रेडियो के महत्व को रेखांकित करने के उद्देश्य से हर साल 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस मनाया जाता है। इंटरनेट और संचार के अन्य माध्यमों तक आसान पहुंच के साथ तकनीकी रूप से उन्नत दुनिया के इस युग में, रेडियो की विशिष्ट भूमिका को आसानी से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
अभी भी बहुत से लोग हैं जो न केवल रेडियो पर भरोसा करते है बल्कि समाचारों के उपभोग और मनोरंजन के लिए भी उस पर विश्वास करते है। भारत में जनता तक पहुँचने के लिए रेडियो एक प्रमुख मंच बनने में कामयाब रहा है।
संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के सदस्यों ने पहली बार 2011 में इस दिन की घोषणा की थी। हालाँकि बाद में इसे 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में अपनाया गया था। तब से 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है।
इस दिन को शुरू करने के पीछे मुख्य उद्देश्य विभिन्न पृष्ठभूमि, संस्कृतियों और अनुभवों के लोगों को अपनी चिंताओं को उठाने और अपनी राय व्यक्त करने की अनुमति देना था।
इस बार विश्व रेडियो दिवस का विषय "रेडियो और विश्वास" रखा है। विश्व रेडियो दिवस 2022 के अवसर पर, यूनेस्को ने दुनिया भर के रेडियो स्टेशनों को इस कार्यक्रम के 11वें संस्करण के साथ-साथ रेडियो की एक सदी से भी अधिक की स्मृति में आमंत्रित किया है।
विश्व रेडियो दिवस 2022 के तीन मुख्य उप-विषय रखे गये है -
1) रेडियो पत्रकारिता में विश्वास: पत्रकारिता को सही, अच्छी तरह से शोधित और सत्यापित जानकारी देने के लिए होना चाहिए। रेडियो पत्रकारिता उद्योग में लोगों को उच्च गुणवत्ता वाली जानकारी का उत्पादन करने में सक्षम होना चाहिए।
2) विश्वास और पहुंच: इस उप-विषय का उद्देश्य समाज के विभिन्न वर्गों के लिए सूचना या समाचार की पहुंच की आवश्यकता को ध्यान में रखना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को रेडियो का उपयोग करने में सक्षम होना चाहिए।
3) रेडियो स्टेशनों का विश्वास और व्यवहार्यता: रेडियो स्टेशनों को प्रतिस्पर्धा के रूप में लेना सुनिश्चित करना चाहिए और व्यापक दर्शकों को जोड़ने में सक्षम होना चाहिए।
रेडियो का अविष्कार प्रसिद्ध वैज्ञानिक मारकोनी (Guglielmo Morconi) ने किया था इन्होंने दुनिया का पहला रेडियो संदेश इंग्लैंड से अमेरिका भेजा था। वहीं कैनेडा के वैज्ञानिक रेगिनाल्ड फेसेंडन ने 24 दिसंबर 1906 को रेडियो ब्रॉडकास्टिंग के द्धारा संदेश भेजकर रेडियो की शुरुआत की थी।
रेगिनाल्ड फेसेंडेन ने वायलिन बजाकर उसकी धुन को रेडियो तरंगो के माध्यम से अटलांटा महासागर में तैर रहे जहाजों तक पहुंचाया था। इसी के बाद रेडियो का इस्तेमाल संचार के माध्यम के तौर पर मैसेज पहुंचाने के मकसद से नौ सेना में होने लगा। हालांकि, बाद में पहले विश्वयुद्ध के दौरान ( 1914 से 1918 ) गैर सेनाओं द्धारा रेडियो के इस्तेमाल को अवैध कर दिया गया था।
आपको बता दें कि न्यूयॉर्क में ली द फॉरेस्ट के द्धारा साल 1918 में दुनिया के पहले रेडियो स्टेशन की शुरुआत की गई थी लेकिन बाद में पुलिस ने इसे गैर कानूनी करार देकर बंद करवा दिया था।
इसके बाद नवंबर 1920 में नौ सेना के रेडियो विभाग में काम कर चुके फ्रैंक कोनार्ड को कानूनी तौर पर दुनिया में पहली बार रेडियो स्टेशन की शुरुआत करने की इजाजत दे दी गई और इस तरह रेडियो पर लगी रोक को हटा लिया गया।
कानूनी तौर पर इसकी शुरुआत होने के बाद साल 1923 में दुनिया में रेडियो पर विज्ञापन की शुरुआत हुई। रेडियो के बारे में यह तथ्य जानकर शायद आपको हैरानी हो लेकिन शुरुआत में रेडियो को रखने के लिए 10 रुपए में लाइसेंस खरीदना पड़ता था। हालांकि बाद में लाइसेंस रद्द कर दिए गए थे। और बाद में रेडियो संचार का एक बहुत बड़ा और सशक्त माध्यम बनता चला गया।
भारत में साल 1924 में सबसे पहले मद्रास प्रेसीडेंसी क्लब रेडियो को लेकर आया था। इस क्लब ने साल 1927 तक रेडियो ब्रॉडकास्टिंग पर प्रसारण का काम किया था हालांकि बाद में आर्थिक परेशानियों के चलते मद्रास क्लब द्धारा इसे बंद कर दिया गया था। इसके बाद इसी साल 1927 में बॉम्बे के कुछ बड़े बिजनेसमैन ने भारतीय प्रसारण कंपनी को बॉम्बे और कलकत्ता में शुरु किया।
इसके बाद साल 1932 में भारत सरकार ने इसकी जिम्मेदारी ले ली और इंडियन ब्रॉडकास्टिंग सर्विस नाम का विभाग शुरु किया जिसका साल 1936 में नाम बदलकर ऑल इंडिया रेडियो रख दिया गया था। साल 1957 में ऑल इंडिया रेडियो को ‘आकाशवाणी’कर दिया गया था।
भारत में सरकार द्धारा बनाई गई रेडियो प्रसारण एक राष्ट्रीय सेवा थी, जिसके बाद पूरे देश में इसके प्रसारण के लिए स्टेशन बनाए गए थे और देश के कोने-कोने तक इसकी पहुंच बनाई गई थी।
यही नहीं रेडियो ने भारत की आजादी में अपनी अहम भूमिका निभाई थी। आपको बता दें कि साल 1942 में नेशनल कांग्रेस रेडियो का प्रसारण जब शुरु किया गया था तब स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले महात्मा गांधी जी ने इसी रेडियो स्टेशन से “अंग्रेजो भारत छोड़ों” का प्रसारण किया था।
यही नहीं नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान “तुम मुझे खून दो, ‘मै तुम्हें आजादी दूंगा” का लोकप्रिय नारा रेडियो के द्धारा जर्मनी में प्रसारित किया गया था।
दशकों के बाद भी, रेडियो सबसे पुराने, सबसे लोकप्रिय और सबसे व्यापक रूप से उपभोग किए जाने वाले समाचार माध्यमों में से एक बना हुआ है और रेडियो मीडिया का एक सशक्त माध्यम है। यह प्राकृतिक आपदाओं के समय सूचना देने में भी अहम भूमिका निभाता है। अब भी रेडियो लोगों की जिंदगी का एक अहम हिस्सा बना हुआ है।
वहीं अब रेडियो FM का रुप ले चुका है और इसमें कई आधुनिक सेवाएं भी चालू की गई है। इसलिए यह अभी भी लोगों की जिंदगी का हिस्सा बना हुआ है और एक बड़े संचार के नेटवर्क के रुप में पूरी दूनिया पर फैला हुआ है।
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