कर्नाटक में जारी हिजाब विवाद को लेकर हाईकोर्ट में लगातार तीसरे दिन मामले की सुनवाई हुई. हाईकोर्ट ने मामले में फैसला आने तक स्कूल-कॉलेज में धार्मिक कपड़े पहनने पर रोक लगा दी है. कोर्ट का कहना है हम जल्द से जल्द इस मामले पर फैसला सुनाएंगे, लेकिन शांति कायम करना जरूरी है. इस मामले पर अब सुनावाई सोमवार को होगी.
साथ ही इस मामले पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि हम देखेंगे कि हिजाब पहनना मौलिक अधिकार है या नहीं.
मीड़िया को निर्देश दिया है कि वह अदालत की मौखिक कार्यवाही की रिपोर्टिंग न करे, बल्कि अंति निर्णय आने तक इंतजार करे. आपको बता दे इस मामले को बुधवार को हाईकोर्ट की बड़ी बेंच को रेफर किया गया था. फिलहाल इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रितु राज अवस्थी, जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित और जस्टिस जेएम खाजी की पीठ कर रही है.
हाल ही में कुछ दिन पहले कर्नाटक के उडूपी के सरकारी कॉलेज की छात्राओं को हिजाब पहनकर क्लास में जाने से रोका गया तो उन्होंने इसका विरोध किया. जनवरी 2022 में शुरू हुए उनके विरोध को लोगों का समर्थन मिलता गया. स्थानीय प्रशासन, कॉलेज प्रशासन और छात्राओं के परिजनों ने एक साथ मिलकर समाधान निकालने की कोशिश की, लेकिन समाधान नहीं निक सका. जिसके बाद छात्राएं हिजाब पहनने के अधिकार को लेकर हाई कोर्ट पहुंच गई हैं जहां अब फुल बेंच इसकी सुनवाई कर रही है.
इसी बीच कुछ हिंदूवादी समूहों ने हिंदू छात्रों के भगवा शॉल और गमछा पहनकर आने पर ज़ोर दिया. कर्नाटक में छात्र दो वर्गो में बंट गए हैं. एक हिजाब का समर्थन कर रहे हैं और दूसरे उसका विरोध.
अब मामले पर राजनीति तेज हो गई है और देश के कई हिस्सों से भी हिजाब को लेकर विवाद की रिपोर्ट सामने आई हैं. आज हम बात करेंगे इस मुद्दे पर की देश का संविधान इस मामले पर क्या कहता हैं.
विशेषज्ञों के अनुसार हिजाब को लेकर विवाद धर्म से अधिक व्यक्तिगत अधिकार का विषय है. देश का संविधान भारतीय नागरिकों को कुछ व्यक्तिगत अधिकार देता है. इनमें निजता,धर्म, जीवन,बराबरी का अधिकार शामिल है. बराबरी के अधिकार को समझाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसमें मनमानी के खिलाफ भी अधिकार जुड़ा है. किसी भी तरह का मनमाना कानून भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत भारत की जनता के समानता के अधिकारो का उल्लंघन है.
ये तो बात हुई देश का संविधान भारत की जनता को क्या-क्या अधिकार देता है. लेकिन कुछ सवाल है जो इस पर उठते है.
सवाल - कि क्या देश के शिक्षण संस्थान ड्रेस कोड या विद्यार्थीयों की यूनीफ़ॉर्म को निर्धारित कर सकते है.
जवाब - हा. संस्थान ड्रेस कोड निर्धारित कर सकते हैं परंतु वे इस निर्धारित करने में वो जनता के किसी मौलिक अधिकार का हनन नहीं कर सकते.
सवाल - कोई शिक्षण संस्थान स्कूल ड्रेस को लेकर नियम बनाकर छात्रों को उनका पालन करने के लिए बाध्य कर सकते है?
जवाब - "एजुकेशन एक्ट के तहत स्कूल को विद्यार्थी की ड्रेस निर्धारित करने का अधिकार नहीं है. अगर कोई संस्थान नियम बनाता भी है तो वो नियम क़ानून के दायरे के बाहर नहीं हो सकते हैं."
सवाल – यहां सवाल संविधान से मिले धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का भी है.
जवाब – विशेषज्ञ कहते है कि "धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार की सीमा कुछ इस तरह है कि जनहित में, नैतिकता में और स्वास्थ्य के आधार पर उसे सीमित किया जा सकता है."
सवाल – क्या हिजाब पहनने से ऐसे हि किसी धर्म का उल्ल्धन हो सकता है?
जवाब - विशेषज्ञ कहते है कि "ये ज़ाहिर है कि किसी का हिजाब पहनना कोई गलत और अनैतिक काम नहीं है, ना ही ये किसी जनता के खिलाफ़ है और ना ही ये किसी और मौलिक अधिकार का उल्लंघन है."
इस समय न्यायाधीशों के सामने एक चुनौती औऱ अहम मुद्दा होगा कि एक तरफ संस्थान की स्वतंत्रता है तो दूसरी और निजी स्वतंत्रता. ऐसे में कोर्ट के समानता पूर्ण निर्णय लेना सरल नहीं होगा. विशेषज्ञों का कहना है कि कोर्ट कह सकती है की हम पूरा हिजाब जिसमें आप अपना चेहरा भी ढंक लें, उसकी परमिशन नहीं देंगे, लेकिन शायद सर ढंकना या स्कार्फ़ पहनने की अनुमति दे दें." फिलहाल निर्णय कोर्ट में विचाराधीन है.
हिजाब के विवाद की बात करें तो इससे पहले ये इस पर कई और विवाद भी हो चुके है और चर्चा कोर्ट में हो चुकी है. केरल में क्राइस्ट नगर सीनियस सेकेंड्री स्कूल की छात्राएं को हिजाब पहनकर स्कूल में नहीं जाने दिया गया. इसके खिलाफ भी वे को गई.
फिर 2018 में दिए अपने फैसले में केरल हाई कोर्ट के जज जस्टिस ए.मोहम्मद मुश्ताक़ ने निर्देश दिए गए थे कि छात्राओं को अपनी मर्ज़ी के अनुसार ड्रेस पहनना ऐसा ही एक मूल अधिकार है जैसे कि किसी स्कूल का ये तय करना कि सभी छात्र उसकी तय की हुई यूनीफ़ॉर्म में स्कूल पहुंचे.
एक वेबसाइट डेकन हेरल्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार केरल हाई कोर्ट द्वारा लिए निर्णय की चर्चा कर्नाटक हिजाब विवाद के दौरान भी ख़ूब हो रही है. उस समय फ़ातिमा तसनीम और हफ़ज़ा परवीन ने कोर्ट में कहा था कि उन्हें पूरी बांह की शर्ट और नक़ाब पहनकर स्कूल नहीं आने दिया जा रहा है. इस पर स्कूल ने उन पर लगे आरोपो को खारिज कर दिया और कहा यह स्कूल के ड्रेस कोड के खिलाफ है.
फिर जस्टिस मुश्ताक़ ने इस पर निर्णय देते हुए कहा था, "यदी इस मामले में हम स्कूल प्रबंधन पर कार्यवाही करते है तो ये उनके मौलिक अधिकारो का हनन होगा. संवैधानिक अधिकार का उद्देश्य दूसरों के अधिकारों का हनन करके एक अधिकार की रक्षा करना नहीं है.
संविधान, वास्तव में, बिना किसी संघर्ष या प्राथमिकता के अपनी योजना के अंदर बहुत सारे हितों को रखने का इरादा रखता है. हालांकि जब हितों की बात होती है तो व्यक्तिगत हितों के ऊपर व्यापक हितों का ध्यान रखा जाना चाहिए. यही स्वाधीनता का सार है."
जस्टिस मुश्ताक़ ने कहा था, "प्रतिस्पर्धी अधिकारों में संघर्ष का समाधान किसी व्यक्तिगत अधिकार का हनन करके नहीं बल्कि व्यापक अधिकार को बरक़रार रख कर, संस्थान और छात्रों के बीच इस संबंध को बनाए रखकर किया जा सकता है."
हाई कोर्ट के दिए उस निर्णय को 100 से अधिक शिक्षण संस्थान चलाने वाली संस्था मुस्लिम एजुकेशन सोसायटी (MES) ने तुरंत लागू किया था. सोसायटी ने अपने प्रॉस्पेक्टस में नक़ाब पर पाबंदी लगाई थी.
लेकिन ये भी बात सही है की केरल हाईकोर्ट का निर्णय कर्नाटक हाईकोर्ट पर बाध्य नहीं है.
कर्नाटक के उडूपी से शुरू हुआ हिजाब विवाद देशभर में फैल गया है. इसे लेकर दिल्ली के शाहीन बाग़ इलाक़े में बुधवार को हिजाब के समर्थन में विरोध हुआ. देश में अगर हिजाब पर विवाद बढ़ता है तो ये बहुत दुख की बात होगी. क्योंकी बच्चों का काम पढ़ाई करना है, राजनीति करना नहीं, हिजाब का समर्थन करने वाले और विरोध करने वाले दोनो समूहों का काम केवल पढ़ाई करना है.
कुछ दिन पहले कर्नाटक के मंड्या का भी एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें हिजाब पहनने पर एक मुसलमान छात्रा के ख़िलाफ़ हिंदूवादी छात्र भगवा गमछा पहन नारेबाजी करते हुए दिखाई दिए. वहीं छात्रा भी अल्लाहु अकबर कहकर उन्हें जवाब दे रही है.
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