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रूस-यूक्रेन युद्ध में ये हैं तबाही वाले हथियार

Raunak Pareek

रूस और यूक्रेन के बीच चली लड़ाई को 10 दिन हो चुके है.हजारों की मौत का गवाह बना विश्व. दुनिया अभी भी इस उम्मीद में है की इस समस्या का कोई शांतिपूर्ण समाधान निकले. लेकिन जिस तरह से भारी भरकम हथियारों का युद्ध में इस्तेमाल हो रहा है. जिससे ये तबाही और ज्यादा बड़ी होती जा रही है. सैनिको के साथ साथ आम नागरिक भी इसकी चपेट में आ रहे है.

इस युद्ध में अब तक 498 सैनिकों की मौत हुई है और 1597 सैनिक घायल हुए हैं. वहीं, यूक्रेन के अधिकारियों ने दावा किया है कि रूसी हमले में अब तक उनके 2000 से अधिक नागरिक मारे गए हैं.

आज हम बात करेंगे उन हथियारों की जिनका उपयोग रुस-यूक्रेन युद्ध में किया जा रहा है. यूक्रेन के सबसे बड़े शहर खारकीव के कब्जे को लेकर दोनो देशों की सेना आमने-सामने है. यूक्रेन की राजधानी कीव पर भी भारी भरकम हथियारे से रूसी सेना हमले कर रही है. इस सबके बीच रूस पर थर्मोबेरिक वेपन का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया जा रहा है, जिसे वैक्यूम बम भी कहा जाता है. पहले भी दुनिया भर में वैक्यूम बमों के प्रयोग पर विवाद उठता रहा है क्योंकि ये समान आकार के पारंपरिक बमों की अपेक्षा ज़्यादा ख़तरनाक होते हैं.

क्या होते है वैक्यूम बम?

वैक्यूम बम को एयरोसोल बम भी कहा जाता है. इसके साथ ही इसे फ़्यूल एयर विस्फोटक भी नाम दिया गया है. क्योंकि इस बम में एक फ़्यूल कंटेनर होता है जिसमें दो अलग विस्फोटक चार्ज लगे होते हैं. इसे एक रॉकेट या विमान से बम की तरह छोड़ा जा सकता है.

जब यह बम अपने निश्चित किए निशाने पर लगता है तो पहले विस्फोट में फ़्यूल कंटेनर खुलकर आसपास के क्षेत्र में फ़्यूल को फैलाकर एक बादल की शक्ल दे देता है. अगर किसी कमरे को पूरी तरह सील नहीं किया गया हो वह ज्यादा खतरनाक होता है. क्योकी जैसे ही दूसरे विस्फोट के बाद आग लगती है तो जहां जहां बादल फैला होता है वहां आग लगती है. जिससे आग का एक बड़ा गोला पैदा होता है. इससे एक भारी ब्लास्ट वेव बनती है. जो आसपास की सारी ऑक्सीजन सोख लेती है.

इस बम से सैन्य साजो-सामान से लेकर विशेष रूप से तैयार की गईं मजबूत इमारतें तक टूट सकती हैं और इंसानों की मौत हो सकती है. इन हथियारों का उपयोग अलग-अलग मकसद के लिए किया जाता है. ये अलग-अलग आकार में बनाए जाते हैं, जिनमें सैनिकों द्वारा फेंके जाने वाले ग्रेनेड से लेकर कंधे पर रखकर चलाए जाने वाले रॉकेट लॉन्चर की साइज भी शामिल है. इसे सबसे बड़ा गैर परमाणु बम भी कहा जाता है.

दुनिया में हवा से मार करने वाले भी बड़े आकार के वैक्यूम बम बनाए गए हैं, जिनसे गुफाओं और सुरंगों में छिपे लोगों को भी मारा जा सकता है. ये बम बंद इलाक़ों में सबसे ज़्यादा खतरनाक होते है.

मदर ऑफ ऑल बम

9800 किलो वजन है मदर ऑफ ऑल बम का

साल 2003 में अमेरिका ने 9800 किलोग्राम के वजन वाले बम का परीक्षण किया था, जिसे मदर ऑफ़ ऑल बम नाम दिया गया था. इसके चार साल बाद रुस ने भी ऐसे ही डिवाइस को बनाया था. जिसे फादर ऑफ़ ऑल बम कहा गया. इस बम से 44 टन के पारंपरिक बम जितना बड़ा धमाका हुआ और इसके साथ ही यह दुनिया में सबसे घातक गैर परमाणु हथियार बना. इस बम के विनाशकारी प्रभाव और इमारतों या बंकरों में छिपे किसी भी व्यक्ति को नष्ट किया जा सकता है. वैक्यूम बमों का इस्तेमाल मुख्य रूप से शहरी वातावरण में किया गया है. ये काफ़ी अहम है क्योंकि यूक्रेन में रूसी फौज़ें कीएव समेत तमाम शहरों को जीतने की कोशिश कर रही हैं.

क्या यूक्रेन में इस्तेमाल किए जा रहे हैं वैक्यूम बम?

अमेरिका में यूक्रेन की राजदूत ओक्साना मारकारोवा ने रूस पर वैक्यूम बमों का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था. फिलहाल अब तक इस दावे की आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है. हालांकि, पिछले कुछ दिनों में यूक्रेन में थर्मोबेरिक बमों को लॉन्च करने वाले रॉकेट लॉंचर देखे गए हैं.

वैक्यूम बमों के इस्तेमाल को लेकर क्या है नियम ?

वैसे तो अब तक इन बमों के उपयोग को लेकर किसी तरह के अंतरराष्ट्रीय क़ानून नहीं बनाए गए हैं. लेकिन अगर कोई देश रिहाइशी इलाकों, स्कूल या अस्पतालों में इनका इस्तेमाल करता है तो इस मामले में 1899 और 1907 के हेग कन्वेन्शन के तहत युद्ध अपराध का मुक़दमा चलाया जा सकता है. इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट प्रॉसिक्युटर करीम ख़ान ने कहा है कि उनकी अदालत यूक्रेन में संभावित युद्ध अपराधों के मामलों की जांच करेगी.

कहां-कहां होता है इनका उपयोग -

वैक्यूम बमों को सबसे पहले द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मन सेना ने इस्तेमाल किया था. लेकिन इन बमों को 1960 तक व्यापक रूप से विकसित नहीं किया गया था, जब अमेरिका ने वियतनाम में इन बमों का इस्तेमाल किया. इसके बाद अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान में पहले साल 2001 में तोरा बोरा की पहाड़ियों में छिपे अल-क़ायदा लड़ाकों को नष्ट करने और 2017 में इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों के ख़िलाफ़ इसका इस्तेमाल किया था. रूस ने इस बम का इस्तेमाल साल 1999 में चेचन्या युद्ध के दौरान किया था और ह्युमन राइट्स वॉच ने इस कदम की निंदा की थी. रूस द्वारा बनाए गए वैक्यूम बमों को बशर अल-असद सरकार ने कथित रूप से सीरियाई गृह युद्ध में भी इस्तेमाल किया था.

क्या होती है स्टिंगर मिसाइल्स ?

रूस के खिलाफ इस समय यूक्रेन की तरफ से सबसे ज्यादा स्टिंगर मिसाइल्स का उपयोग किया जा रहा है. ये वही मिसाइल है जिसका कई सालों पहले अफगानिस्तान की धरती पर भी इस्तेमाल हुआ था.

तब भी सोवियत संघ की सेना को वहां पर हार का स्वाद चखना पड़ा था. वजह बनी थी यही स्टिंगर मिसाइल्स. इस मिसाइल की खासियत की बात करें तो ये कम ऊंचाई वाले किसी भी एयरक्राफ्ट को खत्म कर सकती है. खास बात तो ये भी है कि इस मिसाइल के इस्तेमाल के लिए ज्यादा फोर्स की जरूरत नहीं पड़ती है.

कोई भी एक शख्स अपने कंधे पर इस हथियार को रख आसानी से मिसाइल दाग सकता है और सामने खड़ा दुश्मन का लड़ाकू विमान ध्वस्त हो जाएगा. असल में ये स्टिंगर मिसाइल्स अमेरिका की ही देन है. सबसे ज्यादा अमेरिका की सेना में ही स्टिंगर मिसाइल्स का इस्तेमाल होता है. लेकिन आज रूस-यूक्रेन वॉर में ये स्टिंगर मिसाइल यूक्रेन की सेना की ताकत बन गई है.

इतिहास बताता है कि इस मिसाइल से हमेशा से ही रूसी सेना को तकलीफ हुई है. अफगानिस्तान युद्ध में उसकी हार और फिर उस देश से विदाई भी इसी मिसाइल की वजह से हुई थी. एक बार फिर स्टिंगर मिसाइल्स का ही इस्तेमाल हो रहा है और टारगेट भी रूस है और सामने खड़े होकर टक्कर दे रहा यूक्रेन है. बताया जा रहा है कि क्योंकि इस मिसाइल की वजह से रूस को घाव हो रहा है, ऐसे में जर्मनी भी यही हथियार यूक्रेन को सप्लाई कर रहा है.

क्या है एंटी टैंक जेवलिन मिसाइल ?

रूसी सेना के खिलाफ यूक्रेन का ये दूसरा ऐसा हथियार है जो अभी उस पर काल बनकर टूटा है. नाम है एंटी टैंक जेवलिन मिसाइल, ये वैसे तो अमेरिका का हथियार है, लेकिन पिछले कुछ सालों में यूक्रेन को इस हथियार की बड़ी सप्लाई मिली है.

पांच किलोमीटर के दायरे तक हमला करने वाली ये मिसाइल अर्बन वॉरफेयर में काफी कारगर मानी जाती है. टैंकों को उड़ाना हो, कम ऊंचाई पर उड़ने वाले हेलीकॉप्टर को निशाना बनाना हो तो जेवलिन मिसाइल का कोई जवाब नहीं है. ये ना सिर्फ कारगर है बल्कि एक झटके में दुश्मन के टैंक या लड़ाकू विमान को ध्वस्त कर देती है.

इसमें दो मोड होते हैं. पहला डायरेक्ट और दूसरा टॉप अटैक. टॉप अटैक मोड का इस्तेमाल टैंक, हथियारबंद वाहन को निशाना बनाने में किया जाता है. जबकि डायरेक्ट मोड में मिसाइल इमारत, कम ऊंचाई पर उड़ने वाली वस्तुओं या बंकरों को निशाना बना सकती है. इस मिसाइल का इस्तेमाल फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरब, इंडोनेशिया, यूएई, ताईवान, ब्रिटेन जैसे 20 देश कर रहे हैं. यह सबसे शक्तिशाली एंटी टैंक मिसाइलों में से एक है.

इसके अलावा 9K720 इस्कंदर ब्लैस्टिक मिसाइल, BM-30 स्मर्च MBR, BMPT टर्मिनेर टैंक, Tor-M2 एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल, KA-52 एलिगेटर हेलिकॉप्टर, T-80 मैन बैटल टैंक, सुखोई SU-35,और TU-95 स्ट्रैटिजिक हेवी बॉम्बर है. चार इंजन वाला ये खास बॉम्बर है और कहा जाता है कि हवाई तबाही मचाने के लिए यह अकेला ही काफी है. इन हथियारों का इसमें इस्तेमाल किया जा रहा है.

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