कार्यकर्ताओं की रुलाइ फूट पड़ी। सुनवाई और फैसला सुनाए जाते समय लालू यादव की बेटी और सांसद मीसा भारती उनके साथ मौजूद रहीं। लालू के साथ इस केस के 98 अन्य आरोपियों पर आज फैसला आया है। सीबीआई कोर्ट में जज एसके शशि के फैसले को सुनने के लिए लालू यादव उनके ठीक सीधे बैठे हुए थे। कोर्ट की कार्यवाही शुरू हुई। सबसे पहले एक-एक कर सभी अभियुक्तों की हाजिरी लगाई गई। कोर्ट ने इन सभी को फैसले के वक्त मौजूद रहने को कहा था। इनमें से ज्यादातर आरोपी 75 की उम्र पार कर चुके हैं।
जानिए, डोरंडा ट्रेजरी घोटाला क्या है?
डोरंडा ट्रेजरी से 139.35 करोड़ रुपए की गैर कानूनी निकासी के इस मामले में पशुओं को फर्जी तौर से स्कूटर पर ढोने की स्टोरी है। यह उस समय का देश का पहला मामला माना गया था जब बाइक और स्कूटर पर जानवारों को ढोया गया। यह पूरा मामला 1990-92 के बीच का था। CBI ने जांच में पाया कि अफसरों और नेताओं ने मिलकर फर्जीवाड़े का अनोखा खेल तैयार किया। 400 सांड़ को हरियाणा और दिल्ली से कथित तौर पर स्कूटर और मोटरसाइकिल पर रांची तक ढोकर लाया गया, ताकि बिहार में अच्छी नस्ल की गाय और भैंसें पैदा की जा सकें। पशुपालन विभाग ने 1990-92 के समय 2,35, 250 रुपए में 50 सांड़, 14, 04,825 रुपए में 163 सांड़ और 65 बछिया खरीदीं।
यही नहीं, विभाग ने इस दौरान क्रॉस ब्रीड बछिया और भैंस की खरीद पर 84,93,900 रुपए का भुगतान मुर्रा लाइव स्टॉक दिल्ली के दिवंगत प्रोपराइटर विजय मल्लिक को किया था। इसके अलावा भेड़ और बकरी की खरीद पर भी 27,48,000 रुपए खर्च किए गए थे।
बहुचर्चित चारा घोटाला में झारखंड के डोरंडा कोषागार से 139.35 करोड़ रुपए की अवैध निकासी को लेकर आज आने वाले फैसले को सुनने के लिए लालू यादव रविवार को ही पटना से रांची आ गए थे। रांची पहुंचने पर कार्यकर्ताओं ने एयरपोर्ट पर उनका जोरदार स्वागत किया। लालू को अब तक करोड़ों रुपयों के चारा घोटाले से जुड़े पांच में से चार मामलों में दोषी ठहराया जा चुका था। पांचवें मामले में आज फैसला आया। लालू को चारा घोटाले के चार मामलों-देवगढ़, चाईबासा, रांची के डोरंडा कोषागार और दुमका मामले में जमानत मिल गई थी।
यूं हुआ था चारा घोटाला
लालू प्रसाद यादव ने सीएम रहते हुए 1990 से 95 के मध्य बिहार के सरकारी खजाने के पशु चारा के नाम पर 950 करोड़ रुपए को गैर कानूनी रूप से निकाले। इसका खुलासा 1996 में हुआ और जांच बढ़ने के बाद लालू प्रसाद पर आंच आई। झारखंड में चारा घोटाले के पांच मामलों में लालू प्रसाद यादव अभियुक्त बनाए गए। इनमें से अब तक चार मामलों में कोर्ट का फैसला आ चुका है। इन सभी मामलों में अदालत ने उन्हें दोषी करार देते हुए सजा सुनाई है। चारा घोटाले के सबसे बड़े और पांचवें मामले में आज फैसला आया है। यह केस रांची के डोरंडा कोषागार से 139 करोड़ रुपये की अवैध निकासी से जुड़ा था। इस मामले में शुरूआत में कुल 170 लोग आरोपी थे जिनमें से 55 आरोपियों की अबतक मृत्यु हो चुकी है। जबकि सात आरोपी इस स्कैम के सरकारी गवाह बन गए। इस कांड के 6 आरोपी अभी भी कानून की पकड़ से बाहर हैं। आज मामले के 99 आरोपियों पर सीबीआई कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया गया।
परिवार और समर्थकों को थी राहत की उम्मीद
लालू यादव का परिवार और सपोर्टर्स उम्मीद जता रहे थे कि सीबीआई कोर्ट का फैसला उनके पक्ष में आएगा। समर्थकों का कहना था कि लालू यादव की बड़ी उम्र और पूरे केस के दौरान सामने आए तथ्यों के आधार पर कोर्ट उन्हें राहत दे सकती है। लालू के वकीलों की दलील दी थी कि लालू बीमार हैं। इसके अलावा उन्होंने कभी भी न्यायालय के आदेशों या कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन नहीं किया है। ऐसे में उम्र, स्वास्थ्य और अन्य पहलुओं को ध्यान में रखते हुए कोर्ट लालू यादव को राहत देगी।
मीसा लगातार साथ रहीं
रविवार को ही लालू प्रसाद कोर्ट का फैसला सूनने के लिए रांची चले गए थे। वह स्टेट के गेस्ट हाउस में ठहरे थे, यहां पर मंगलवार की सुबह से ही राजद के तमाम वरिष्ठ नेताओं का जमावड़ा लगा था। लालू प्रसाद की बेटी सांसद मीसा भारती भी वहीं उनसे मिलने पहुंचीं थीं जो फैसला सुनाए जाने के समय लगातार उनके साथ खड़ी रहीं।