करहल सीट इस समय हॉट सीट बन चुकी है. साइकिल पर सवार अखिलेश कमल की संख्या को रोकने की कोशिश में है. जब सोमवार को अखिलेश यादव करहल से अपना नामांकन दाख़िल करने पहुँचे तो एक बार तो उन्हे लग रहा था कि उनका मुकाबला इस बार भाजपा के संजीव यादव से होने वाला है. लेकिन इससे कुछ देर बाद केंद्रीय क़ानून राज्य मंत्री प्रोफ़ेसर एसपी सिंह बघेल वहां पहुँचे और शांति से करहल विधानसभा सीट से अपना नामांकन दाखिल किया.
करहल विधानसभा सीट से पर्चा दाख़िल करने के बाद एसपी सिंह बघेल का ट्वीट"लोकतंत्र में जो अपने क्षेत्र को पुश्तैनी कहता है वो लोकतंत्र का अपमान करता है."
करहल मैनपुरी लोकसभा सीट में आती है जहाँ से मुलायम सिंह यादव मौजूदा सांसद है. इसी सीट से मुलायम सिंह ने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की थी और वहां बतौर शिक्षक नौकरी की.
अपनी उम्मीदवारी को लेकर एसपी सिंह ने एक चैनल के कहा, "मुझे चुनौती देने की पूरी उम्मीद है. कल से तूफ़ान मच गया है यहाँ पर. करहल विधानसभा रोचक स्थिति में है. जनता का मनोबल बढ़ गया है."
एसपी सिंह बघेल का कहना है की"जनता के दिमाग़ ये बात आ गई है कि भाजपा ने जिस प्रत्याशी मैदान में को उतारा है वो सैफ़ई परिवार के सामने न झुका है न झुकेगा. जबसे छोड़ आए हैं तबसे तीन चुनाव लड़ चुके हैं. लोकसभा से आगरा में एमपी हूँ, केंद्रीय मंत्री हूँ. उसके पहले उत्तर प्रदेश में भाजपा से कैबिनेट मंत्री रहा हूँ और उसके पहले राज्य सभा सांसद भी रहा हूँ."
चुनाव में अपनी दावेदारी को मजबूत बताते हुए वे कहते हैं, करहल कि जनता यही चाहती है कि जो झुके नहीं, दबे नहीं, डरे नहीं, जो सामना करे उनकी गुंडागर्दी का उनके जातीकरण का, उसे जीताना हैं."
जब 1989 में मुलायम सिंह यादव पहली बार मुख्यमंत्री बने तो एसपी सिंह बघेल उनके सुरक्षाकर्मी बने.
अगर एसपी सिंह बघेल के राजनीतिक सफर की बात करें तो एसपी सिंह उत्तर प्रदेश के औरैया ज़िले के भाटपुरा गांव में 1960 में पैदा हुए. उन्होने मिलिट्री साइंसेज़ में एमएससी और इतिहास में M.A और PHD की भी हैं. बघेल आगरा कॉलेज में सैन्य शास्त्र के एसोसिएट प्रोफ़ेसर भी हैं.
कहा जाता है जब एसपी सिंह बघेल पुलिस में इस्पेक्टर थे. उस समय जब 1989 में मुलायम सिंह यादव पहली बार मुख्यमंत्री बने तो एसपी सिंह बघेल उनके सुरक्षाकर्मी बने. उसके बाद बाद में एसपी सिंह बघेल को मुलायम सिंह यूथ ब्रिगेड का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया."
सीनियर पत्रकार विनोद भारद्वाज के अनुसार मुलायम सिंह ने अपने शासनकाल में उन्हें आगरा कॉलेज में सैन्य विज्ञान का प्रोफ़ेसर बनवा दिया था और फिर बाद में उन्हे चुनाव लड़ाया.
साल 1998, 1999 और 2004 में बघेल जलेसर सीट से सपा से लोकसभा सांसद रहे. फिर 2010 में वो सपा छोड़ बसपा में शामिल हुए और मायावती ने उन्हें राज्य सभा का सांसद बनवाया. बसपा के बाद उन्होंने कमल का दामन थामा और 2015 में उन्हे भाजपा के ओबीसी मोर्चा का अध्यक्ष बनाया गया. 2017 में फ़िरोज़ाबाद की टूंडला आरक्षित सीट से उन्हे विधायक का चुनाव लड़ा और विधायक चुने गए और योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री बने.
फिर लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा ने उन्हें आगरा की आरक्षित सीट से चुनाव लड़वाया और वे फिर वे चौथी बार सांसद बने और फिर 2021 के केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार में उन्हें केंद्रीय विधि और न्याय राज्य मंत्री बनाया गया.
मुलायम सिंह से अपने रिश्तों को लेकर एसपी सिंह बघेल कहते है, "मेरे संस्कार ऐसे है कि हम अपने बड़ो का सम्मान करते है. आपने फ़ोटो देखा होगा कि स्मृति ईरानी जो हमारी कैबिनेट मंत्री हैं, उन्होंने मुलायम सिंह जी के पैर छुए. वो एक अलग बात है. मुलायम सिंह जी से किसी प्रकार का बैर नहीं है."
2019 के चुनाव में बसपा उम्मीदवार मनोज कुमार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में एसपी सिंह बघेल के चुनाव लड़ने को चुनौती दी.
इस पर बसपा नेता मनोज कुमार सोनी के वकील विजित सक्सेना ने कहा, "बसपा के प्रत्याशी मनोज कुमार सोनी ने इस चुनाव को इस आधार पर हाई कोर्ट में चुनौती दी कि एसपी सिंह बघेल ओबीसी कैटेगरी के हैं. वो एससी नहीं हैं, इसलिए वो आरक्षित सीट पर चुनाव नहीं लड़ सकते हैं."
यह मामला फिलहाल हाईकोर्ट में लंबित है. इस बारे में वकील विजित सक्सेना का कहना है,"अभी फ़िलहाल इशूज़ बने हैं, इसके बाद एविडेंस होगा, उसके बाद बहस होगी और उसके बाद कोर्ट अपना फ़ैसला सुनाएगा."
एक टीवी चैनल ने जब इस बारे में एसपी बघेल से बात की तो उन्होने फ़ोनलाइन की खराबी की बात कही. लेकिन फिर बाद में उनसे बात करने की कोशिश की गई तो उनसे बात नहीं हो पाई. उनका इस बात पर जवाब ना देना वाकई विपक्ष को सोचने पर मजबूर कर सकता है साथ ही आगामी चुनावों में एसपी सिंह बघेल की जाति से जुड़ा विवाद बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकता है?
फिलहाल इस पर कुछ भी कहना उचित नहीं है क्योंकी ये मुद्दा कोर्ट में लंबित है. तो शायद आदमी कुछ भी कहने से बचना चाहता है. वैसे देखा जाए तो सोशल मीड़िया पर आपको इस बारे में बहुत सारे पोस्ट मिल जाएंगे.
@spsinghbaghelbjp
समाजवादी पार्टी के खिलाफ अगर एसपी सिंह बघेल के ट्रैक रिकॉर्ड की बात करें तो वे तीन बार यादव परिवार से मैदान में भीड़ चुके है. उनका सबसे पहल मुकाबला 2009 में अखिलेश यादव से फ़िरोज़ाबाद लोक सभा सीट पर हुआ उस समय वो बसपा के प्रत्याशी बन मैदान में उतरे थे. उस समय अखिलेश यादव ने उन्हें 67,000 वोटों से हराया था. उस समय अखिलेश ने कन्नौज और फ़िरोज़ाबाद दोनों सीटों से चुनाव जीते थे फिर बाद में उन्हे फ़िरोज़ाबाद सीट छोड़ दी. 2009 के लोकसभा उपचुनाव में डिंपल यादव को उन्होने मैदान में उतारा और उनका मुक़ाबला कांग्रेस के राज बब्बर और बसपा के एसपी सिंह बघेल से हुआ.
उस समय डिंपल यादव राज बब्बर से चुनाव हार गईं और एसपी सिंह बघेल तीसरे नंबर पर रहे. तीसरे नंबर पर रहने के बाद भी डिंपल यादव से सिर्फ़ 13000 कम वोट मिले.
फिर 2014 लोक सभा चुनाव में वे तीसरी बार फ़िरोज़ाबाद से चुनाव लड़ रहे थे और इस समय वे पहली बार भाजपा के उम्मीदवार बने. इस बार उनका मुक़ाबला सपा के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव से थे. रामगोपाल, अखिलेश यादव के चाचा हैं. 2014 की मोदी लहर के बावजूद अक्षय यादव ने 1,14,000 वोटों से एसपी सिंह बघेल को मैदान में शिकस्त दी.
1998 से शुरू हुए राजनीतिक करियर में यादव परिवार के ख़िलाफ़ उनका चुनावी ट्रैक रिकॉर्ड हार का रहा है, लेकिन इसके बावजूद भी भाजपा ने उन्हें अखिलेश यादव के ख़िलाफ़ करहल में उम्मीदवार बनाया.
उत्तर प्रदेश में बीबीसी के पूर्व संवाददाता और वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं,"उनके और मुलायम सिंह यादव के बीच में जो संबंध हुआ करते थे अब वो हैं नहीं. राजनीति में उनकी अब अपनी शख़्सियत है, पहचान है. तब से लेकर अब तक उनका काफ़ी लम्बा राजनीतिक सफ़र रहा है. वो पढ़े लिखे हैं, विनम्र हैं और इस चुनाव में भाजपा की पूरी फ़ोर्स उनके साथ होगी. वो अकेले यह चुनाव नहीं लड़ेंगे."
करहल सीट पर अखिलेश यादव और एसपी सिंह बघेल के बीच टक्कर होगी. अपने नामांकन को दाख़िल करने के बाद उन्होने एक फ़ेसबुक पोस्ट लिखा है,
एसपी सिंह बघेल कहते है"यह मेरा सौभाग्य है कि दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने मुझे जिसे कुछ लोग पुश्तैनी, ख़ानदानी मज़बूत क़िला बता रहे हैं, उसे गिराने की ज़िम्मेदारी दी है."
मैनपुरी में राजनीति पर लंबे अरसे से पत्रकारिता करते हुए स्थानीय पत्रकार कहते है"करहल विधानसभा सीट एक यादव बाहुल्य सीट है. इस कारण मैं समझता हूँ कि कहीं कोई परेशानी अखिलेश यादव को नहीं होनी चाहिए. लेकिन इन्होंने एक घेराबंदी ज़रूर कर ली है. मतलब अखिलेश को करहल पर ध्यान देना पड़ेगा."
मैनपुरी सीट पर अगर चुनाव लड़ने की बात की जाए तो एसपी बघेल के आने के बाद करहल और आस-पास की सीटों के सामाजिक और जातीय समीकरण खासा असर देखने को मिल सकता है.
कहा जाता है की अगर भाजपा अखिलेश यादव के खिलाफ किसी यादव को चुनावी मैदान में उतारती तो अखिलेश यादव बिल्कुल निश्चिंत होकर कहीं भी जा सकते थे. लेकिन सामने एसपी सिंह बघेल है. जिनके आने के कारण मैनपुरी की दूसरी सीटों पर जातीय समीकरण गड़बड़ा सकते है."
करहल, किसनी, मैनपुरी और भोगांव सीट पर असर देखने को मिल सकता है. पहले यह अनुमान था कि पाल धनगर और बघेल समाज के वोट सपा में मिलने को थे, लेकिन अब यह वोट भाजपा के पाले में जा सकते है.
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जहां सीट का चुनाव एक तरफ दिख रहा था. वहा अचानक भाजपा ने माहौल बदलने का काम किया है. पहले की बात की जाए तो यहां से भाजपा कमजोर प्रत्याशी उतार देती है, लेकिन फिर भी उन प्रत्याशियों को वोट मिलते रहे हैं. इससे ये अनुमान लगाया जात सकता है की यहां भाजपा का वोट बैंक तो है लेकिन वो यादवों के अलावा है उसमे ठाकुर भी हैं, पाल, बघेल, शाक्य, बनिया और उसके अलावा छोटी जातियां भी हैं जो भाजपा का समर्थन करती आई हैं."
एसपी सिंह बघेल के यहां आने के बाद हो सकता है कि अखिलेश यादव को यहां कुछ दिन प्रचार कर अपना प्रमोशन करने पड़े और यही शायद भाजपा चाहती भी है कि यह दो चार दिन थोड़ा डिस्टर्ब हो जाएँ. इससे चुनाव के बहुत रोचक होने की उम्मीद है.
अखिलेश के यादव शख़्सियत और मुलायम सिंह की शख़्सियत में काफी फर्क है और दोनों की तुलना भी नहीं की जा सकती है. मुलायम सिंह के बारे में कहा जाता है की वे जमीन से जुड़े इंसान थे. उनका लोगों से निजी संबध था. कोई भी उनसे मिलने उनके घर आ सकता था, उनसे मिलकर बात कर सकता था. अगर किसी कारण वश उनकी लोगों से नोक झोंक होती, तब भी वो लोगों से रिश्ता बनाए रखते थे. लेकिन अखिलेश यादव के लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता है."
खैर, करहल में 20 फ़रवरी को मतदान होना है. अब देखना यह है कि एसपी सिंह बघेल अखिलेश यादव को चित करने में कितने कामयाब होते हैं और क्या सपा गोरखपुर शहर सीट पर सीएम योगी के ख़िलाफ़ एक मज़बूत प्रत्याशी उतार कर बघेल का बदला लेती है या नहीं.
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