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बीजेपी के लिए ही नहीं, योगी आदित्यनाथ के लिए भी चुनौतीपूर्ण हैं छठे चरण के चुनाव

पिछले चुनाव में छठे चरण की 46 सीटें बीजेपी ने जीती थीं जबकि एक सीट अपना दल और दूसरी सीट ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा ने जीती थीं. अपना दल इस बार भी बीजेपी के साथ गठबंधन में है लेकिन ओमप्रकाश राजभर की पार्टी का इस बार समाजवादी पार्टी से गठबंधन है. राजभर का गठबंधन जहां बीजेपी के लिए नुकसानदायक साबित हो रहा है वहीं समाजवादी पार्टी सुभासपा के इस सहयोग से खुद को मजबूत स्थिति में देख रही है.

समीरात्मज मिश्र वरिष्ठ पत्रकार

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में छठे चरण के मतदान के लिए तीन मार्च को मतदान होंगे. इस चरण में 10 जिलों की 57 सीटों पर मंगलवार को प्रचार थम गया. इस चरण में पूर्वांचल के आंबेडकर नगर से लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर तक की सीटों पर सियासी संग्राम होना है. साल 2017 के चुनाव में इस चरण में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों ने 48 सीटों पर एकतरफा जीत दर्ज की थी इसलिए बीजेपी के लिए अपनी सीटों को बचाए रखना बड़ी चुनौती तो होगी ही, योगी आदित्यनाथ के लिए भी किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है.

पिछले चुनाव में छठे चरण की 46 सीटें बीजेपी ने जीती थीं जबकि एक सीट अपना दल और दूसरी सीट ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा ने जीती थीं. अपना दल इस बार भी बीजेपी के साथ गठबंधन में है लेकिन ओमप्रकाश राजभर की पार्टी का इस बार समाजवादी पार्टी से गठबंधन है. राजभर का गठबंधन जहां बीजेपी के लिए नुकसानदायक साबित हो रहा है वहीं समाजवादी पार्टी सुभासपा के इस सहयोग से खुद को मजबूत स्थिति में देख रही है. मंगलवार शाम चुनाव प्रचार खत्म होने से पहले बीजेपी ने अपने पक्ष में चुनावी माहौल करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी. खुद योगी आदित्यनाथ ने इस इलाके में छह जनसभाएं कीं जिनमें से दो जनसभाएं तो उन्होंने अपने ही क्षेत्र गोरखपुर में कीं. योगी आदित्यनाथ इस बार खुद गोरखपुर सदर से चुनाव लड़ रहे हैं. योगी आदित्यनाथ के अलावा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी इस इलाके में कई रैलियां कीं.

सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव

योगी सरकार को कड़ी चुनौती दे रहे समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी इस इलाके में चुनाव प्रचार में पूरी ताक़त झोंक दी. उनके सामने न सिर्फ बीजेपी से आगे बढ़ने की चुनौती है बल्कि बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस पार्टी के प्रतिरोध का भी सामना करना पड़ रहा है. बीएसपी नेता मायावती और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी कई रैलियां कीं. मायावती का जोर जहां बड़ी रैलियों पर रहा तो प्रियंका गांधी ने घर-घर जाकर भी प्रचार किया है. हालांकि पूरे प्रदेश की तरह यहां भी मुख्य मुकाबला बीजेपी और समाजवादी पार्टी में ही दिख रहा है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने राजनीतिक करियर में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. इससे पहले वो गोरखपुर से लगातार पांच बार सांसद चुने गए. गोरखपुर सदर में उन्हें समाजवादी पार्टी से उपेंद्र दत्त शुक्ल की पत्नी सुभावती शुक्ला चुनौती दे रही हैं जो बीजेपी के कद्दावर नेता थे और अभी कुछ समय पहले उनकी मृत्यु हो गई. साल 2018 में योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे से खाली हुई गोरखपुर सीट से बीजेपी ने उपेंद्र दत्त शुक्ल को ही चुनाव लड़ाया था.

कि यहां योगी आदित्यनाथ को चुनाव जीतने में बहुत दिक्कत नहीं आएगी लेकिन गोरखपुर की बाकी आठ सीटों पर पार्टी को जीत दिलाना और अपने चुनाव में भी जीत के अंतर को ज्यादा रखना उनके सामने बड़ी चुनौती है. हालांकि यह इतना आसान भी नहीं है क्योंकि न सिर्फ समाजवादी पार्टी ने बल्कि कांग्रेस पार्टी ने भी योगी के खिलाफ जिस युवा नेता को चुनाव लड़ाया है वो भी कभी बीजेपी की ही कार्यकर्ता रही हैं.
गोरखपुर में वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार सिंह

चेतना पांडे इस सीट पर कांग्रेस की उम्मीदवार हैं जो साल 2005 में गोरखपुर विश्वविद्यालय में छात्र संघ की उपाध्यक्ष रहीं और लंबे समय तक आरएसएस से संबद्ध छात्र संगठन एबीवीपी से जुड़ी रहीं. चेतना पांडेय साल 2019 में कांग्रेस में शामिल हुई थीं और अब गोरखपुर सदर से योगी आदित्यनाथ के खिलाफ पार्टी की ओर से उम्मीदवार हैं.

हालांकि गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ को चुनौती देने वाले सबसे चर्चित उम्मीदवार आजाज समाज पार्टी के चंद्रशेखर हैं जो कि भीम आर्मी के प्रमुख हैं. लेकिन स्थानीय लोगों की मानें तो न तो वो योगी आदित्यनाथ को कोई खास चुनौती दे पा रहे हैं और न ही उनकी उम्मीदवारी की इतनी चर्चा ही रही है जितनी कि उनके चुनाव लड़ने की घोषणा के वक्त हुई थी. चंद्रशेखर का यह पहला चुनाव है लेकिन गोरखपुर की सड़कों से लेकर सँकरी गलियों तक उनके चुनाव लड़ने की कोई खास चर्चा सुनाई नहीं पड़ती.

विनय शंकर तिवारी और अखिलेश यादव

गोरखपुर जिले की ही चिल्लूपार सीट से विनय शंकर तिवारी समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार हैं जो पूर्व मंत्री और गोरखपुर के कद्दावर नेता रहे हरिशंकर तिवारी के पुत्र हैं और योगी आदित्यनाथ और उनके गुरु महंत अवैद्यनाथ के मुख्य प्रतिद्वंद्वी रहे हैं. गोरखपुर में ब्राह्मण बनाम ठाकुर का विवाद भी परंपरागत रहा है और हरिशंकर तिवारी उसके अहम किरदार माने जाते हैं. चुनाव से ऐन पहले विनयशंकर तिवारी और उनके परिवार के कई सदस्यों का समाजवादी पार्टी में शामिल होना न सिर्फ चिल्लूपार सीट पर बल्कि आस-पास के कई जिलों की सीट पर असर दिखा सकता है.

गोरखपुर की नौ में से ज्यादातर सीटों पर बीजेपी को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है और यहां की सीटों पर हार-जीत को सीधे योगी आदित्यनाथ की हार-जीत से जोड़कर मूल्यांकन किया जाएगा. यहां तक कि गोरखपुर सदर सीट पर भी यदि योगी आदित्यनाथ जीतते हैं लेकिन जीत का अंतर कम होता है, तो यह भी उनकी हार जैसी ही होगी. गोरखपुर से वो न सिर्फ चुनाव जीतते रहे हैं बल्कि प्रसिद्ध गोरक्ष पीठ के वो महंत भी हैं और मुख्यमंत्री रहते हुए भी इस पद पर बने रहे. यही नहीं, मुख्यमंत्री बनने के बाद भी वो लगभग हर हफ्ते या फिर दो हफ्ते में एक बार यहां जरूर आते रहे. ऐसे में गोरखपुर जिले की सभी सीटों पर जीत-हार सीधे योगी आदित्यनाथ की जीत-हार से जोड़कर देखी जाएगी.

छठे चरण में न सिर्फ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की बल्कि उनकी सरकार के कई अन्य मंत्रियों और बीजेपी के बड़े नेताओं की भी प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है. योगी सरकार में मंत्री सतीश द्विवेदी, सूर्यप्रताप शाही, जय प्रताप सिंह, जय प्रकाश निषाद और रामस्वरूप शुक्ला भी उम्मीदवार हैं और सभी के सामने अपनी सीट बचाने की चुनौती है. इसके अलावा समाजवादी पार्टी के नेता रामगोविंद चौधरी, बीएसपी छोड़कर समाजवादी पार्टी में आए लालजी वर्मा, राम अचल राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू भी इसी चरण में राजनीतिक अग्निपरीक्षा से गुजरने वाले हैं.

समीरात्मज मिश्र वरिष्ठ पत्रकार हैं. लंबे समय तक बीबीसी में संवाददाता रहे हैं. इस समय जर्मनी के पब्लिक ब्रॉडकास्टर डीडब्ल्यू से जुड़े हैं और यूट्यूब चैनल ‘द ग्राउंड रिपोर्ट’ के संपादक हैं.

ये एना​लेसिस यूपी चुनाव को लेकर बन रही श्रृंखला का लेख है, इस श्रृंखला में आगे भी यूपी चुनाव 2022 के राजनैतिक समीकरणों और जनता के रुझान को लेकर के समीक्षा निंरतर जारी रहेगी।

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