हाल ही में संपन हुए 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में पंजाब में आप कि बल्ले-बल्ले और यूपी समेत 4 राज्यों में कमल खिला. इस बार चुनाव के नतीजे किसी राजनीतिक सुनामी से कम नहीं हैं, जो प्रकाश सिंह बादल, कैप्टन अमरिंदर सिंह, चरणजीत सिंह चन्नी और नवजोत सिंह सिद्धू, केशव प्रसाद मौर्य,सुरेश राणा, मोती सिंह दिग्गजों के पैरों तले ज़मीन खिसकाकर ले गए हैं. जहां पंजाब समेत यूपी और कई राज्यों के बड़े नेताओं को हराने वाले कौन है ये सभी चलिए जानते है. क्योंकी इनकी जीत ने सभ राजनीतिक जानकारों का ध्यान खीचा है.
लाभ सिंह उगोके
नंबर 1 पर है लाभ सिंह उगोके, पंजाब के सीएम चन्नी को भदौर सीट से हराने वाले आप पार्टी के लाभ सिंह उगोके इस समय चर्चाओं में है. इन्हे आम आदमी पार्टी ने भदौर सीट से उम्मीदवार बनाया था. ये 35 साल के है. ये भदौर क्षेत्र के उगोके गांव के रहने वाले हैं. राजनीति में आने से पहले वे एक मोबाइल फोन की दुकाने चलाते थे. इनके पिता एक ड्राइवर हैं और उनकी मां गांव की एक स्कूल में सफाई कर्मचारी है. उगोके साल 2013 में आम आदमी पार्टी में शामिल हुए थे. फिर 2017 में उन्होंने भदौर से आप उम्मीदवार पीरमल सिंह खालसा के चुनाव अभियान में सक्रिय रुप में हिस्सा लिया लेकिन पीरमल सिंह खालसा ने पार्टी बदली पहले खैरा गुट के साथ फिर कांग्रेस में शामिल हुए. इस बार उगोके ने आप पार्टी से हुंकार भरी और बड़े मार्जन से चरणजीत सिंह चन्नी को हराया.
सीएम केजरिवाल और चरणजीत सिंह
नंबर 2 पर है डॉक्टर चरणजीत सिंह, लाभ सिंह के बाद दूसरी सीट से चुनाव लड़ने वाले चन्नी को आप पार्टी के चरणजीत सिंह ने हराया. आपको बता दे की चरणजीत सिंह उसी इलाके के रहने वाले है और पेशे से आंखों के डॉक्टर हैं. वे लंबे समय से समाज की सेवा करते आ रहे है. इस कारण क्षेत्र में उनका काफी सम्मान है. उनकी नेत्र विज्ञान में एमएस किया है और पीजीआई चंडीगढ़ में काम कर रहे है. उनका लोगो से जुड़ना उनकी ताकत बना.
जीवनजोत कौर
नंबर 3 पर है जीवनजोत कौर, ठोको ताली के नाम से जिन्हे आप जानते है वे है नवजोत सिंह सिद्दू. जिसे जीवनजोत कौर ने हराया. वे पंजाब की अमृतसर पूर्व सीट से आप पार्टी की उम्मीदवार थी. पंजाब में इस सीट से सियासी किंग कांग्रेस के नवजोत सिंह सिद्धू और शिरोमणि अकाली दल के विक्रम सिंह मजीठिया ने भी चुनाव लड़ा. जीवनजोत कौर के मुताबिक़, वो पिछले 20-25 सालों से सामाज सेवा के काम में सक्रिय हैं. एक चैनल से उन्होने बता कि तो उनका कहन था कि वे कभी राजनीति में आने के बारे में नहीं सोचा था.
लेकिन स्कूल के दिनों से ही उनकी ऐसी पहचान थी कि जब भी वे प्रिंसिपल ऑफ़िस में जाती तो सोचा जाता था कि ज़रूर कोई पंगा हुआ होगा. इसलिए जीवनजोत वहां जा रही हैं.जीवनजोत कौर, विधायक, आप
उनका ये भी कहना है कि परिवार के सहयोग के बिना एक महिला का इस मुकाम तक पहुंच पाना संभव नहीं है. उनकी शादी के बाद भी उन्हे सहयोग मिलता रहा. 1992 में श्री हेमकुंट एजुकेशन सोसायटी में एक स्कूल खोला गया था उस समय जीवनजोत ख़ुद भी पढ़ाई कर रही थीं. फिर बाद में उन्होने उस स्कूल में बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. जीवनजोत के अनुसार उन्होंने 'इकोशी' नाम का एक प्रोजेक्ट चलाया है. उनकी पहचान पंजाब में पैड वुमन के रूप में है. वो रीयूज़ेबल सैनिटरी पैड को बढ़ावा देती रही हैं.
गुरमीत सिंह खुडियां
नंबर 4 पर है गुरमीत सिंह खुडियां, गुरमीत सिंह खुडियां श्री मुक्तसर साहिब ज़िले के खुडियां महां सिंह गांव के रहने वाले हैं. उनकी उम्र 59 साल है और वे 12वीं पास हैं. गुरमीत सिंह खुडियां के पिता जगदेव सिंह खुडियां 1989 में फरीदकोट लोक सभा क्षेत्र से सांसद रह चुके है. अपने पिता की मौत के बाद वे कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए फिर बाद में उन्होने आप पार्टी का हाथ थामा. आम आदमी पार्टी ने उन्हें लंबी विधान सभा सीट से मैदान में उतारा. उस सीट पर उनके सामने पांच बार मुख्यमंत्री और शिरोमणि अकाली दल के बड़े नेता प्रकाश सिंह बादल थे. प्रकाश सिंह बादल जिन्हे पंजाब ही नहीं बल्कि भारत के वरिष्ठ राजनेता के रुप में जाना जाता है. उन्हे गुरमीत सिंह ने हराया.
जगदीप कंबोज गोल्डी
नंबर 5 पर है जगदीप कंबोज गोल्डी, शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के ख़िलाफ चुनाव लड़ने वाले जगदीप सिंह गोल्डी कंबोज जलालाबाद में रहते है. वे LLB पास हैं और अखिल भारतीय युवा कांग्रेस के पदाधिकारी भी रह चुके है. उनके पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो पार्टी से टिकट ना मिलने के चलते उन्होने निर्दलीय ही मैदान में हुंकार भरी थी. बाद में उन्होने आप से हाथ मिला लिया. 2017 विधानसभा चुनाव में उन्हें निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर 5800 वोट मिले और इस बार उन्होंने सुखबीर सिंह बादल को कड़ी चुनौती दी है.
जगरूप सिंह गिल
नंबर 6 पर है जगरूप सिंह गिल, पहले जगरुपस सिंह केवल जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष के रुप में जाने जाते थे लेकिन अब उन्हे पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल को हराने वाले के रुप में जाना जाएगा. कभी पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के क़रीबी रहे जगरूप सिंह गिल 1979 से पार्षद बनते आ रहे हैं. इस बार वो सातवीं बार पार्षद चुने गए थे.जगरूप सिंह गिल 1992 से 1997 तक बठिंडा नगर पालिका के अध्यक्ष भी रहे है. हाल ही में उन्होने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देकर आप पार्टी में शामिल हुए थे. आप पार्टी ने उन्हें बठिंडा शहर से मनप्रीत सिंह बादल के ख़िलाफ़ मैदान में उतारा.
अजीतपाल कोहली
नंबर 7 पर है अजीतपाल कोहली, अजीतपाल कोहली अकाली दल के साथ पुराने साथी है. पहले अकाली दल की सरकार के दौरान अजीतपाल कोहली 2007 से 2012 तक अकाली दल में होते हुए पटियाला के मेयर भी रह चुके हैं. कुछ समय पहले कोहली ने आप के साथ अपना हाथ जोडा. अजीतपाल कोहली ने पटियाला शहरी सीट से कैप्टन अमरिंदर सिंह के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ा और जीता भी. उनके पिता सुरजीत सिंह कोहली पहले विधायक रह चुके हैं. अजीतपाल कोहली पोस्ट ग्रैजुएट हैं और उन्होंने 2006 में पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला से एमए पॉलिटिकल साइंस में किया है.वो अपना ट्रांसपोर्ट का बिज़नेस भी करते हैं.
सुरेंद्र कुशवाह और स्वामी प्रसाद मौर्य
नंबर 8 पर है सुरेंद्र कुशवाहा, अब तक राजनीति के मौसम विज्ञानी कहे जाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य का विज्ञान इस बार धरा का धरा रह गया. अंतिम समय में उन्होने मंत्री पद त्यागकर भाजपा छोड़ी और सपा का दामन थामा. उन्हे शायद उम्मीद थी की उनके आने से प्रदेश में सपा की आंधी चलने लगेगी और लखनऊ के सिंहासन पर अखिलेश यादव का राज होगा.
लेकिन भाजपा के सुरेन्द्र कुशवाहा ने उनकी सोच में ऐसा खलल डाला की दिमाग के नो दो ग्यारह हो गए और लगता है की आने वाले समय में ये हार उनके राजनीतिक भविष्य पर असर डाल सकती है. सुरेन्द्र कुशवाहा के पिता फाजिलनगर सीट से विधायक रह चुके है. इस सीट पर बीजेपी, सपा और बसपा के बीच टक्कर होती आई है. पिछले दो चुनावों को लेकर बात की जाए तो बीजेपी के गंगा सिंह कुशवाह यहां से जीतते आ रहे है.
यूपी की 403 विधानसभा सीटों में फाजिनगर सीट का नंबर 332 वां है. यह सीट देवरिया लोकसभा क्षेत्र में आती है. देवरिया लोकसभा क्षेत्र में कुल पांच विधानसभा क्षेत्र हैं. फाजिलनगर उनमें से एक है. 2017 के चुनाव में फाजिलनगर सीट पर जीत का अंतर काफी ज्यादा था. उस समय बीजेपी के गंगा सिंह कुशवाहा ने सपा के विश्वनाथ को 41,922 वोटों के बड़े अंतर से हराया था. वहीं 2012 के विधानसभा चुनाव में गंगा सिंह को बसपा के कलामुद्दीन से कड़ी टक्कर मिली थी. उस समय जीत का अंतर 5,500 वोटों से भी कम था. विश्वनाथ, 2007 में फाजिलनगर सीट से सपा के टिकट पर विधायक बने थे.
कांग्रेस से हरीश रावत और बीजेपी के मोहन सिंह बिष्ट
नंबर 9 पर है बीजेपी के मोहन सिंह बिष्ट, उत्तराखंड की VIP सीट लालकुआं से भाजपा के प्रत्याशी मोहन सिंह बिष्ट ने बड़ी जीत हासिल की. उन्होंने उत्तराखंड प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को 14 हजार से ज्यादा वोटों से हराया. बता दें कि कांग्रेस ने हरीश रावत को रामनगर विधानसभा सीट से हटाकर लालकुआं सीट पर उतारा था. जिसके बाद से लालकुआं हॉट सीट बन गई थी. लालकुआं सीट पर भाजपा ने वर्तमान विधायक नवीन दुम्का का टिकट काटकर नए चेहरे के रूप में मोहन सिंह बिष्ट मैदान में उतारा. बिष्ट हल्दूचौड़ क्षेत्र के रहने वाले हैं. उन्होंने साल 2019 में निर्दलीय के तौर पर हरिपुर बच्ची जिला पंचायत क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीता भी. यह चुनाव उन्होंने अपने बड़े भाई और बीजेपी प्रत्याशी इंदर सिंह बिष्ट के खिलाफ लड़ा था. फिर 2019 के पंचायत चुनाव के दौरान बीजेपी ने मोहन सिंह बिष्ट की जगह उनके भाई इंदर सिंह को जिला पंचायत चुनाव के लिए प्रत्याशी बनाया. जिस पर मोहन बिष्ट ने बगावत की और निर्दलीय मैदान में उतकर जीत हासिल की. जिस पर भाजपा ने मोहन बिष्ट पर पार्टी विरोधी काम करने के लिए कार्रवाई की और 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित किया. बात करें मोहन सिंह बिष्ट के राजनीतिक जीवन की तो उन्होंने नैनीताल के डीएसबी कॉलेज से छात्र संघ का चुनाव लड़ा और जीता. छात्र जीवन से राजनीति की शुरुआत करने वाले मोहन सिंह बिष्ट बाद में उत्तराखंड कोऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन के चेयरमैन भी बने. 2017 के चुनाव में रावत हरिद्वार ग्रामीण और किच्छा विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे थे और उन्हें दोनों ही सीटों में हार का मुंह देखना पड़ा. लेकिन, 2014 के धारचूला उपचुनाव में हरीश चुनाव जीतकर सदन तक पहुंच गए थे.
जनता का बाहु-मत
ये तो हुई उन प्रत्याशीयों की बात जिन्होने राजनीतिक के दिग्गजों को हराया. उत्तर प्रदेश में भले ही प्रचंड बहुमत के साथ भारतीय जनता पार्टी ने प्रचंड जीत दर्ज की हो, लेकिन बीजेपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य समेत 11 मंत्रीयों को भी इन चुनावों में हार का सामना करना पड़ा है. जीत के लिए कड़ा संघर्ष और ईमानदारी चाहिए होती है. जो आज के समय किसी के पास नहीं है. लेकिन जिन्होने इन दिग्गज़ों को हराया अब आने वाले समय में वे कितना काम करते है ये तो वक्त बताएगा.