मणिपुर विधानसभा की फाइल फोटो।
मणिपुर विधानसभा की फाइल फोटो। 
राष्ट्रीय

Manipur : जनसंख्या आयोग बनाने और एनआरसी लागू करने के प्रस्ताव विधानसभा में पारित

Om prakash Napit

मणिपुर विधानसभा ने राज्य जनसंख्या आयोग गठित करने और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) लागू करने के लिए दो निजी सदस्य प्रस्तावों को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया है। ये प्रस्ताव जनता दल (यूनाइटेड) के विधायक के. जॉयकिशन ने राज्य विधानसभा के बजट सत्र के अंतिम दिन पेश किए। उन्होंने दावा किया कि राज्य के पर्वतीय इलाकों में 1971 से 2001 के बीच जनसंख्या में 153.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई और 2002 से 2011 के दौरान यह दर बढ़कर 250.9 प्रतिशत पर पहुंच गई। जॉयकिशन ने कहा कि घाटी के क्षेत्रों में भी 1971 से 2001 तक 94.8 प्रतिशत और 2001 से 2011 तक लगभग 125 प्रतिशत की जनसंख्या वृद्धि दर्ज की गई।

कथित घुसपैठ पर जताई चिंता

जद (यू) विधायक ने मणिपुर में बाहरी लोगों की कथित घुसपैठ पर भी चिंता जताई। उन्होंने दावा किया कि घाटी जिलों के लोगों के पर्वतीय क्षेत्रों में बसने पर पाबंदी है और पर्वतीय क्षेत्रों में जनसंख्या बढ़ने की वजह बाहर से लोगों की कथित घुसपैठ हो सकती है। मणिपुर की अंतरराष्ट्रीय सीमा म्यांमार से लगती है। मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने भी प्रस्तावों पर चर्चा में हिस्सा लिया। उन्होंने कहा कि जनसंख्या आयोग गठित करने और राज्य में एनआरसी लागू करने जैसे प्रस्ताव सदन के सभी सदस्यों के सामूहिक हितों को साधेंगे।

पिछले कुछ समय से जोर पकड़ रही एनआरसी लागू करने की मांग

रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले कुछ समय से मणिपुर में एनआरसी लागू करने की मांग जोर पकड़ रही है। जुलाई के मध्य में राज्य के सात छात्र समूहों और 19 आदिवासी निकायों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मणिपुर में एनआरसी लागू करने की अपनी मांग को दोहराया था। उनका दावा है कि म्यांमार, बांग्लादेश और नेपाल से प्रवासन (migration) की जांच के लिए नागरिकता रजिस्टर आवश्यक है। उन्होंने कहा कि म्यांमार उनकी विशेष चिंता का विषय है क्योंकि राज्य 398 किलोमीटर की बिना बाड़ वाली अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करता है।

दावा, पास या परमिट प्रणाली खत्म होने से बढ़ी घुसपैठ

प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में आदिवासी और छात्र समूहों ने आरोप लगाया था कि मणिपुर के लिए पास या परमिट प्रणाली, जो नवंबर 1950 तक अस्तित्व में थी, के ख़त्म होने जाने के चलते ही बांग्लादेश (पूर्व में पूर्वी पाकिस्तान), म्यांमार और नेपाल से आप्रवासियों की घुसपैठ कर पाते हैं। संगठनों ने कहा था, ‘इन तीन देशों के लोग पास प्रणाली के खत्म होने के बाद से राज्य में स्वायत्त रूप से बस गए थे और पिछले 75 वर्षों के दौरान विदेशी अधिनियम 1946 के तहत इन्हें लेकर कोई भी सूझबूझ भरा कदम नहीं उठाया गया।’ उन्होंने जनसंख्या वृद्धि की जांच और संतुलन के लिए एक राज्य जनसंख्या आयोग के गठन की मांग की थी।

आधार वर्ष तय करने को लेकर परस्पर विरोधी मांगें

गौर करने वाली बात यह है कि अगर मणिपुर एनआरसी की प्रक्रिया शुरू कर देता है तो संबंधित अधिकारियों को जमीनी स्तर पर उलझे मुद्दों से निपटना होगा। इनमें से एक इस बात की परस्पर विरोधी मांगें हैं कि अधिवास (domicile) को मान्यता देने के लिए किस वर्ष को आधार वर्ष के रूप में लिया जाए। कुछ प्रभावशाली आदिवासी समूह और छात्र निकाय 1951 को आधार वर्ष के रूप में मानने के लिए दबाव डाल रहे थे, इसके मणिपुर सरकार ने 1961 को आधार वर्ष कहा है- वो साल जब मणिपुर एक अलग राज्य बना था। 1951 को आधार वर्ष मानने का विरोध करने वालों का कहना है कि आदिवासी (पहाड़ी) और मेइटी (घाटी) दोनों समुदाय के बहुत से लोग उस वर्ष के बाद ही राज्य में आए थे। ऐसे में यदि सरकार 1951 की आधार वर्ष मानने की मांग मान लेती है, तो ऐसे कई समुदाय एनआरसी गणना से बाहर हो जाएंगे।

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